संसद को तत्काल सुधारों की जरूरत

Edited By Updated: 21 Mar, 2023 06:08 AM

parliament needs urgent reforms

जैसे हमें कई अन्य क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत है वैसे ही संसद को तत्काल सुधारों की जरूरत है।

जैसे हमें कई अन्य क्षेत्रों में सुधारों की जरूरत है वैसे ही संसद को तत्काल सुधारों की जरूरत है। फिलहाल दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है। विपक्ष सरकार को शॄमदा करने के लिए जनता और मीडिया का ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर रहा है, वहीं सरकार भी आक्रामक मूड में है। भाजपा ने पहले की कांग्रेस सरकारों का ठीक उसी तरह विरोध किया था जिस तरह अब कांग्रेस कर रही है। इसमें वाकआऊट, तख्तियों के साथ सदन में दौडऩा, नारेबाजी करना आदि शामिल हैं जो जनता और मीडिया का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं।

सीधा टी.वी. प्रसारण भी सदस्यों को गैलरी में खेलने के लिए मजबूर करता है। 2 विवादास्पद मुद्दों पर अडिग सत्ता पक्ष और जुझारू विपक्ष के बीच आमना-सामना जारी है।  पहला मुद्दा कांग्रेस नेता राहुल गांधी का हाल ही में यू.के. में मोदी सरकार के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणियों को लेकर है। दूसरा विपक्ष की ओर से आता है जो अडानी, हिंडनबर्ग मामले की संयुक्त संसदीय समिति (जे.पी.सी.) से जांच की मांग करता है। अडानी का मामला पिछले कुछ समय से उबल रहा है लेकिन सरकार इस पर सदन में चर्चा कराने को तैयार नहीं है।

अडानी महज 9 सालों में दुनिया के सबसे अमीर शख्स बन गए हैं। फिलहाल दोनों सदनों में गतिरोध बना हुआ है। 13 मार्च को बजट सत्र का दूसरा हिस्सा शुरू हुआ। विपक्ष मुद्दे को लेकर सड़कों पर है। कांग्रेस ने लोकसभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ एक विशेषाधिकार नोटिस दिया है। सरकार का पक्ष दोहराते हुए वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा, ‘‘इस सदन का एक सदस्य (राहुल गांधी) विदेश यात्रा पर गया और उसने संसद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियां कीं। उसे माफी मांगनी होगी।

जो लोग विरोध कर रहे हैं और सदन में तख्तियां ले जा रहे हैं उनके खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। मेरी राय में उन्हें निलंबित किया जाना चाहिए।’’ ये हमें संसद के कामकाज के बड़े सवाल पर लाता है। संसद का उदार ढांचा जोरदार बहस, चर्चा और असहमति के कई अवसर प्रदान करता है। प्रश्नकाल लघु अवधि की चर्चा, स्थगन प्रस्ताव, ध्यानाकर्षण नोटिस और अन्य नियम सरकार को जवाबदेह ठहराने का मौका देते हैं।

राजनीतिक दलों को लोकतंत्र में अव्यवस्था, व्यवधान और कानून में देरी को बहस, चर्चा और निर्णय में बदलना चाहिए। राजनेता अपनी राय में भिन्न हो सकते हैं और उन्हें विरोध करने का अधिकार है। कहावत है कि विपक्ष को अपनी बात कहनी चाहिए और सरकार को अपनी बात रखनी चाहिए। ऐतिहासिक रूप से 50 और 60 के दशक में दोनों सदनों में कुछ हद तक एकरूपता थी। बहुत से सदस्य मोदी की तरह सदन की मर्यादा को बनाए रखते हुए अपने भाषणों, हास्य और स्वस्थ बहसों से सदन को जीवंत कर देते थे।

80 के दशक में कांग्रेस सिमटती गई, जबकि क्षेत्रीय दलों सहित अन्य दलों का विकास हुआ जिससे गठबंधन की राजनीति शुरू हुई।  सुधार के लिए एक अन्य क्षेत्र बैठकों की अवधि है। अधिकांश राज्य विधानसभाएं साल में बमुश्किल 30 दिन बैठती हैं। हरियाणा और पंजाब जैसे कुछ राज्यों में औसत लगभग एक पखवाड़े का है। संसद विधायी कार्यों पर कम समय खर्च करती है जिसके परिणामस्वरूप कानून निर्माता कानून बनाने में कम समय व्यतीत करते हैं।

पहली तीन लोकसभाओं की एक वर्ष में औसतन 120 दिन बैठक हुई। लोकसभा ने एक कानून पारित करने के लिए 10 मिनट से भी कम समय बिताया और राज्य सभा ने आधे घंटे से भी कम समय बिताया। संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिए राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की कि लोकसभा की कम से कम 120 और राज्यसभा की 100 बैठकें होनी चाहिएं। संसद में एक मिनट पर 2.5 लाख रुपए खर्च होते हैं।

पूर्व मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमन्ना ने हाल ही में इस बात पर खेद व्यक्त किया कि कैसे संसद ने बिना विचार-विमर्श और बहस के कानून पारित कर दिए। न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है और हमेशा कानून पारित करने से पहले चर्चा की तलाश करती है। दोनों सदनों के पीठासीन अधिकारियों ने सदस्यों से सदन की गरिमा को बनाए रखने के लिए बार-बार आग्राह किया है। खुले, पारदर्शी और परिणाम उन्मुख मुद्दों पर समाशोधन कानून और चर्चा करने के लिए नियमों में पूर्ण सुधार होना चाहिए।

दूसरा, राजनीतिक दलों को प्रतिष्ठित पुरुषों और महिलाओं को सदस्यों के रूप में चुनना चाहिए। तीसरा, नए सदस्यों को कार्रवाई में भाग लेने के लिए पर्याप्त समय दिया जाना चाहिए। चौथी बात यह है कि विपक्षी पाॢटयों के नेताओं को संसद के कामकाज पर अधिक ध्यान देना चाहिए क्योंकि वे भी हितधारक हैं।

पांचवां, प्रश्नकाल में गड़बड़ी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि तब सरकार कई सवालों के जवाब देती है। शून्यकाल और प्रश्नकाल रद्द करना इंगित करता है कि संसदीय सुधारों की तत्काल आवश्यकता है। छठा, पीठासीन अधिकारियों को अधिक अधिकार दिए जाने चाहिए और सातवां यह है कि समायोजन और बातचीत सदन के संचालन का हिस्सा होना चाहिए।

आठवां यह है कि नए सदस्यों को सदन के नियमों और विनियमों को समझने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए। संसदीय समितियों ने धीरे-धीरे अपनी बैठकों की संख्या कम कर दी है। सरकार भी केवल कानून के कुछ टुकड़ों को संदर्भित करती है। एक सशक्त लोकतंत्र के लिए जरूरी है कि संसद की कार्रवाई सुचारू रूप से चले। वर्षों से भारतीय लोकतंत्र परिपक्व हुआ है और अब यह समय है कि इसमें कुछ जरूरी सुधार किए जाने चाहिएं। -कल्याणी शंकर

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