बनता-टूटता रहा BJP-शिवसेना गठबंधन

Edited By Updated: 12 Nov, 2019 10:55 AM

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महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद का संघर्ष भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के 3 दशक पुराने गठबंधन पर भारी पड़ गया। हालांकि, दोनों दलों के बीच खींचतान  की  यह  पहली घटना नहीं है। 1989 में आधिकारिक रूप से दोनों पार्टियों के साथ आने के बाद कई ऐसे मौके आए जब...

नई दिल्ली: महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री पद का संघर्ष भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना के 3 दशक पुराने गठबंधन पर भारी पड़ गया। हालांकि, दोनों दलों के बीच खींचतान  की  यह  पहली घटना नहीं है। 1989 में आधिकारिक रूप से दोनों पार्टियों के साथ आने के बाद कई ऐसे मौके आए जब भाजपा और शिवसेना के बीच अनबन नजर आई। 

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1991 में अलग लड़ा चुनाव
गठबंधन में लोकसभा और विधानसभा चुनाव लडऩे के बाद जल्द ही दोनों पाॢटयां बी.एम.सी. चुनाव में आमने-सामने आ गईं।  सीट बंटवारे को लेकर शिवसेना सहमत नहीं हुई और भाजपा से उसका गठबंधन टूट गया। इसके बाद छगन भुजबल के शिवसेना छोडऩे पर भी बाला ठाकरे की नाराजगी देखने को मिली।

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1995 में मिलकर बनाई सरकार
1995 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी जबकि दूसरे नंबर पर शिवसेना और तीसरे नंबर भाजपा रही जिसके बाद भाजपा और शिवसेना ने मिलकर सरकार बनाई।

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2014 में अलग लड़ा विधानसभा चुनाव
2012 में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे का निधन हो गया। इसके बाद 2014 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा से शिवसेना की बात नहीं बन पाई और दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ा। चुनाव के बाद शिवसेना भाजपा सरकार में शामिल हो गई और राज्य सरकार के अलावा केंद्र की मोदी सरकार में भी हिस्सेदारी हासिल की। हालांकि, इस दौरान किसान, नोटबंदी और जी.एस.टी. जैसे मुद्दों पर शिवसेना भाजपा की आलोचना करती रही।

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सरकार गठन को लेकर उद्धव की परीक्षा
शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को कांग्रेस और राकांपा का समर्थन मिलने की स्थिति में महाराष्ट्र में अपनी पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का गठन करने में अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिक विश्लेषक ने कहा कि अब उन्हें एक नेता के रूप में अपनी साख साबित करनी होगी जो कांग्रेस और राकांपा जैसी उन पाॢटयों के साथ एक नया राजनीतिक रास्ता बना सकते हैं जो वैचारिक रूप से अलग हैं। विश्लेषक ने कहा कि एक राष्ट्रीय पार्टी के साथ समझौता होगा और यह देखना होगा कि वह (कांग्रेस अध्यक्ष) सोनिया गांधी को उन्हें समर्थन देने के लिए कैसे समझा पाएंगे। क्या वह उग्र ङ्क्षहदुत्व के रुख को नरम करेंगे जिसका सहारा शिवसेना लेती है, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा।  हालांकि पहली बार विधायक बने उनके बेटे आदित्य को पार्टी के मुख्यमंत्री चेहरे के रूप में पेश करने के लिए कुछ क्षेत्रों में मांग उठ रही है। यदि किसी अन्य नेता को मुख्यमंत्री नियुक्त किया जाता है तो मतभेद हो सकते हैं।

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