Curd and Saag Avoid in Sawan: सावन में कढ़ी-साग का सेवन हो सकता है खतरनाक, आयुर्वेद ने किया बड़ा खुलासा

Edited By Updated: 06 Jul, 2025 11:30 AM

consuming kadhi saag in the month of saavan can be dangerous

हिंदू धर्म में सावन का महीना यानी श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान जहाँ भक्त पूजा-पाठ और व्रत में लीन रहते हैं वहीं खान-पान को लेकर भी कई नियम माने जाते हैं। अक्सर लोग सोचते हैं कि ये सिर्फ़ धार्मिक मान्यताएँ हैं लेकिन क्या आप जानते...

नेशनल डेस्क। हिंदू धर्म में सावन का महीना यानी श्रावण मास भगवान शिव को समर्पित होता है। इस दौरान जहाँ भक्त पूजा-पाठ और व्रत में लीन रहते हैं वहीं खान-पान को लेकर भी कई नियम माने जाते हैं। अक्सर लोग सोचते हैं कि ये सिर्फ़ धार्मिक मान्यताएँ हैं लेकिन क्या आप जानते हैं कि सावन में कढ़ी और साग जैसी कुछ चीजें न खाने के पीछे गहरे वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक कारण छिपे हैं? आइए जानते हैं क्या कहता है हमारा प्राचीन स्वास्थ्य विज्ञान।

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सावन का मौसम और शरीर पर असर

गर्मी के बाद जब सावन की पहली फुहारें पड़ती हैं तो मन खुश हो उठता है। चारों ओर हरियाली छा जाती है और मौसम सुहाना हो जाता है। लेकिन इस खूबसूरत मौसम की अपनी चुनौतियाँ भी हैं। आयुर्वेद के अनुसार वर्षा ऋतु में हमारी पाचन अग्नि (Digestive Fire) कमज़ोर पड़ जाती है। शरीर में वात, पित्त और कफ जैसे तीनों दोष असंतुलित हो सकते हैं जिससे रोगों का खतरा बढ़ जाता है। यही वजह है कि इस दौरान खान-पान का विशेष ध्यान रखने की सलाह दी जाती है।

 

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कढ़ी और साग से दूरी क्यों? जानें ठोस कारण

आपने अक्सर सुना होगा कि सावन में कढ़ी और हरी पत्तेदार सब्जियां, खासकर साग नहीं खानी चाहिए। इसके पीछे ठोस कारण हैं:

  • कमज़ोर पाचन: मानसून में हमारा पाचन तंत्र सुस्त पड़ जाता है। कढ़ी को फर्मेंटेड दही से बनाया जाता है जिसे पचाना इस दौरान मुश्किल हो सकता है। वहीं साग जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों में कीड़े और गंदगी छिपी होने की आशंका ज़्यादा रहती है जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। आयुर्वेद कहता है कि इस मौसम में हमें हल्का और सुपाच्य भोजन ही करना चाहिए।

  • तामसिक प्रभाव: धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ आयुर्वेद भी कुछ खाद्य पदार्थों को तामसिक मानता है जिनसे शरीर में आलस और सुस्ती आ सकती है। कढ़ी को तामसिक भोजन की श्रेणी में रखा जाता है। जब शरीर तामसिक ऊर्जा से भरा हो तो ध्यान और पूजा-पाठ में मन लगाना मुश्किल हो सकता है।

  • दोषों का असंतुलन: आयुर्वेदिक चिकित्सक डॉ. भगवत स्वरूप शर्मा के अनुसार सावन में शरीर में अम्ल की कमी होती है और क्षारीयता बढ़ जाती है। ऐसे में आलू (जो क्षारीय होता है) खाने से त्वचा संबंधी समस्याएँ जैसे खुजली, दाद, फोड़े-फुंसी और बालों का झड़ना बढ़ सकता है। इसी तरह मटर वात बढ़ाती है और टमाटर अम्ल को बढ़ाता है जो इस मौसम में शरीर के संतुलन को बिगाड़ सकते हैं। इसलिए इन सब्जियों से भी परहेज करने की सलाह दी जाती है खासकर यदि वे कोल्ड स्टोरेज से आई हों।

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तो क्या खाएं जो हो फायदेमंद? आयुर्वेद की सलाह

सावन में अपनी सेहत का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है। आयुर्वेद कुछ ख़ास चीज़ों को खाने की सलाह देता है, जो शरीर के तीनों दोषों को संतुलित रखते हैं और आसानी से पच जाते हैं:

  • त्रिदोष नाशक भोजन: ऐसे खाद्य पदार्थ खाएं जो वात, पित्त और कफ तीनों को संतुलित करें। आंवला और नींबू का सेवन खूब करें क्योंकि ये त्रिदोष नाशक होते हैं।

  • हल्का और पोषक: अपनी डाइट में ताज़े फल, साबुत अनाज, नट्स, बीज, घी और दूध शामिल करें। ये आपको ऊर्जा देंगे और सेहतमंद रखेंगे।

  • खिचड़ी है कमाल: मूंग दाल की पतली खिचड़ी इस मौसम के लिए बेहतरीन मानी जाती है। यह न सिर्फ़ हल्की होती है बल्कि पाचन के लिए भी बहुत फायदेमंद है।

  • मौसमी सब्ज़ियाँ: इस दौरान जो सब्ज़ियाँ प्रकृति में पैदा होती हैं उन्हें खाना चाहिए। भिंडी और अरबी जैसी सब्ज़ियाँ पौष्टिक होती हैं लेकिन इनके साथ घी का सेवन न करें क्योंकि इनमें प्राकृतिक चिकनाहट होती है।

सावन का महीना सिर्फ़ आस्था का नहीं बल्कि स्वस्थ जीवन शैली अपनाने का भी है। अपने खान-पान पर ध्यान देकर आप इस खूबसूरत मौसम का पूरा आनंद ले सकते हैं और कई बीमारियों से बच सकते हैं। अगली बार जब आप सावन में कढ़ी या साग खाने का सोचें तो इन आयुर्वेदिक रहस्यों को ज़रूर याद कर लीजिएगा!

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