तालिबान : मियां की जूतियां मियां के सिर

Edited By Updated: 20 Dec, 2022 07:00 AM

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काबुल में पिछले साल तालिबान की सरकार क्या कायम हुई, पाकिस्तान समझने लगा कि उसकी पौ-बारह हो गई, क्योंकि पिछले दो-अढ़ाई दशक से तालिबान और उसके पहले अफगान मुजाहिद्दीन को शह देने वाला पाकिस्तान ही था। तालिबान ने पहले अपने हिमायती अमरीका को सबक सिखाया और...

काबुल में पिछले साल तालिबान की सरकार क्या कायम हुई, पाकिस्तान समझने लगा कि उसकी पौ-बारह हो गई, क्योंकि पिछले दो-अढ़ाई दशक से तालिबान और उसके पहले अफगान मुजाहिद्दीन को शह देने वाला पाकिस्तान ही था। तालिबान ने पहले अपने हिमायती अमरीका को सबक सिखाया और अब वह पाकिस्तान के छक्के छुड़ा रहा है। आए दिन तालिबानी और पाकिस्तानी सीमा-रक्षकों के बीच गोलीबारी की खबरें आती रहती हैं। 

अफगानिस्तान और ब्रिटिश भारत के बीच जब सर मोॢटमोर डूरेंड ने 1813 में डूरेंड-रेखा खींची थी, तभी से एक के बाद एक अफगान सरकारों ने उसे मानने से मना कर दिया। अब जब भी पाक सरकार 2700 कि.मी. की इस डूरेंड रेखा पर खंभे गाडऩे की कोशिश करती है, तालिबान सरकार उसका विरोध करती है। हजारों अफगान और पाकिस्तानी नागरिक बिना पासपोर्ट और वीजा के एक-दूसरे के देश में रोज आते-जाते हैं। दोनों देशों के बीच तनाव इतना बढ़ गया है कि उप-विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार को काबुल जाकर बात करनी पड़ी। 

काबुल में पाक दूतावास के एक वरिष्ठ राजनयिक की हत्या का भी असफल प्रयास हुआ। इसके पहले अल-कायदा के नेता अल जवाहिरी की काबुल में अमरीका ने जो हत्या की थी, उसमें भी पाकिस्तान की सांठ-गांठ बताई गई थी। यह अभियान असल में काबुल के तालिबान नहीं चला रहे हैं, इसे चला रहे हैं ‘तहरीक-ए-तालिबान-ए-पाकिस्तान’ के लोग। वे हैं तो पाकिस्तानी लेकिन उन्होंने आजकल काबुल को अपना ठिकाना बना लिया है। वे इमरान और शाहबाज शरीफ सरकारों से मांग करते रहे हैं कि पाकिस्तान का शासन इस्लामी उसूलों पर चले। 

काबुल के तालिबान दिखाने के लिए इस्लामाबाद और तहरीक के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा रहे हैं लेकिन वे पूरी तरह से ‘तहरीक’ के साथ हैं। उन्होंने दोनों के बीच 5-6 माह का युद्ध-विराम भी करवा दिया था, लेकिन तालिबान की ही नहीं, औसत पठानों की भी मान्यता है कि पाकिस्तान के पंजाबी हुक्मरान उन्हें अपना गुलाम बनाकर रखना चाहते हैं। मुझे पेशावर और काबुल में दोनों पक्षों से खुलकर बात करने के मौके कई बार मिले हैं। मैंने कुछ पाकिस्तानी दोस्तों को यह कहते हुए भी सुना है कि देखिए, अफगान कितने नमक हराम हैं? रूसी कब्जे के वक्त लाखों अफगानों को हमने शरण दी लेकिन वे अब भी पेशावर पर कब्जा करना चाहते हैं। 

उधर अफगान कहते हैं कि ये पंजाबी लोग हमारी जमीन पर लगभग डेढ़-सौ साल से कब्जा किए हुए हैं और हमारे साथ चोरी और सीनाजोरी करते हैं। पाकिस्तान सरकार को अब पता चल रहा है कि उसने अफगान आतंकवाद को बढ़ावा देकर अपने लिए गहरी खाई खोद ली है। अब वे ही अफगान पाकिस्तान के सिरदर्द बन गए हैं। मियां की जूतियां मियां के सिर पड़ रही हैं।-डा. वेदप्रताप वैदिक 
 

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