अफगानिस्तान के नाम से भी डर रही वहां की लड़कियां, बोली- अब भारत ही हमारा घर

Edited By vasudha,Updated: 24 Aug, 2021 02:53 PM

female afghan refugee are afraid of the name of afghanistan

अफगानिस्तान में 15 अगस्त को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद दक्षिणी दिल्ली के भोगल में रह रही 19 वर्षीय मरियम आरजू नोयार दिन भर अपने कमरे में रोती रहीं क्योंकि युद्धग्रस्त देश के घटनाक्रम ने शांति की उनकी सारी उम्मीदों को तोड़ दिया और उसकी जगह...

इंटरनेशनल डेस्क: अफगानिस्तान में 15 अगस्त को तालिबान के काबुल पर कब्जा करने के बाद दक्षिणी दिल्ली के भोगल में रह रही 19 वर्षीय मरियम आरजू नोयार दिन भर अपने कमरे में रोती रहीं क्योंकि युद्धग्रस्त देश के घटनाक्रम ने शांति की उनकी सारी उम्मीदों को तोड़ दिया और उसकी जगह उनके ख्यालों को बुरे सपने से भर दिया। अफगान शरणार्थी नोयार अपने परिवार के साथ सात साल पहले एक सुरक्षित और बेहतर भविष्य की उम्मीद में भारत आ गई थीं। 

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भावुक हुई नोयार कहती हैं कि भारत अब हमारा घर है और प्रत्येक साल 15 अगस्त को हम यहां स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्सव मनाते हैं। लेकिन इस साल 15 अगस्त को जब भारत अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था तो हम अपनी स्वतंत्रता खो बैठे क्योंकि काबुल पर इसी दिन तालिबान ने कब्जा कर लिया। मैं परेशान और दुखी रही और दिन भर अपने कमरे में रोती रही।'' अफगानिस्तान में तालिबान के कब्जे के बाद गहराते संकट के बीच नोयार संयुक्त राष्ट्र उच्चायुक्त (यूएनएचसीआर) कार्यालय के सामने प्रदर्शन करने वाली सैंकड़ों अफगान शरणार्थियों में से एक हैं। 

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अफगानिस्तान के राष्ट्रीय रंगों का पारंपरिक हिजाब पहने नोयार और उसकी दोस्त कायनात यूसुफी (18) वसंत विहार स्थित यूएनएचसीआर कार्यालय के निकट सड़क किनारे में बैठी हुई थीं। यूसुफी 12वीं कक्षा की छात्रा हैं और वह काले डेनिम के अपने कपड़े की ओर इशारा करती हैं, जिसे उन्होंने अपने पारंपरिक पोशाक के साथ पहना रखा था। वह हिजाब लगाए हुई थीं। वह कहती हैं, ‘‘अफगानिस्तान में मैं यह कपड़ा पहनने के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं। तालिबान के लोग मुझे लाठियों और छड़ों से मारेंगे या मुझे गोली मार देंगे। यह सोचकर सिहर जाती हूँ कि हमारे देश की औरतें और लड़कियां किन हालात में होंगी?

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यूसुफी और नोयार दोनों ही अफगान सोलिडरिटी कमेटी की स्वयंसेविका हैं। यह भारत में अफगानिस्तान के शरणार्थियों का शीर्ष संगठन है और इसी ने इस प्रदर्शन का आह्वान किया था। पीटीआई-भाषा ने यहां कई महिला प्रदर्शनकारियों से बातचीत की, जो अफगानिस्तान के अलग-अलग इलाकों की हैं लेकिन कुछ साल पहले या दशकों पहले भारत आ गई हैं। यहां 10 साल की तमन्ना अपनी मां हसाला राहमोनी के साथ प्रदर्शन स्थल पर बैठी हुई थीं। ये नोएडा के अफगान शरणार्थी एन्क्लेव से आई थीं। उन्होंने अपने हाथों में तख्तियां ले रखीं थी जिस पर लिखा था कि ‘कृपया शरण मांगने वाले और शरणार्थियों की मदद करें।

 

 यह 10 साल की बच्ची डॉक्टर बनना चाहती है लेकिन अपने वतन के हाल के घटनाक्रम ने बच्ची और मां का दिल तोड़ दिया है। बच्ची ने कहा कि तालिबान लोगों की हत्या करता है और लड़कियों को विद्यालय जाने नहीं देता और महिलाओं को बाहर निकलने नहीं देता।'' प्रदर्शनकारियों में वैसी भी महिलाएं थीं जो करीब एक दशक से ज्यादा समय से भारत में रह रही हैं। ऐसी ही महिलाओं में से एक जालाश्त अख्तरी 13 साल पहले भारत आई थीं और वह दिल्ली के ‘लिट्ल काबुल' लाजपत नगर में अपने अभिभावकों, तीन बहनों और एक भाई के साथ रहती हैं। अख्तरी ने कहा कि तालिबान बेहद बुरा है और वह फिर अपने पुराने रूप को दिखाएगा।

 

 

 

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