Edited By Sahil Kumar,Updated: 22 Dec, 2025 05:28 PM

2020 से 2025 के बीच बिहार में चुनावी रणनीति और संगठन निर्माण के कई अलग-अलग प्रयोग देखने को मिले। इस अवधि में दो प्रमुख प्रयास विशेष रूप से चर्चा में रहे—एक, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की रणनीति, जिसमें सौरभ पांडेय की महत्वपूर्ण भूमिका रही; और दूसरा,...
नेशनल डेस्कः 2020 से 2025 के बीच बिहार में चुनावी रणनीति और संगठन निर्माण के कई अलग-अलग प्रयोग देखने को मिले। इस अवधि में दो प्रमुख प्रयास विशेष रूप से चर्चा में रहे—एक, लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) की रणनीति, जिसमें सौरभ पांडेय की महत्वपूर्ण भूमिका रही; और दूसरा, प्रशांत किशोर द्वारा शुरू किया गया जन सुराज मंच। इन दोनों पहलों के परिणाम यह समझने में मदद करते हैं कि संगठन के भीतर लिए गए फैसले और जमीनी स्तर पर की गई तैयारी चुनावी नतीजों को कैसे प्रभावित करती है।
2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में लोजपा ने स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ा। चिराग पासवान के साथ लंबे समय से जुड़े सौरभ पांडेय ने उम्मीदवार चयन और प्रमुख संगठनात्मक निर्णयों में अहम भूमिका निभाई। उनकी रणनीति का केंद्र स्थानीय समाज में मजबूत पकड़, सामाजिक समीकरणों का संतुलन और हर विधानसभा क्षेत्र की बारीक समझ थी। उम्मीदवारों का चयन मुख्य रूप से उनकी सामाजिक स्वीकार्यता और जमीनी विश्वसनीयता के आधार पर किया गया, न कि केवल औपचारिक योग्यता के आधार पर। यह भी कहा जाता है कि सौरभ पांडेय के बिहार की सभी 243 विधानसभा सीटों में व्यक्तिगत संपर्क थे, जिसके चलते वे मात्र एक सप्ताह के भीतर उपयुक्त उम्मीदवारों की पहचान कर सके। इस रणनीति से पार्टी उन क्षेत्रों में भी मतदाताओं से जुड़ पाई, जहां पहले उसकी पकड़ कमजोर थी।
सौरभ पांडेय ने लोक जनशक्ति पार्टी में व्यापक संगठनात्मक बदलाव की अगुवाई की। उन्होंने युवाओं की भागीदारी, डिजिटल आधुनिकीकरण और संगठनात्मक अनुशासन पर विशेष जोर दिया। चिराग पासवान के नेतृत्व में एक समर्पित टीम खड़ी की गई और बिहार भर में पार्टी का अब तक का सबसे बड़ा सदस्यता अभियान चलाया गया। नए नियमों, सक्रिय आईटी सेल और संगठनात्मक एकजुटता के जरिए पार्टी को नई ऊर्जा मिली और उसकी अलग पहचान मजबूत हुई, जिससे जद(यू) को बड़ा झटका लगा। स्वर्गीय रामविलास पासवान ने भी एक पत्र में स्वीकार किया था कि चिराग पासवान के राजनीतिक उदय में सौरभ पांडेय की भूमिका सबसे निर्णायक रही। पशुपति पारस विद्रोह के दौरान भी पार्टी के अधिकांश प्रमुख नेता चिराग के साथ बने रहे, जो सौरभ द्वारा तैयार किए गए अनुशासित और निष्ठावान संगठन को दर्शाता है।
सौरभ पांडेय ने पूरे प्रदेश में ‘आशीर्वाद यात्रा’ का सुझाव दिया जिसने चिराग पासवान को दोबारा अपने समर्थकों से जोड़ा और यह लोजपा के सबसे सफल जनसंपर्क अभियान मानी गई । प्रभावी ब्रांडिंग के तहत चिराग पासवान को “युवा बिहारी” के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिससे उनकी लोकप्रियता और बढ़ी। ‘बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट’ के विज़न के माध्यम से रोजगार, शिक्षा, बुनियादी ढांचे और सुशासन से जुड़े स्पष्ट और व्यावहारिक नीतिगत सुझाव सामने रखे गए, जिन्हें उनकी व्यवहारिकता और स्पष्टता के लिए सराहना मिली।2020 में किये प्रभावी प्रयासों का असर आज लोजपा को सत्ता में ला खड़ा किया है ।
वहीं दूसरी ओर, प्रशांत किशोर की जन सुराज पहल राज्यभर में व्यापक यात्रा और संवाद पर केंद्रित रही। इस आंदोलन का उद्देश्य जनता से सीधा जुड़ाव बनाना और शासन से जुड़े लक्ष्यों के साथ एक नया राजनीतिक आधार तैयार करना था। हालांकि इस पहल ने सार्वजनिक विमर्श को जन्म दिया और मीडिया में खासा ध्यान आकर्षित किया, लेकिन यह जनसंपर्क चुनावी समर्थन में तब्दील होने में सफल नहीं हो सकी।
2025 तक आते-आते दोनों रणनीतियों के नतीजे साफ तौर पर सामने आ गए। लोजपा ने अपने गठबंधन के भीतर उल्लेखनीय सीटें हासिल कीं और उसकी जीत-दर (विन कन्वर्ज़न रेट) मजबूत रही। इसके विपरीत, जन सुराज को व्यापक प्रयासों के बावजूद चुनावी सफलता नहीं मिल सकी। इन दोनों दृष्टिकोणों का यह अंतर इस बात को रेखांकित करता है कि निरंतर जमीनी संगठन, स्थानीय जरूरतों से जुड़े उम्मीदवारों का चयन और आंतरिक एकता बनाए रखना कितनी निर्णायक भूमिका निभाते हैं। केवल दृश्यता और संवाद ही नहीं, बल्कि रणनीतियों का जमीनी स्तर पर प्रभावी क्रियान्वयन ही अंततः चुनावी सफलता की कुंजी होता है।