धन की आवक बढ़ाती है ये चीज, दिवाली से पहले घर ले आएं

Edited By Updated: 14 Oct, 2017 09:58 AM

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मानव शरीर ईश्वर द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण वस्तु या घर है

मानव शरीर ईश्वर द्वारा रचित एक महत्वपूर्ण वस्तु या घर है। इसके विकास के लिए मुख्यत: तीन प्रकार की शक्तियों- इच्छा शक्ति, ज्ञान शक्ति और क्रिया शक्ति की आवश्यकता होती है। इन तीनों शक्तियों की प्राप्ति के लिए भी हमें तीन प्रकार की ऊर्जा, ध्यान, चिंतन और मनन की आवश्यकता पड़ती है। जब ये तत्व हमारे शरीर में विकसित हो जाते हैं तो हम दिव्य क्षमता प्राप्त कर लेते हैं। इसके साथ ही हमें दिव्य ब्रह्मांडीय शक्ति भी प्राप्त होती है।


श्री यंत्र मूलत: श्री एवं यंत्र इन दो शब्दों के योग से बना है। भारत में तो आदिकाल से ‘श्री’ कह कर बुलाए जाने की परम्परा रही है। श्रीयंत्र को लक्ष्मी का यंत्र माना जाता है। घरों में श्रीयंत्र का उपयोग धन-संपदा तथा समृद्धि प्राप्त करने के लिए किया जाता है। दिवाली से पहले इस यंत्र को घर ले आएं फिर देखें कैसे बढ़ती है धन की आवक। ‘श्रीयंत्र’ शब्द की अगर हम संधि-विच्छेद करें तो यह अर्थ प्राप्त होता है। ‘श्री’ का अर्थ है लक्ष्मी और यंत्र है घर-लक्ष्मी का घर अर्थात श्रीयंत्र।


इस यंत्र में अष्टदल और षोडश दल कमल अंकित होते हैं। श्रीयंत्र बिंदु, त्रिकोण, अष्टकोण, अंतर्दशार, बहिर्दशार, चतुर्दशार, अष्टिदल, षोडश दल, उसके बाहर तीन वृत्त और त्रिरेखात्मक भूपुर से बना होता है, जिसमें 43 त्रिकोण, 28 मर्म स्थान तथा 24 संधियां (तीन रेखाओं के मिलने के स्थान को मर्म तथा दो रेखाओं के मिलने के स्थान को संधि कहा जाता है) होती हैं। इसका केंद्रीय बिंदु ब्रह्मांडीय जीवन चक्र की प्रक्रिया में सतत होने वाले अलौकिक हस्तक्षेप का प्रतीक है।


43 त्रिकोणों में अंक शास्त्र के आधार पर 4 एवं 3 का योग 7 है, जो एक अनूठा अंक है। इसे संपूर्ण विश्व में सौभाग्यशाली माना जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि हम सभी जानते हैं कि दुनिया में सात महासागर और सात महाद्वीप तो हैं ही सप्ताह में भी सात ही दिन होते हैं और संगीत में भी सात ही स्वर होते हैं। इसी प्रकार मूल रंग सात होते हैं और हमारे शरीर में भी सात ही चक्र होते हैं। अष्टदल पंखुड़ियां साधकों द्वारा प्राप्त की जाने वाली अष्ट सिद्धियों का प्रतीक हैं। इसका बाहरी वृत्त श्रीयंत्र विभिन्न प्रकार की ऊर्जाओं के केंद्रित होने का परिचायक है। 


श्रीयंत्र स्वर्ण, रजत, ताम्र, रत्न, प्रस्तर, अष्ट धातु आदि किसी भी चीज का बना हुआ हो सकता है। ताम्रपत्र पर उत्कीर्ण किया गया श्रीयंत्र 12 वर्ष तक, चांदी का बना यंत्र 22 वर्षों तक, सोने का निर्मित श्रीयंत्र सदैव प्रभावी रहता है। 


ताम्रपत्र के यंत्र की पूजा करने से शांति व चांदी के यंत्र से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। शत्रु पर विजय एवं असाध्य कार्य को सिद्धि करने के लिए स्वर्ण से निर्मित यंत्र का प्रयोग किया जाता है। स्फटिक के यंत्र की पूजा से सभी कार्यों में सफलता तथा मोक्ष प्राप्त होता है।


रत्नों पर निर्मित यंत्र विशेष फलदायक होता है लेकिन चार तोले से अधिक वजन का रत्न का यंत्र प्रभावी नहीं होता। दस भाग सोना, बारह भाग तांबा तथा सोलह भाग चांदी को सही अनुपात में मिलाकर बनाए गए त्रिधातु पर सविधि उत्कीर्ण किया गया श्रीयंत्र सिद्धि प्रदान करता है।


शास्त्रों का निर्देश है कि सीसा (रांगा), पीतल, कांसा, लकड़ी, वस्त्र और दीवार पर श्रीयंत्र को कभी अंकित न करें। यंत्र की रेखाओं के टेढ़ी (वक्र) होने पर भी यंत्र विपरीत फलदायक होता है।


यंत्र में किसी भी प्रकार का दोष आ जाने पर अथवा खंडित हो जाने पर उसे विसर्जित कर दें। यंत्र का निर्माण शास्त्रीय विधान से ही करें। यंत्र की विधिवत प्राण-प्रतिष्ठा एवं नित्य आवरण पूजा करने से ही शास्त्रोक्त फल मिलता है अन्यथा नहीं।


श्रीयंत्र ऊर्जा का वह भंडार है जो किसी भी व्यक्ति का कायाकल्प कर सकता है। लेकिन इसके लिए शास्त्रीय पक्ष से परिचित होना आवश्यक है। मानव शरीर में भी ‘एकरूपता’ है। ‘यद् ब्राह्मांडे तत् पिण्डे’ सिद्धांतानुसार जो कुछ भी इस ब्रह्मांड में है, वह सब इस देह में है और उसी का समग्र रेखांकन श्रीयंत्र में हैं।

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