शहीद करतार सिंह सराभा की जयंती पर विशेष लेख

Edited By Riya bawa,Updated: 24 May, 2020 12:29 PM

special article on the birth anniversary of shaheed kartar singh sarabha

गदर पार्टी के हीरो और आजादी की लड़ाई में शहीदे आजम भगत सिंह सहित क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत शहीद करतार सिंह सराभा की जयंती (24 MAY) पर विशेष लेख भज रहा हूँ। आशा है आप इसे अपने सुप्रतिष्ठित पत्र में स्थान...

गदर पार्टी के हीरो और आजादी की लड़ाई में शहीदे आजम भगत सिंह सहित क्रांतिकारियों के प्रेरणास्रोत शहीद करतार सिंह सराभा की जयंती  (24 MAY) पर विशेष लेख भज रहा हूँ। आशा है आप इसे अपने सुप्रतिष्ठित पत्र में स्थान देने की कृपा करेंगे। हार्दिक आभार।

जयंती विशेष
भगत सिंह सहित क्रांतिकारियों के प्रेरणापुंज: शहीद करतार सिंह सराभा
अरुण कुमार कैहरबा
सेवा देश दी जिंदड़ीए बड़ी ओखी,
गल्लां करनियां ढेर सुखल्लियां ने।
जिन्नां देश सेवा विच पैर पाइया
उन्नां लख मुसीबतां झल्लियां ने।

करतार सिंह सराभा की ये पंक्तियां उनकी सोच, विचारों व कार्यों को दर्शाने वाली हैं। इन पंक्तियों में वे कोरी बातों से आगे बढ़ कर देश की सेवा के लिए लाखों मुसीबतें झेलने के लिए खुद को व युवाओं को तैयार रहने की बात कर रहे हैं। आजादी की लड़ाई में जिन भगत सिंह को शहीदे आजम कहा जाता है, उनके भी करतार सिंह प्रेरणास्रोत रहे। भगत सिंह करतार सिंह की फोटो हमेशा अपने पास रखते थे। जब उन्हें अंग्रेजों ने गिरफ्तार किया था, तब उनकी जेब से सराभा की फोटो मिली थी। भगत सिंह ने अपनी मां को सराभा की फोटो दिखाते हुए कहा था कि यह मेरे हीरो हैं। लेख के शुरू में दी गई करतार सिंह सराभा के गीत की ये पंक्तियां उधम सिंह हमेशा अपनी जेब में रखा करते थे।

भारत को आजाद करवाने और व्यापक परिवर्तन का लक्ष्य लेकर विदेशों में रह रहे भारतीयों द्वारा शुरू किया गया गदर आंदोलन आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस आंदोलन के अहम किरदारों में से एक हैं-करतार सिंह सराभा। छोटी-सी उम्र में ही उनके मन में भारत को आजाद करवाने की चाह बलवती हो उठी थी। शिक्षा हासिल करने के लिए अमेरिका में गए करतार सिंह वहां आजादी के लिए सक्रिय लोगों के सम्पर्क में आए और गदर पार्टी की नींव रखी गई तो पार्टी के अखबार का जिम्मा करतार सिंह को सौंपा गया। ‘शहीद उधम सिंह की आत्मकथा’ के लेखक सुभाष चन्द्र ने बताया है कि अखबार में सराभा बड़ा दिलचस्प विज्ञापन छापते थे- ‘जरूरत है जोशीले..बहादुर सैनिकों की। तनख्वाह-मौत, इनाम  -शहादत, पेंशन-आजादी, कार्यक्षेत्र-हिंदोस्तान।’
आजादी के सपने को साकार करने के लिए अनेक देशों की यात्रा करते हुए भारत पहुँचे और लोगों को लामबंद करना शुरू किया। क्रांतिकारी सरगर्मियों के कारण करतार ने साढ़े उन्नीस वर्ष की उम्र में ही हंसते-हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया और देश के लिए कुर्बान होने वाले वीरों में अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित करवाया।

