मुफ्त की रेवड़ियों से कर्ज में डूबे राज्य, वेतन-पेंशन में खर्च हो रहा इतना, नई रिपोर्ट में बड़ा खुलासा

Edited By Updated: 06 Nov, 2025 07:22 PM

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पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च की रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेस 2025’ में राज्यों की वित्तीय स्थिति पर गंभीर चिंता जताई गई है। अधिकांश राज्यों का राजस्व घाटा बढ़ रहा है और वे कर्मचारियों के वेतन, पेंशन, ब्याज तथा सब्सिडी पर अधिक खर्च कर रहे हैं। नकद...

नेशनल डेस्क : राज्यों की आर्थिक सेहत को लेकर पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च ने अपनी ताजा रिपोर्ट ‘स्टेट ऑफ स्टेट फाइनेंसेस 2025’ जारी की है। रिपोर्ट में कई राज्यों के राजस्व घाटे में रहने और विकास परियोजनाओं के लिए कर्ज लेने की मजबूरी पर चिंता जताई गई है।

रिपोर्ट के अनुसार, राज्यों की आय का बड़ा हिस्सा कर्मचारियों के वेतन, पेंशन और पुराने कर्ज़ के ब्याज में खर्च हो जाता है। हाल के वर्षों में महिलाओं को नकद राशि देने वाली योजनाओं की संख्या बढ़ने से खजाने पर और दबाव पड़ा है। राज्यों की वित्तीय स्थिति लगातार तनाव में है और वे केंद्र पर अधिक निर्भर होते जा रहे हैं।

राजस्व घाटा और पूंजीगत व्यय में कमी
2023-24 में कई राज्यों का राजस्व घाटा (Revenue Deficit) GSDP का 0.4 प्रतिशत रहा। इसका मतलब यह है कि राज्यों की आमदनी उनके रोजमर्रा के खर्चों को पूरा करने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। बजट अनुमान से 10 प्रतिशत कम राजस्व जुटाने और 9 प्रतिशत कम खर्च करने के कारण विकास परियोजनाओं के लिए पूंजीगत व्यय 20 प्रतिशत तक घट गया। राज्यों की खुद की कर आधारित आय (Own Tax Revenue) केवल GSDP का 6.8 प्रतिशत है। GST लागू होने के बाद भी इससे होने वाली आमदनी उन टैक्सों से कम रही, जिन्हें बदलकर इसे लाया गया था।

प्रतिबद्ध व्यय और सब्सिडी का बढ़ता बोझ
राज्यों ने 2023-24 में अपनी कुल राजस्व आय का 62 प्रतिशत हिस्सा केवल वेतन, पेंशन, ब्याज और सब्सिडी पर खर्च किया। पंजाब, हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु, केरल और हरियाणा में यह 70 प्रतिशत से अधिक रहा। इसके चलते विकास कार्यों के लिए वित्तीय संसाधन कम हो गए। 24 राज्यों ने 3.18 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी पर खर्च किए, जिसमें लगभग आधा हिस्सा बिजली क्षेत्र को गया। 2025-26 के बजट अनुसार 12 राज्य महिलाओं को दिए जाने वाले नकद हस्तांतरण योजनाओं पर 1.68 लाख करोड़ रुपये खर्च करेंगे। कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे राज्य इन योजनाओं के बिना राजस्व घाटे की बजाय सरप्लस में होते।

राज्यों पर बढ़ता कर्ज और केंद्र पर निर्भरता
मार्च 2025 तक राज्यों का कुल बकाया कर्ज GSDP का 27.5 प्रतिशत पहुंच गया, जबकि FRBM कानून के तहत यह सीमा 20 प्रतिशत होनी चाहिए। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य अपनी कुल प्राप्तियों का 68 प्रतिशत हिस्सा केंद्र से प्राप्त करते हैं। केंद्र ने SASCI योजना के तहत बुनियादी ढांचे के लिए 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक ऋण प्रदान किया है। हालांकि, राज्यों की अपनी नीतियों की स्वतंत्रता घट रही है क्योंकि केंद्र द्वारा दिए गए फंड का बड़ा हिस्सा अब शर्तों के साथ आता है।

अमीर और गरीब राज्यों के बीच बढ़ती खाई
उच्च आय वाले राज्य जैसे महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु अपने करों से ज्यादा राजस्व जुटा रहे हैं और विकास के चक्र में हैं। वहीं, बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश जैसे कम आय वाले राज्य सीमित संसाधनों और कम निवेश के कारण आर्थिक दुष्चक्र में फंसे हुए हैं।

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