लू से 700 से अधिक मौतें : राजनीतिक दलों ने उफ तक नहीं की

Edited By ,Updated: 03 Jun, 2025 05:18 AM

more than 700 deaths due to heat wave

देश में आम लोगों की जिंदगी का कोई मोल नहीं है। कम से कम सरकारों और राजनीतिक दलों की नजर में तो बिल्कुल नजर नहीं आता। मुद्दा यदि वोट बैंक से जुड़ा हुआ हो, तभी राजनीतिक दल कुछ गंभीरता बेशक दिखा लें किन्तु लोगों के जीवन-मरण जैसे मुद्दों से लगता यही है...

देश में आम लोगों की जिंदगी का कोई मोल नहीं है। कम से कम सरकारों और राजनीतिक दलों की नजर में तो बिल्कुल नजर नहीं आता। मुद्दा यदि वोट बैंक से जुड़ा हुआ हो, तभी राजनीतिक दल कुछ गंभीरता बेशक दिखा लें किन्तु लोगों के जीवन-मरण जैसे मुद्दों से लगता यही है कि उनका कोई सरोकार नहीं रह गया है। यदि ऐसा नहीं होता तो अदालतों को मौसम की मार से होने वाली मौतें रोकने के लिए सरकारों को दिशा-निर्देश नहीं देने पड़ते।

आश्चर्य की बात यह है कि प्रतिकूल मौसम से आम लोगों को बचाने की जिम्मेदारी केंद्र और राज्यों की सरकारों की है,  किन्तु यह काम भी अब अदालतों को करना पड़ रहा है। इससे सवाल खड़ा होता है कि आखिर सरकारों की जरूरत कितनी सीमित रह गई है?  हीटवेव से 700 से ज्यादा मौतों के मुद्दे पर सुप्रीमकोर्ट ने केंद्र से जवाब मांगा है। शीर्ष अदालत ने पूछा है कि इतने बड़े मौसमी संकट से निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर क्या तैयारी की जा रही है। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने गृह मंत्रालय, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण और अन्य को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। यह याचिका पर्यावरण कार्यकत्र्ता विक्रांत तोंगड़ ने दाखिल की। उन्होंने कोर्ट से गुजारिश की है कि सरकार को गर्मी की चेतावनी देने वाली प्रणाली, हीटवेव की पहले से जानकारी देने की व्यवस्था और 24 घंटे काम करने वाली राहत हैल्पलाइन जैसी सुविधाएं लागू करने के निर्देश दिए जाएं।

याचिका में यह भी बताया गया है कि 2019 में राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने हीटवेव से निपटने के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश जारी किए थे, लेकिन कई राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने अब तक उस पर काम ही नहीं किया। याचिका में यह भी जिक्र है कि  आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 35 के अनुसार केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह इस तरह की आपदा से निपटने के लिए पुख्ता इंतजाम करे। इससे पहले राजस्थान हाईकोर्ट ने अधिकारियों के रवैये पर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि पिछले साल दिए गए अदालत के निर्देशों को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। कोर्ट ने कहा कि यह कानून के शासन पर सवाल उठाता है। अधिकारी स्वयं को कानून से ऊपर मान रहे हैं, लेकिन कोर्ट आंख बंद करके नहीं बैठ सकता। इंसानों से जानवरों जैसा बर्ताव नहीं हो सकता और न जान बचाने के लिए धन की कमी का बहाना चल सकता है। कोर्ट ने मुख्य सचिव से अदालती आदेशों की पालना के लिए समन्वय समिति बनाने और लू से बचाव के लिए कार्य योजना बनाने का निर्देश दिया, वहीं केंद्रीय गृह मंत्रालय, मुख्य सचिव व राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा केंद्र व राज्य सरकार के 10 अधिकारियों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा। 

मई के पहले सप्ताह में राष्ट्रीय मानव अधिकार आयोग (एन.एच. आर. सी.) ने देश के उत्तरी, मध्य और पश्चिमी भागों में गर्मियों के दौरान पडऩे वाली लू के मद्देनजर 11 राज्यों से कहा है कि वे कमजोर लोगों, खासकर आॢथक रूप से कमजोर वर्गों, बाहरी कामगारों, वरिष्ठ नागरिकों, बच्चों और बेघर लोगों की सुरक्षा के लिए तत्काल एहतियाती कदम उठाएं, जो पर्याप्त आश्रय और संसाधनों की कमी के कारण जोखिम में हैं। वर्ष 2018 से 2022 के बीच गर्मी और लू के कारण 3,798 लोगों की मौत के बारे में एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों पर प्रकाश डालते हुए आयोग ने एकीकृत और समावेशी उपायों की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया है। आयोग ने पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र और राजस्थान के मुख्य सचिवों को लिखे पत्र में आश्रयों की व्यवस्था, राहत सामग्री की आपूर्ति, कार्य घंटों में संशोधन और गर्मी से संबंधित बीमारियों के इलाज के लिए मानक प्रक्रियाओं की उपलब्धता की मांग की है।

भारत में वर्ष 2001 से 2019 के बीच हीटवेव यानी लू से करीब 20,000 लोगों की मौत हुई है। एक अध्ययन में यह खुलासा हुआ कि पुरुषों में लू से होने वाली मौतों की आशंका ज्यादा पाई गई। एक और हालिया अध्ययन में यह बताया गया है कि हीटवेव से होने वाली मौतें जातीय आधार पर भी बंटी हुई हैं। भारत में हाशिए पर मौजूद समुदायों से ताल्लुक रखने वाले लोगों की मौतें, अन्य समुदायों की तुलना में, लू से कहीं ज्यादा हुईं। अध्ययन करने वाले शोधकत्र्ताओं का कहना है कि यह एक तरह की ‘थर्मल इनजस्टिस’ (गर्मी से जुड़ा अन्याय) की स्थिति है। 

इतना ही नहीं लू जैसी आपदा के अलावा बाढ़, अतिवृष्टि और बिजली गिरने जैसी आपदाओं में हर साल हजारों लोग काल कलवित हो जाते हैं। ऐसे मुद्दे राजनीतिक दलों के एजैंडे में शामिल नहीं हैं। कोई भी राजनीतिक दल घोषणा करना तो दूर बल्कि यह दावा तक नहीं करता कि किसी भी व्यक्ति की मौत ऐसे प्राकृतिक कारणों से नहीं होगी। इससे साफ जाहिर है कि राजनीतिक दलों की प्राथमिकता में ऐसी मौतों की रोकथाम के गंभीर प्रयास करना या इसे चुनावी घोषणा पत्र में शामिल करना नहीं है। कारण स्पष्ट है इससे दलों के वोट बैंक में इजाफा नहीं होता। ऐसे मुद्दों के लिए सत्तारूढ़ दलों के नेताओं से अधिक नौकरशाहों को जिम्मेदार बनाने की जरूरत है।-योगेन्द्र योगी
 

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