पंजाब के लुधियाना शहर से करीब 15मील की दूरी पर स्थित सराभा गाँव में करतार सिंह का जन्म 24 मई, 1896 को माता साहिब कौर की कोख से हुआ। करतार के बचपन में ही पिता मंगल सिंह का देहांत हो गया था। करतार सिंह की एक छोटी बहन धन्न कौर भी थी। दोनों बहन-भाइयों का पालन-पोषण दादा बदन सिंह ने किया। करतार के तीन चाचा-बिशन सिंह, वीर सिंह व बख्शीश सिंह ऊंची सरकारी पदवियों पर काम कर रहे थे। करतार की प्रारंभिक शिक्षा लुधियाना के स्कूलों में हुई। बाद में उसे उड़ीसा में अपने चाचा के पास जाना पड़ा। उड़ीसा उन दिनों बंगाल प्रांत का हिस्सा था, जो राजनीतिक रूप से अधिक जागरूक और सरगर्म था। वहां के माहौल में सराभा ने स्कूली शिक्षा के साथ अन्य ज्ञानवर्धक पुस्तकें पढऩा भी शुरू किया। दसवीं कक्षा पास करने के उपरांत उसके परिवार ने उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए उसे अमेरिका भेजने का निर्णय लिया और 1 जनवरी, 1912 को सराभा ने अमेरिका की धरती पर पांव रखा। उस समय उसकी आयु पंद्रह वर्ष से कुछ महीने ही अधिक थी। किताबों से मिली चेतना के बाद अमेरिका जैसे आज़ाद देश में रहते हुए करतार के मन में राष्ट्रीय अस्मिता व आत्मसम्मान के साथ जीने की इच्छा पैदा हुई। एक बुजुर्ग महिला के घर में किराएदार के रूप में रहते हुए, जब अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर महिला द्वारा घर को फूलों व वीर नायकों के चित्रों से सजाया गया तो सराभा ने इसका कारण पूछा। महिला के यह बताने पर कि अमेरिका के स्वतंत्रता दिवस पर नागरिक ऐसे ही घर सजा कर खुशी का इज़हार करते हैं तो सराभा के मन में भी यह भावना जागृत हुई कि हमारे देश की आज़ादी का दिन भी होना चाहिए।

अमेरिका में उन दिनों गोरे लोगों के नस्लीय भेदभाव से दुखी भारतीय मज़दूरों को संगठित करने के प्रयास चल रहे थे। करतार सिंह इस काम में लगे बाबा सोहन सिंह भकना, हरनाम सिंह टुंडीलाट व काशीराम व ज्वाला सिंह ठ_ीआं के सम्पर्क में आए। ज्वाला सिंह की प्रेरणा से वे बर्कले विश्वविद्यालय के विद्यार्थी हो गए। इस विश्वविद्यालय में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थी दिसंबर, 1912 में लाला हरदयाल के संपर्क में आए, जो उन्हें भाषण देने गए थे। लाला हरदयाल ने विद्यार्थियों के सामने भारत की गुलामी के संबंध में काफी जोशीला भाषण दिया। लाला हरदयाल और भाई परमानंद के विचारों से प्रभावित होकर धीरे-धीरे सराभा के मन में देशभक्ति की तीव्र भावनाएं जागृत हुईं और वह देश के लिए मर-मिटने का संकल्प लेने की ओर अग्रसर होने लगा। 21 अप्रैल, 1913 को कैलिफोर्निया में रह रहे भारतीयों ने एकत्र हो एक क्रांतिकारी संगठन गदर पार्टी की स्थापना की। गदर पार्टी का मुख्य उद्देश्य सशस्त्र संघर्ष द्वारा भारत को अंग्रेजी गुलामी से मुक्त करवाना और लोकतांत्रिक सरकार की स्थापना करना था। 1 नवंबर, 1913 को इस पार्टी ने गदर नामक एक समाचार पत्र का प्रकाशन करना प्रारंभ किया। यह समाचार पत्र हिंदी और पंजाबी के अलावा बंगाली, गुजराती, पश्तो और उर्दू में भी प्रकाशित किया जाता था। गदर का सारा काम करतार सिंह ही देखते थे। यह समाचार पत्र सभी देशों में रह रहे भारतीयों तक पहुंचाया जाता था। इसका मुख्य उद्देश्य अंग्रेजी शासन की क्रूरता और हकीकत से लोगों को अवगत करना था। कुछ ही समय के अंदर गदर पार्टी और समाचार पत्र दोनों ही लोकप्रिय हो गए।

