घर चाहिए तो छोड़ना होगा रोटी और कपड़ा, जानिए क्यों मिडिल क्लास के लिए सपना बन गया है अपना आशियाना

Edited By Updated: 26 Jul, 2025 11:13 AM

it is difficult for a middle class person to buy a house

भारत में रोटी, कपड़ा और मकान को जीवन की तीन सबसे बड़ी जरूरतें कहा गया है। लेकिन आज के दौर में अगर किसी मिडिल क्लास परिवार को मकान चाहिए तो उसे रोटी और कपड़ा भी कुर्बान करना पड़ सकता है। रिपोर्ट्स और हालिया आंकड़ों के मुताबिक आज के समय में एक मिडिल...

नेशनल डेस्क: भारत में रोटी, कपड़ा और मकान को जीवन की तीन सबसे बड़ी जरूरतें कहा गया है। लेकिन आज के दौर में अगर किसी मिडिल क्लास परिवार को मकान चाहिए तो उसे रोटी और कपड़ा भी कुर्बान करना पड़ सकता है। रिपोर्ट्स और हालिया आंकड़ों के मुताबिक आज के समय में एक मिडिल क्लास व्यक्ति को बिना किसी खर्च के 20 साल तक अपनी पूरी सैलरी बचानी होगी, तभी वह एक साधारण घर खरीदने की सोच सकता है।

बीते 5 सालों में प्रॉपर्टी रेट्स दोगुने हो गए

साल 2018 में देश के शीर्ष 8 शहरों में औसतन प्रॉपर्टी की कीमत 5500 रुपए प्रति स्क्वायर फीट थी। वहीं 2023 तक यह दर 11000 रुपए प्रति स्क्वायर फीट तक पहुंच गई। यानी महज 5 सालों में कीमतें 100% तक बढ़ गई हैं, जबकि सैलरी में सिर्फ 33% की बढ़ोतरी हुई है। इस भारी अंतर ने मिडिल क्लास के लिए घर खरीदना लगभग असंभव बना दिया है।

मिडिल क्लास के लिए चुनौती बनी बढ़ती कीमतें

एक आम नौकरीपेशा व्यक्ति अपनी जरूरतों – जैसे रसोई, बच्चों की पढ़ाई, स्वास्थ्य और कपड़े आदि – में हर महीने एक बड़ा हिस्सा खर्च करता है। ऐसे में वह घर खरीदने के लिए पर्याप्त रकम जोड़ ही नहीं पाता। अगर वह अपनी पूरी सैलरी को बिना एक रुपया खर्च किए 20 साल तक बचाए, तभी वह एक 2BHK घर खरीदने की सोच सकता है। यह स्थिति बताती है कि मिडिल क्लास पर कितना आर्थिक दबाव है।

होम लोन भी नहीं बन रहा सहारा

एक समय था जब होम लोन मिडिल क्लास के लिए बड़ा सहारा हुआ करता था। लेकिन अब हालत यह है कि:

  • घरों की कीमतें बहुत ज्यादा हो चुकी हैं

  • लोन की ईएमआई अब सैलरी के एक बड़े हिस्से को निगल जाती है

  • बैंक भी अब उतनी बड़ी रकम लोन देने से हिचक रहे हैं

  • ब्याज दरें स्थिर रहने के बावजूद लोग कर्ज लेने से डर रहे हैं

टैक्स चोरी और काले धन से बिगड़ी बाजार की तस्वीर

रियल एस्टेट सेक्टर में आज भी बड़ी मात्रा में कैश ट्रांजैक्शन और टैक्स चोरी देखने को मिलती है।

बहुत से खरीदार प्रॉपर्टी को कम रजिस्ट्रेशन वैल्यू पर दिखाते हैं और बाकी भुगतान नकद में करते हैं। इससे असली और ईमानदार खरीदार को नुकसान उठाना पड़ता है क्योंकि:

  • उन्हें बाज़ार दर से ज्यादा दाम चुकाना पड़ता है

  • बैंकों से लोन लेना कठिन हो जाता है

  • काले धन से बनी यह नकली मांग कीमतें और बढ़ा देती है

प्री-लॉन्च प्रॉपर्टी खरीद रहे हैं अमीर निवेशक

रिपोर्ट्स के अनुसार बड़े निवेशक और सट्टेबाज प्री-लॉन्च स्टेज में बड़ी संख्या में फ्लैट और घर खरीद लेते हैं। इससे प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही बुक हो जाते हैं और बाजार में मांग का एक झूठा माहौल बन जाता है। इस ‘आर्टिफिशियल डिमांड’ से आम जनता को घर मिलना मुश्किल होता जा रहा है और दाम आसमान छूने लगते हैं।

मुंबई और गुड़गांव की दरें दे रहीं न्यूयॉर्क को टक्कर

आज भारत के प्रमुख शहर जैसे मुंबई और गुड़गांव की प्रॉपर्टी दरें कुछ अंतरराष्ट्रीय शहरों जैसे न्यूयॉर्क से तुलना करने लायक हो चुकी हैं। अंतर बस यह है कि न्यूयॉर्क में आय भी कई गुना अधिक होती है, जबकि भारत में आय का स्तर उसी अनुपात में नहीं बढ़ा है।

क्या कोई समाधान है?

सरकार और नियामक संस्थाओं को इस गंभीर स्थिति पर ध्यान देना होगा:

  • प्रॉपर्टी में कैश डील पर रोक लगाई जानी चाहिए

  • सस्ते और किफायती घरों को बढ़ावा मिलना चाहिए

  • मिडिल क्लास को टैक्स में राहत दी जाए

  • लोन प्रोसेस को सरल और पारदर्शी बनाया जाए

  • हाउसिंग योजनाओं का दायरा और बजट बढ़ाया जाए

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