अमेरिका ने भारत पर 25% टैरिफ एक हफ्ते के लिए टाला, अब 7 अगस्त से लागू होगा फैसला, जानें वजह और असर

Edited By Updated: 01 Aug, 2025 10:39 AM

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अमेरिका ने भारत समेत कई देशों पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। यह टैरिफ 1 अगस्त 2025 से लागू होने वाला था, लेकिन अब इसे 1 सप्ताह के लिए टाल दिया गया है। यानी अब यह टैरिफ 7 अगस्त 2025 से लागू होगा। अमेरिका के इस फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत में...

नेशनल डेस्क: अमेरिका ने भारत समेत कई देशों पर 25% टैरिफ लगाने का ऐलान किया था। यह टैरिफ 1 अगस्त 2025 से लागू होने वाला था, लेकिन अब इसे 1 सप्ताह के लिए टाल दिया गया है। यानी अब यह टैरिफ 7 अगस्त 2025 से लागू होगा। अमेरिका के इस फैसले ने वैश्विक व्यापार जगत में हलचल मचा दी है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने बुधवार को अचानक इस टैरिफ की घोषणा कर दी थी, जिसमें भारत, बांग्लादेश, ब्राजील जैसे देश शामिल हैं। ट्रंप ने साफ कहा था कि यह कदम व्यापार बाधाओं को दूर करने और रूस से जुड़े लेन-देन पर सज़ा देने के तौर पर उठाया गया है।

भारत की प्रतिक्रिया: देशहित में हर कदम

भारत सरकार ने अब तक इस मुद्दे पर संयमित प्रतिक्रिया दी है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने लोकसभा में साफ कहा कि भारत किसी भी देश के दबाव में नहीं आएगा और देशहित में हर संभव कार्रवाई की जाएगी। सरकारी सूत्रों के मुताबिक, भारत अमेरिका से इस मुद्दे पर बातचीत करने को तैयार है और टैरिफ का जवाब नेगोशिएशन टेबल पर दिया जाएगा। भारत का रुख स्पष्ट है कि किसी भी फैसले में 70 करोड़ किसानों और 140 करोड़ नागरिकों के हित को प्राथमिकता दी जाएगी।

अमेरिका चाहता क्या है?

अमेरिका लगातार भारत पर दबाव बना रहा है कि वह अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोले। खासतौर पर अमेरिका चाहता है कि भारत नॉनवेज मिल्क (मांसाहारी चारा खाने वाले मवेशियों का दूध) और जेनेटिकली मोडिफाइड (GM) फसलों को देश में अनुमति दे। ट्रंप प्रशासन की मांग है कि अमेरिका के इन उत्पादों पर भारत टैरिफ को शून्य या न्यूनतम कर दे। इसके बदले में वह कुछ व्यापारिक रियायतें देने को तैयार है।

भारत क्यों नहीं मान रहा अमेरिकी शर्तें?

भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अपने कृषि और डेयरी सेक्टर को किसी भी विदेशी दबाव, विशेष रूप से अमेरिकी दबाव के तहत नहीं खोलेगा। इसके पीछे कई ठोस और सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण कारण हैं। भारत में दूध न सिर्फ एक पोषण स्रोत है बल्कि इसे धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से पवित्र माना जाता है। ऐसे में नॉनवेज चारा खाने वाले मवेशियों से प्राप्त दूध को भारतीय समाज स्वीकार नहीं करता क्योंकि यह देश की सामाजिक भावना के खिलाफ है। इसके अलावा, भारत अपनी खाद्य सुरक्षा, रणनीतिक स्वायत्तता और किसानों के हितों से कोई समझौता नहीं करना चाहता। सरकार का साफ मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच कोई भी व्यापारिक समझौता तभी स्वीकार्य होगा जब वह संतुलित हो और दोनों देशों के हितों की समान रूप से रक्षा करे।

क्यों टला 25% टैरिफ का फैसला?

हालांकि ट्रंप सरकार ने टैरिफ की घोषणा कर दी थी लेकिन अमेरिका की नई अधिसूचना में कहा गया कि यह टैरिफ एक सप्ताह के लिए स्थगित किया जा रहा है। यानी अब यह टैरिफ 7 अगस्त 2025 से प्रभावी होगा। यह निर्णय बैकडोर कूटनीति और वैश्विक दबाव का नतीजा माना जा रहा है। इस एक हफ्ते की राहत के दौरान दोनों देश बातचीत की टेबल पर बैठ सकते हैं और किसी संतुलन वाले समाधान पर पहुंच सकते हैं।

भारत की रणनीति: जवाब में नहीं, संतुलन में विश्वास

भारत सरकार फिलहाल टैरिफ पर कोई सीधी जवाबी कार्रवाई नहीं करना चाहती। सरकार की रणनीति है कि अमेरिका से बातचीत के ज़रिए इस मुद्दे को सुलझाया जाए और अगर जरूरी हुआ तो WTO (विश्व व्यापार संगठन) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों का सहारा भी लिया जा सकता है। भारत साथ ही यह भी चाहता है कि भारतीय उत्पादों को अमेरिकी बाज़ार में बेहतर पहुंच मिले। खासकर फार्मा, टेक्सटाइल और आईटी सेक्टर के लिए।

टैरिफ का क्या असर पड़ेगा?

यदि 7 अगस्त से अमेरिका द्वारा 25 फीसदी टैरिफ लागू किया जाता है तो इसका असर भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों पर पड़ सकता है। खासकर टेक्सटाइल और गारमेंट सेक्टर की लागत बढ़ जाएगी जिससे वैश्विक बाजार में प्रतिस्पर्धा करना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, स्टील और एल्यूमीनियम जैसे उद्योगों के उत्पादों की अमेरिका में मांग घट सकती है क्योंकि टैरिफ के चलते उनकी कीमतें बढ़ेंगी, जिससे अमेरिकी कंपनियाँ दूसरे विकल्पों की ओर रुख कर सकती हैं। इससे भारत के छोटे और मझोले निर्यातकों पर भी दबाव बढ़ेगा जो पहले से ही सीमित संसाधनों के साथ वैश्विक बाज़ार में टिके हुए हैं। हालांकि, भारत के पास इससे निपटने के लिए विकल्प मौजूद हैं। सरकार अन्य देशों के साथ व्यापार साझेदारी को और मज़बूत करने, अमेरिका में लॉबिंग को तेज करने और घरेलू उत्पादों की गुणवत्ता को अंतरराष्ट्रीय स्तर के अनुरूप बनाने जैसे कदमों पर काम कर सकती है ताकि निर्यात पर होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई की जा सके।

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