1914 में प्रथम विश्व युद्ध के समय अंग्रेजी सेना युद्ध के कार्यों में अत्याधिक व्यस्त हो गई। इस अवसर का पूरा फायदा उठाते हुए गदर पार्टी ने अपनी सक्रियता बढ़ा दी। करतार सिंह पार्टी के अन्य साथियों के साथ कोलम्बो होते हुए कलकत्ता पहुंचे। युगांतर के संपादक जतिन मुखर्जी के परिचय पत्र के साथ करतार सिंह रास बिहारी बोस से मिले। करतार सिंह ने बोस को बताया कि जल्द ही 20,000 अन्य गदर कार्यकर्ता भारत पहुंच सकते हैं। सरकार ने विभिन्न पोतों पर गदर पार्टी के कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार किया। इसके बावजूद लुधियाना के एक गाँव में गदर सदस्यों की सभा हुई। सभा में गतिविधियों के संचालन में आर्थिक संकट से निपटने की रणनीति बनाई गई। 25 जनवरी, 1915 को रास बिहारी बोस के आने के बाद 21 फरवरी से सक्रिय आंदोलन शुरू करना तय हुआ। एक मुखबिर ने अंग्रेजी पुलिस के सामने दल की योजना का भंडाफोड़ कर दिया। पुलिस ने कई गदर कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया। इस अभियान की असफलता के बाद सभी लोगों ने अफगानिस्तान जाने की योजना बनाई। लेकिन बीच रास्ते में ही करतार सिंह ने अपने गिरफ्तार साथियों के पास वापिस लौटने का निर्णय कर लिया। 2 मार्च, 1915 को करतार सिंह अपने दो साथियों के साथ वापिस लायलपुर, चौकी संख्या-5 पहुंचे। वहाँ सेना के अफसरों से विद्रोह करते हुए उन्हें साथियों के साथ गिरफ्तार कर लिया गया।

13 सितंबर, 1915 को करतार सिंह और उनके साथियों को लाहौर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। अंग्रेजों के विरुद्ध पहली साजिश में 24 लोगों को फांसी की सजा दी गई। विद्रोहियों में सबसे खतरनाक ठहराते हुए करतार सिंह को 16 नवंबर, 1915 को छह अन्य साथियों के साथ फांसी दे दी गई। करतार सिंह सराभा गदर पार्टी के उसी तरह नायक बने, जैसे बाद में 1925-31 के दौरान भगत सिंह क्रांतिकारी आंदोलन के महानायक बने। यह अस्वाभाविक नहीं है कि करतार सिंह सराभा ही भगत सिंह के सबसे लोकप्रिय नायक थे। भगत सिंह करतार सिंह की इस $गज़ल को अक्सर गुनगुनाया करते थे-
यहीं पाओगे महशर में जबां मेरी बयाँ मेरा,
मैं बन्दा हिन्द वालों का हूँ है हिन्दोस्तां मेरा।
मैं हिन्दी ठेठ हिन्दी जात हिन्दी नाम हिन्दी है,
यही मजहब यही फिरका यही है खानदां मेरा।
मैं इस उजड़े हुए भारत का यक मामूली जर्रा हूँ,
यही बस इक पता मेरा यही नामो-निशाँ मेरा।
मैं उठते-बैठते तेरे कदम लूँ चूम ऐ भारत!
कहाँ किस्मत मेरी ऐसी नसीबा ये कहाँ मेरा।
तेरी खिदमत में अय भारत! ये सर जाये ये जाँ जाये,
तो समझूँगा कि मरना है हयाते-जादवां मेरा।

(अरुण कुमार कैहरबा)
 

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