पेट्रोल-डीजल और शराब-बीयर पर GST क्यों नहीं? जानिए सरकारें क्यों नहीं चाहती टैक्स में बदलाव

Edited By Updated: 04 Sep, 2025 05:24 PM

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जब भी जीएसटी (GST) यानी वस्तु एवं सेवा कर की बात होती है, तो आम लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठता है "पेट्रोल-डीजल और शराब-बीयर पर GST क्यों नहीं लगता?" आखिर ये भी तो रोजमर्रा की जरूरी चीजें हैं, जिनके दाम सीधे हमारी जेब पर असर डालते हैं। लेकिन सच...

नेशनल डेस्क: जब भी जीएसटी (GST) यानी वस्तु एवं सेवा कर की बात होती है, तो आम लोगों के मन में एक सवाल जरूर उठता है "पेट्रोल-डीजल और शराब-बीयर पर GST क्यों नहीं लगता?" आखिर ये भी तो रोजमर्रा की जरूरी चीजें हैं, जिनके दाम सीधे हमारी जेब पर असर डालते हैं। लेकिन सच ये है कि न केंद्र सरकार और न ही राज्य सरकारें इन्हें GST के दायरे में लाने की इच्छुक हैं। वजह साफ है इनसे मिलने वाला बड़ा टैक्स रेवेन्यू...

पेट्रोल-डीजल पर टैक्स का गणित

भारत में पेट्रोल और डीजल पर दो स्तरों पर टैक्स वसूला जाता है एक तरफ केंद्र सरकार एक्साइज ड्यूटी लगाती है, तो दूसरी ओर राज्य सरकारें वैट (वैल्यू एडेड टैक्स) वसूलती हैं। इन दोनों टैक्सों की वजह से पेट्रोल-डीजल की कीमतें देशभर में अलग-अलग होती हैं और उपभोक्ताओं पर भारी बोझ पड़ता है। अगर इन दोनों उत्पादों को GST (वस्तु एवं सेवा कर) के तहत लाया जाए, तो एक्साइज ड्यूटी और वैट हटाकर एक समान टैक्स लगाया जा सकता है। इससे पूरे देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतें एक समान हो सकती हैं और उपभोक्ताओं को राहत मिल सकती है। माना जा रहा है कि यदि इन्हें GST के सबसे ऊंचे स्लैब यानी 40% में भी रखा जाए, तब भी कुल टैक्स मौजूदा दर से कम होगा, क्योंकि वर्तमान में कई राज्यों में इन पर कुल टैक्स 60% से भी अधिक है। हालांकि, इसका सीधा असर केंद्र और राज्य सरकारों की आमदनी पर पड़ेगा, इसलिए वे इस बदलाव को लेकर उत्साहित नहीं हैं।

राज्यों को क्यों है डर?

राज्य सरकारों के लिए पेट्रोल और डीजल पर लगने वाला वैट राजस्व का एक बड़ा और स्थायी स्रोत है। अगर इन उत्पादों को GST के तहत लाया जाता है, तो राज्यों को न केवल अपनी टैक्स नीति पर नियंत्रण खोना पड़ेगा बल्कि उन्हें केंद्र सरकार से मिलने वाले टैक्स हिस्से पर निर्भर रहना होगा। इससे उनकी आर्थिक स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है और मौजूदा टैक्स दर के मुकाबले राजस्व में भी भारी कमी आ सकती है। यही वजह है कि अधिकांश राज्य सरकारें इस बदलाव के पक्ष में नहीं हैं और उन्होंने GST काउंसिल की बैठकों में बार-बार इसका विरोध किया है, जिससे अब तक पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाने का कोई ठोस निर्णय नहीं लिया जा सका है।

GST काउंसिल क्यों नहीं करती चर्चा?

