शादी एक सांस्कृतिक बंधन है न कि एक अनुबंध

Edited By ,Updated: 17 Mar, 2023 06:19 AM

marriage is a cultural bond not a contract

केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते ही एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में है।

केंद्र सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने का विरोध करते ही एक बार फिर यह मुद्दा चर्चा में है। ग्लोबल सर्वे के आंकड़ों के अनुसार भारत की 3 प्रतिशत आबादी खुद को गे या लैस्बियन मानती है। वहीं 9 प्रतिशत आबादी अपने आप को बाय-सैक्सुअल मानती है और 2 प्रतिशत लोग खुद को असैक्सुअल समझते हैं। भारत में अभी समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं मिली है। लेकिन सेम सैक्स मैरिज अमरीका सहित दुनिया के 32 देशों में लीगल है।

समलैंगिक विवाह को लेकर सबसे पहला कानून नीदरलैंड ने बनाया था। इस देश में साल 2000 में सेम सैक्स मैरिज को लेकर कानून लाया गया था। एक तरफ जहां 32 देशों में समलैंगिक विवाह कानूनी अपराध नहीं है तो वहीं दुनिया के 10 देश ऐसे भी हैं जहां समलैंगिक संबंध या विवाह अपराध की श्रेणी में है और ऐसा करने वालों को सीधे मौत की सजा दी जाती है। ऐसे देशों की सूची में पहला नाम सऊदी अरब का आता है। यहां समलैंगिक संबंध को अपराध माना जाता है।

इस देश में ऐसे मामले सामने आने पर दोषियों को पहली बार कोड़ों से मारा जाता है और दूसरी बार मौत की सजा दी जाती है। अफगानिस्तान में भी समलैंगिक संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है। इस देश में इसे बीमारी की तरह माना जाता है। यहां ऐसे मामलों में ऑनर किलिंग होना आम बात है। कानूनी तौर पर इस मामले में समलैंगिक लोगों को मौत की सजा दी जाती है। इन दोनों देशों के अलावा यमन, ईरान, ब्रुनेई, कतर, सोमालिया, सूडान, यूनाइटेड अरब अमीरात में ही समलैंगिकता को लेकर ऐसे ही नियम हैं।

पाकिस्तान में समलैंगिक संबंध बनाने पर जुर्माना या 2 साल से लेकर उम्रकैद की सजा भी हो सकती है। भारत में साल 2018 से पहले तक भारतीय दंड संहिता (आई.पी.सी.) में समलैंगिकता को अपराध माना गया था। आई.पी.सी. की धारा 377 के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी पुरुष, महिला या पशु के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाता है तो इसे अपराध की श्रेणी में रखा जाता था। ऐसे में उसे 10 साल की सजा या आजीवन कारावास का प्रावधान रखा गया था।

लेकिन 6 सितंबर 2018 को उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने ऐतिहासिक फैसला लेते हुए समलैंगिकता को अपराध मानने से इंकार कर दिया। सुप्रीमकोर्ट ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया। फैसले के अनुसार आपसी सहमति से दो वयस्कों के बीच बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध नहीं माना जाएगा। समलैंगिक शादी को मान्यता देने के पक्षधर कहते हैं कि पिछले 2 दशकों में कई चीजों में बदलाव आया है।

उनके अनुसार जब 2018 में समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर किया गया, इस फैसले से दिल्ली हाईकोर्ट के 2009 में नाज फाऊंडेशन पर दिए गए फैसले पर मोहर लगने जैसा था। इसके बाद से देश में सामाजिक और कानूनी बदलाव देखने को मिले हैं। क्या ऐसे में शादी के कानून को भी अभी नए सिरे से देखे जाने की जरूरत नहीं है। भारत में समलैंगिक समूह लगभग 8 प्रतिशत हैं अर्थात इनकी जनसंख्या 10 करोड़ से अधिक है।

इतनी विशाल जनसंख्या के संबंध में निर्णय लेते समय सावधानी बरतने की आवश्यकता है। उसके साथ ही तेजी से परिवर्तित होते समाज तथा व्यक्तिगत अधिकारों के मध्य संतुलन स्थापित करना भी आवश्यक है। भारतीय न्यायालयों ने कई बार ऐसी परिस्थितियों में प्रगतिशील समाज और व्यक्तिगत अधिकारों को संतुलित कर निर्णय दिया है। इस बार भी इन दोनों पक्षों को ध्यान में रखकर निर्णय दिया जाना चाहिए। ताईवान एशिया का पहला ऐसा देश है जहां समलैंगिक विवाह को मान्यता दी गई है। वहां की संवैधानिक कोर्ट ने सरकार को एक निश्चित समय सीमा के भीतर कानूनों में संशोधन करने का आदेश दिया था।

क्या भारत में भी यही रास्ता अख्तियार किया जा सकता है? समान ङ्क्षलग वालों के विवाह और उनके एक साथ रहने को लेकर पहले भी लोगों का विरोध और समर्थन सामने आता रहा है। भारतीय दर्शन में स्त्री और पुरुष के विवाह को एक पवित्र संस्कार माना गया है। हमारी संस्कृति में शादी एक सांस्कृतिक बंधन है न कि एक सामाजिक और कानूनी प्रबंध है। कानून की संभावित मान्यता  भी सांस्कृतिक मूल्यों को हतोत्साहित करेगी और यह भारतीय समाज के मूल्यों को कमजोर करने वाली परंपरा बनेगी। -डा. वरिन्द्र भाटिया

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