Edited By Anu Malhotra,Updated: 31 May, 2025 06:55 PM

जब देश की सीमाओं पर खतरा मंडराता है, तो कुछ जांबाज़ उस खतरे के सामने ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही अदम्य साहस दिखाया है बीएसएफ जम्मू की सहायक कमांडेंट नेहा भंडारी ने, जिन्हें सेना प्रमुख (COAS) जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने प्रशस्ति पत्र देकर...
नेशनल डेस्क: जब देश की सीमाओं पर खतरा मंडराता है, तो कुछ जांबाज़ उस खतरे के सामने ढाल बनकर खड़े हो जाते हैं। ऐसा ही अदम्य साहस दिखाया है बीएसएफ जम्मू की सहायक कमांडेंट नेहा भंडारी ने, जिन्हें सेना प्रमुख (COAS) जनरल उपेंद्र द्विवेदी ने प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया है। यह सम्मान उन्हें "ऑपरेशन सिंदूर" के दौरान किए गए अद्वितीय नेतृत्व और बहादुरी के लिए दिया गया।
सीमा की सुरक्षा की कमान महिला अधिकारी के हाथ में
नेहा भंडारी को ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारत-पाकिस्तान की अंतरराष्ट्रीय सीमा (IB) पर तैनात एक बीएसएफ कंपनी की कमान सौंपी गई थी। उनका कार्य था — पाकिस्तानी घुसपैठ की कोशिशों को नाकाम करना, सीमा को सुरक्षित रखना, और हर उकसावे का माकूल जवाब देना। उन्होंने बताया, “हमारी टीम ने हर चुनौती का डटकर सामना किया। हमारी जिम्मेदारी थी कि पाकिस्तान की किसी भी हरकत का सटीक जवाब दें और हमने यही किया।”
महिलाओं की अहम भूमिका, दुश्मन को मिला करारा जवाब
नेहा भंडारी ने खास तौर पर यह भी बताया कि ऑपरेशन के दौरान महिला और पुरुष दोनों कर्मियों ने बिना किसी भेदभाव के अपनी-अपनी ड्यूटी बखूबी निभाई। उन्होंने कहा, “हमारी तैयारियां और चौकसी ही हमारी ताकत है। बीएसएफ के बंकर और पोस्ट इस बात का प्रमाण हैं कि हम हर स्थिति के लिए तैयार हैं।” बीएसएफ के जवानों ने ऑपरेशन के दौरान पाकिस्तान की ओर से हुई हर उकसावे वाली कार्रवाई का कड़ा और निर्णायक जवाब दिया।
क्या है ऑपरेशन सिंदूर?
7 मई 2025 को भारत ने पहलगाम आतंकी हमले के जवाब में ऑपरेशन सिंदूर की शुरुआत की थी। इस सैन्य अभियान का उद्देश्य था — पाकिस्तान और पीओके में मौजूद आतंकी ठिकानों को निशाना बनाना।
भारतीय सशस्त्र बलों ने एक सटीक रणनीति के तहत पाकिस्तान के आतंक समर्थक ढांचों और एयरबेसों पर करारा हमला किया। इस जवाबी कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की ओर से डीजीएमओ स्तर पर बातचीत की गई, जिसके बाद दोनों देशों के बीच सैन्य कार्रवाई को फिलहाल रोकने पर सहमति बनी।
नेहा भंडारी बनीं नई पीढ़ी की प्रेरणा
नेहा भंडारी का यह सम्मान ना सिर्फ महिला अधिकारियों की शक्ति को दर्शाता है, बल्कि यह भी बताता है कि अब भारत की सीमाएं मजबूत हाथों में हैं — चाहे वो पुरुष हों या महिलाएं। उनकी बहादुरी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल बन चुकी है।