Brahmin CM of UP: 1989 के बाद UP में क्यों नहीं बना कोई ब्राह्मण CM? फिर 40 विधायकों की 'पावर डिनर' से क्यों हिली BJP की आलाकमान!

Edited By Updated: 30 Dec, 2025 04:24 PM

why has no brahmin become the cm of up after 1989

उत्तर प्रदेश  में ठंड के कहर के बीच वहां की राजनीतिक में 'जातीय गौरव' और 'सत्ता में हिस्सेदारी' की बहस को लेकर माहौल गरमा गया है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में  बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की एक गुप्त बैठक ने सूबे का सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंचा...

नेशनल डेस्क : उत्तर प्रदेश  में ठंड के कहर के बीच वहां की राजनीतिक में 'जातीय गौरव' और 'सत्ता में हिस्सेदारी' की बहस को लेकर माहौल गरमा गया है। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में  बीजेपी के ब्राह्मण विधायकों की एक गुप्त बैठक ने सूबे का सियासी पारा सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है। 1989 के बाद से सूबे की कमान किसी ब्राह्मण चेहरे के पास न होने का दर्द अब सार्वजनिक रूप से छलकने लगा है। डिटेल में जानते हैं क्या है पूरा विवाद  

क्या है पूरा विवाद?

मामले की शुरुआत 23 दिसंबर को हुई, जब विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान कुशीनगर से बीजेपी विधायक पंचानंद (पी.एन.) पाठक के सरकारी आवास पर एक 'सहभोज' का आयोजन किया गया। इस औपचारिक मुलाकात में 40 से ज्यादा ब्राह्मण विधायकों की मौजूदगी ने इसे राजनीतिक रूप दे दिया।

इस बैठक की भनक लगते ही यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी ने कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने इसे पार्टी के संविधान के खिलाफ बताते हुए विधायकों को 'नसीहत और चेतावनी' जारी कर दी। हालांकि, पी.एन. पाठक ने सोशल मीडिया पर पलटवार करते हुए कहा कि जिससे यह स्पष्ट हो गया कि यह लड़ाई अब विचारधारा और वर्चस्व की ओर मुड़ चुकी है।

ब्राह्मणों का 'स्वर्ण युग' और फिर वनवास

आजादी के बाद से 1989 तक यूपी की सत्ता पर ब्राह्मण समाज का दबदबा रहा। गोविंद वल्लभ पंत से लेकर नारायण दत्त तिवारी तक सूबे को 6 ब्राह्मण मुख्यमंत्री मिले जिन्होंने लगभग 23 साल तक शासन किया। लेकिन 1989 में एन.डी. तिवारी के पद छोड़ने के बाद यह सिलसिला थम गया।

यूपी में किस जाति के कितने मुख्यमंत्री:

आजादी के बाद से अब तक यूपी में कुल 21 मुख्यमंत्री हुए हैं। जातिगत आंकड़ों पर नजर डालें तो स्थिति कुछ इस प्रकार है:

जाति

मुख्यमंत्रियों की संख्या

प्रमुख नाम

ब्राह्मण

6

गोविंद वल्लभ पंत, एनडी तिवारी (सबसे लंबे समय तक राज)

ठाकुर

5

वीपी सिंह, राजनाथ सिंह, योगी आदित्यनाथ

यादव

3

मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव, राम नरेश यादव

वैश्य

3

चंद्रभान गुप्ता, बाबू बनारसी दास, राम प्रकाश गुप्ता

दलित

1

मायावती (4 बार मुख्यमंत्री)

लोध

1

कल्याण सिंह

जाट/कायस्थ

1-1

चौधरी चरण सिंह / डॉ. सम्पूर्णानन्द

मंडल-कमंडल और बदलती राजनीति

1990 के दशक में आई 'मंडल' की लहर ने यूपी की राजनीति को OBC और दलित राजनीति के इर्द-गिर्द समेट दिया। इसके बाद से सपा, बसपा और बीजेपी ने कई बार सरकारें बनाईं, लेकिन सीएम की कुर्सी पर या तो ठाकुर, यादव, लोध या दलित चेहरा ही बैठा। बीजेपी ने पिछले 32 सालों में कल्याण सिंह (लोध), राजनाथ सिंह (ठाकुर), राम प्रकाश गुप्ता (वैश्य) और योगी आदित्यनाथ (ठाकुर) को मौका दिया, लेकिन ब्राह्मण समाज को नेतृत्व का अवसर नहीं मिल सका।

2027 की आहट और ब्राह्मणों की बेचैनी

राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि ब्राह्मण विधायक अब केवल 'वोट बैंक' बनकर नहीं रहना चाहते। वे सत्ता की बागडोर में अपना पुराना हक मांग रहे हैं। 2027 के चुनाव से पहले विधायकों की यह एकजुटता बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

 

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