GST काउंसिल देश में टैक्स से जुड़े सभी महत्वपूर्ण फैसले लेने वाली सर्वोच्च संस्था है, जिसमें केंद्र सरकार और सभी राज्यों के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। पेट्रोल और डीजल को GST के दायरे में लाने के लिए यह आवश्यक है कि काउंसिल के सभी सदस्य इस प्रस्ताव के पक्ष में हों और केंद्र सरकार भी इस पर सहमति दे। हालांकि, अब तक किसी भी काउंसिल बैठक में इस मुद्दे को गंभीरता से नहीं उठाया गया है। हाल ही में हुई 55वीं GST काउंसिल की बैठक में केवल एविएशन टरबाइन फ्यूल यानी हवाई जहाज में इस्तेमाल होने वाले ईंधन को GST में लाने पर चर्चा हुई थी, लेकिन वह प्रस्ताव भी पूरी तरह खारिज कर दिया गया। इससे साफ है कि पेट्रोल-डीजल को GST के तहत लाने को लेकर न तो राज्यों में सहमति है और न ही यह फिलहाल काउंसिल की प्राथमिकताओं में शामिल है।

शराब-बीयर भी GST के बाहर, क्यों?

भारत में शराब और बीयर पर GST नहीं लगाया जाता, और इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि राज्यों को इससे मिलने वाला राजस्व बेहद अहम होता है। शराब पर दो तरह के टैक्स लगाए जाते हैं— निर्माण के समय उत्पाद शुल्क (Excise Duty) और बिक्री पर वैट (VAT)। हर राज्य इन टैक्स की दरें अपने हिसाब से तय करता है, जैसे कर्नाटक में शराब पर 20% वैट लगता है, जबकि महाराष्ट्र में देशी शराब पर 25% और विदेशी शराब पर 35% तक वैट लगाया जाता है। इसी कारण देश के अलग-अलग हिस्सों में शराब की कीमतों में भारी अंतर देखने को मिलता है। शराब से होने वाली इस कमाई की ताकत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कर्नाटक, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य इससे हर साल हजारों करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित करते हैं। यही कारण है कि राज्य सरकारें शराब को GST के दायरे में लाने का विरोध करती हैं, क्योंकि ऐसा होने पर उन्हें टैक्स दरें तय करने की स्वतंत्रता नहीं मिलेगी और उनका एक बड़ा आय स्रोत कमजोर हो सकता है।

क्या वादे किए थे नेताओं ने?

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यह दावा किया था कि अगर देश में एथेनॉल का उत्पादन बढ़ाया जाए, तो पेट्रोल 55 रुपये और डीजल 50 रुपये प्रति लीटर की दर पर उपलब्ध कराया जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा था कि एथेनॉल का निर्माण म्यूनिसिपल वेस्ट और लकड़ी के बूरे से किया जाएगा और इसके लिए पांच विशेष प्लांट स्थापित किए जाएंगे। लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल अलग निकली। अब तक इन वादों के तहत स्थापित किसी भी प्लांट से एक लीटर भी एथेनॉल नहीं बना है। जो 627 करोड़ लीटर एथेनॉल अब तक तैयार हुआ है, उसमें 56% हिस्सा गन्ने से और बाकी अनाज से बनाया गया है। म्यूनिसिपल वेस्ट या लकड़ी के बूरे का इसमें कोई योगदान नहीं रहा। इसके अलावा, एक लीटर एथेनॉल बनाने में लगभग 3,000 लीटर पानी की खपत होती है, जिससे यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या वाकई यह पर्यावरण के लिए अनुकूल विकल्प है या फिर यह दावा भी महज एक राजनीतिक जुमला साबित हुआ।

क्या GST से कीमतें घटेंगी?

बिलकुल, अगर पेट्रोल-डीजल और शराब-बीयर को GST के दायरे में लाया जाए, तो इन पर एक समान दर से टैक्स लगाया जा सकता है, जिससे पूरे देश में इनकी कीमतें एक जैसी हो जाएंगी और उपभोक्ताओं को महंगाई से बड़ी राहत मिल सकती है। मौजूदा व्यवस्था में केंद्र और राज्य सरकारें अपने-अपने हिसाब से टैक्स लगाकर इन उत्पादों की कीमतों को प्रभावित करती हैं, जिससे न सिर्फ मूल्य में असमानता रहती है, बल्कि उपभोक्ताओं की जेब पर भी अतिरिक्त बोझ पड़ता है। लेकिन चूंकि इन वस्तुओं से सरकारों को बड़ा आर्थिक लाभ होता है और यह उनके प्रमुख राजस्व स्रोतों में से एक हैं, इसलिए केंद्र और राज्य सरकारें इन्हें GST में लाने के पक्ष में नहीं हैं और इस दिशा में कोई ठोस कदम उठाने से बचती रही हैं।

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