इसरो-नासा का 1.5 अरब डॉलर का निसार उपग्रह का सफल प्रक्षेपण, पृथ्वी की हर धड़कन पर होगी नजर

Edited By Updated: 31 Jul, 2025 02:46 PM

isro nasa successfully launch nisar satellite for global climate monitoring

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक साथ मिलकर एक बड़ा मिशन पूरा किया है। 1.5 अरब डॉलर की लागत से विकसित निसार उपग्रह को बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस...

नेशनल डेस्क: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने एक साथ मिलकर एक बड़ा मिशन पूरा किया है। 1.5 अरब डॉलर की लागत से विकसित निसार उपग्रह को बुधवार को श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। इस उपग्रह का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी की सतह पर होने वाले सूक्ष्मतम बदलावों को लगातार मॉनिटर करना है। निसार उपग्रह का वजन 2393 किलोग्राम है और इसे इसरो के भू-समकालिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) से अंतरिक्ष में छोड़ा गया। यह उपग्रह दुनिया का पहला पृथ्वी-मानचित्रण उपग्रह है जिसमें द्वि-आवृत्ति सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) तकनीक का उपयोग हुआ है। नासा का एल-बैंड रडार और इसरो का एस-बैंड रडार मिलकर निसार को इतने सटीक डेटा इकट्ठा करने में सक्षम बनाते हैं कि यह जंगलों के नीचे, बादलों के पीछे या रात के समय भी पृथ्वी की सतह के सबसे छोटे बदलाव पकड़ सकता है।

सिंथेटिक अपर्चर रडार क्या है?

सिंथेटिक अपर्चर रडार कई बार एक ही क्षेत्र की तस्वीरें लेकर उन्हें जोड़कर उच्च गुणवत्ता वाली छवियां बनाता है। यह पारंपरिक रडार की तुलना में बहुत अधिक सटीक होता है और माइक्रोवेव तरंगों का इस्तेमाल कर पृथ्वी की सतह और वस्तुओं की विशेषताएं पहचानता है।

निसार की पृथ्वी पर नजर

निसार हर 97 मिनट में पृथ्वी की परिक्रमा करता है और लगभग हर 12 दिन में पूरी धरती के लगभग सभी भूमि और बर्फीली सतहों की तस्वीरें लेता है। यह उपग्रह भारत के लिए खास तौर पर उपयोगी होगा क्योंकि भारत जलवायु परिवर्तन के प्रभावों और प्राकृतिक आपदाओं के लिए सबसे संवेदनशील देशों में से एक है।
 

निसार से भारत को क्या लाभ मिलेगा?

निसार उपग्रह से मिलने वाला लगभग वास्तविक समय का मुफ्त डेटा भारतीय वैज्ञानिकों, आपदा प्रबंधकों और नीति निर्माताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होगा। इससे वे हिमालय में ग्लेशियरों की गति पर नजर रख सकेंगे, भूकंप आने से पहले फॉल्ट-लाइन में होने वाले बदलाव का पता लगा सकेंगे, कृषि के चक्रों की निगरानी कर सकेंगे और जल संसाधनों का बेहतर प्रबंधन कर सकेंगे। इसके अलावा, बाढ़, सूखे और भूस्खलन जैसी आपदाओं की भविष्यवाणी में सुधार होगा जिससे आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में तेजी आएगी और अधिक प्रभावी निर्णय लिए जा सकेंगे।

भारत-नासा का सहयोग और मिशन का इतिहास

निसार मिशन लगभग दस वर्षों तक संयुक्त रूप से विकसित किया गया। इसरो और नासा ने अपने-अपने हिस्से के रडार और उपकरणों का विकास, परीक्षण और संयोजन किया। नासा के जेपीएल केंद्र ने एस-बैंड और एल-बैंड रडार को एकीकृत किया और इसरो ने उपग्रह के मेनफ्रेम और पेलोड का संयोजन किया।

प्रक्षेपण के बाद निसार मिशन के चार चरण होंगे: परिनियोजन, कमीशनिंग, विज्ञान संचालन। परिनियोजन के दौरान 12 मीटर व्यास वाला परावर्तक उपग्रह से बाहर निकाला जाएगा। इसके बाद 90 दिन की कमीशनिंग में उपग्रह के सिस्टम और उपकरणों की जांच और अंशांकन होगा। कमीशनिंग पूरा होने के बाद उपग्रह नियमित रूप से वैज्ञानिक डेटा भेजना शुरू करेगा।

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