School Rules: प्राइवेट स्कूलों की अब नहीं चलेगी मनमर्जी, सरकार ने कसा शिकंजा, नया कानून लागू

Edited By Updated: 13 Dec, 2025 08:15 PM

school rules private schools will no longer be able to act arbitrarily

दिल्ली के लाखों अभिभावकों के लिए राहत की बड़ी खबर सामने आई है। वर्षों से निजी स्कूलों की अनियंत्रित फीस बढ़ोतरी से परेशान माता-पिता को अब कानूनी संरक्षण मिलने जा रहा है। दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों की फीस व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया...

नेशनल डेस्क: दिल्ली के लाखों अभिभावकों के लिए राहत की बड़ी खबर सामने आई है। वर्षों से निजी स्कूलों की अनियंत्रित फीस बढ़ोतरी से परेशान माता-पिता को अब कानूनी संरक्षण मिलने जा रहा है। दिल्ली सरकार ने निजी स्कूलों की फीस व्यवस्था को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया नया कानून औपचारिक रूप से लागू कर दिया है, जिससे अब फीस तय करने की प्रक्रिया मनमर्जी के बजाय तय नियमों और पारदर्शिता के दायरे में होगी।

नए कानून के तहत अब कोई भी निजी स्कूल फीस बढ़ाने से पहले अपनी पूरी वित्तीय स्थिति सार्वजनिक करेगा। स्कूलों को आय, खर्च और प्रस्तावित फीस का विस्तृत ब्यौरा शिक्षा विभाग को देना होगा। विभाग इन आंकड़ों की जांच करेगा और नियमों के अनुरूप पाए जाने पर ही फीस वृद्धि को मंजूरी दी जाएगी। फीस से जुड़ी हर प्रक्रिया- जांच से लेकर निगरानी तक- अब तय ढांचे के तहत चलेगी।

शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने इसे शिक्षा व्यवस्था में बड़ा सुधार बताते हुए कहा कि शिक्षा को मुनाफे का जरिया नहीं बनने दिया जाएगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि किसी भी बच्चे को आर्थिक कारणों से पढ़ाई में नुकसान न उठाना पड़े और दशकों से लंबित इस मुद्दे पर अब ठोस कार्रवाई की गई है।

सरकार ने अभिभावकों को यह अधिकार भी दिया है कि यदि कोई स्कूल नियमों को दरकिनार कर फीस वसूलता है, तो वे सीधे शिकायत दर्ज करा सकते हैं। ऐसी शिकायतों पर त्वरित कार्रवाई का प्रावधान किया गया है, ताकि माता-पिता को अनावश्यक परेशानियों का सामना न करना पड़े।

इस कानून के तहत कैपिटेशन फीस या किसी भी तरह की छिपी हुई वसूली पर पूरी तरह रोक लगा दी गई है। स्कूल केवल उन्हीं सुविधाओं की फीस ले सकेंगे, जिनका छात्र वास्तव में लाभ उठाता है। सभी उपयोगकर्ता-आधारित शुल्क ‘नो-प्रॉफिट, नो-लॉस’ के सिद्धांत पर तय होंगे।

निजी स्कूलों को अब हर मद के लिए अलग-अलग वित्तीय रिकॉर्ड रखना होगा और अपनी संपत्तियों का पूरा विवरण भी तैयार करना अनिवार्य होगा। अभिभावकों से लिया गया पैसा सीधे किसी ट्रस्ट या सोसायटी को ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा। यदि साल के अंत में कोई अतिरिक्त राशि बचती है, तो उसे या तो लौटाना होगा या अगली फीस में समायोजित करना पड़ेगा।

कानून के अनुसार सभी निजी स्कूलों पर एक समान नियम लागू होंगे, चाहे वे अल्पसंख्यक श्रेणी में आते हों या सरकारी जमीन पर बने हों या नहीं। हर स्कूल में एक फीस रेगुलेशन कमेटी बनेगी, जिसमें स्कूल प्रबंधन, शिक्षा विभाग का प्रतिनिधि और लॉटरी के जरिए चुने गए पांच अभिभावक शामिल होंगे। यह कमेटी फीस घटा सकती है या उसे मंजूरी दे सकती है, लेकिन फीस बढ़ाने का अधिकार इसके पास नहीं होगा। एक बार तय हुई फीस तीन साल तक बदली नहीं जा सकेगी।

सरकार का मानना है कि इस कानून से निजी स्कूलों की जवाबदेही बढ़ेगी और अभिभावकों का शिक्षा व्यवस्था पर भरोसा मजबूत होगा। लंबे समय से फीस को लेकर चला आ रहा असंतोष अब दूर होने की उम्मीद की जा रही है, जिसे शिक्षा क्षेत्र में एक अहम सुधार के रूप में देखा जा रहा है।

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