मैंने ‘पंजाब केसरी’ क्यों और कैसे शुरू की

Edited By Updated: 13 Jun, 2018 12:36 PM

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दैनिक पंजाब केसरी का प्रवेशांक पाठकों के सामने है। मुझे इस अंक को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में जितना हर्ष हो रहा है,

दैनिक पंजाब केसरी का प्रवेशांक पाठकों के सामने है। मुझे इस अंक को पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने में जितना हर्ष हो रहा है, उसका अनुमान संभवत: पाठक नहीं लगा सकते। आज मेरी आंखों के सामने लाहौर सैंट्रल जेल का सम्पूर्ण चित्र घूम गया है, जब मैंने लाला लाजपत राय जी के चरणों में बैठकर यह प्रतिज्ञा की थी कि मैं अपना जीवन उस दिन सफल समझूंगा जब हिन्दी में आदरणीय लाला लाजपत राय जी के नाम पर दैनिक पत्र निकाल सकूंगा।

पाठकों की जानकारी के लिए मैं यह लिखना चाहता हूं कि 1920 में जब महात्मा गांधी जी ने भारतवर्ष के  विद्यार्थियों को ललकारा था कि वे देश को स्वतंत्र करवाने के लिए कालेज और स्कूल छोड़ कर स्वाधीनता संग्राम में जुट जाएं तो उस समय मैंने लॉ कालेज का त्याग कर दिया। मेरे पिता उन दिनों लायलपुर में एक माननीय वकील के मुंशी थे। उनकी अच्छी आय थी। उनकी लायलपुर जिले में अच्छी जान-पहचान थी। मैं उनकी एकमात्र संतान था। उनका यह दृढ़ विचार था कि मैं वकील बनकर लायलपुर में अच्छी पोजीशन प्राप्त करूंगा और उनका नाम भी रोशन करूंगा तथा आर्थिक स्थिति भी अच्छी हो जाएगी परंतु जब उन्होंने मेरा पढ़ाई अधूरी छोडऩे का निश्चय सुना तो हमारा सारा परिवार बेचैन हुआ और मेरे माता-पिता तो भौंचक्के ही रह गए। उन्होंने और परिवार के अन्य बुजुर्गों ने पूरा प्रयत्न किया परंतु मैंने अपना निश्चय अटल रखा तो सब मौन हो गए।
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मैंने लाहौर कांग्रेस में कार्य करना आरंभ कर दिया। स्व. लाला ठाकुर दास कपूर के संसर्ग में कार्य करने का अवसर मिला। उन्होंने मुझे लाहौर जिला कांग्रेस का संयुक्त महामंत्री बना दिया। मैंने कुछ समय काम किया और कांग्रेस के स्वयंसेवकों को कंबल और रोटी आदि हवालात और जेल में देने के अपराध में गिरफ्तार कर लिया गया। मेरे जीवन में मोड़ उस समय आरंभ हुआ जब मुझे लाहौर सैंट्रल जेल में भेजा गया। यह मेरी प्रथम जेल यात्रा थी। मैं जब जेल की ड्योढ़ी में पहुंचा तो लाला फिरोजचंद, अचिन्तराम और अन्य सज्जन लाला जी के साथ भेंट कर रहे थे। इन भाइयों ने आदरणीय लाला जी के साथ मेरा परिचय करवाया कि मैं उनका साथी हूं।

मेरे मामा श्री लाल चंद जी भी मुझे जेल में छोडऩे के लिए आए हुए थे। वह लाला लाजपत राय जी से भली-भांति परिचित थे। उन्होंने लाला जी को बतलाया कि जगत नारायण मेरा भांजा है। उन्होंने भी लाला जी को कहा कि यह प्रथम बार जेल आ रहा है और अपने माता-पिता की एकमात्र संतान है। इसके माता-पिता बहुत घबराए हुए हैं। लाला जी आप जगत नारायण को घबराने नहीं देना। लाला जी ने सबकी बात सुन ली। मैंने लाला जी के प्रथम बार दर्शन किए थे। मुझे जेल का कोई अनुभव नहीं था। एक घंटे के बाद जब मुझे उस वार्ड में पहुंचाया गया जिसमें लाला जी विराजमान थे तो मेरा बड़े उत्साह और प्यार के साथ स्वागत किया गया। आदरणीय लाला जी के साथ पंजाब के समस्त नेता मुझे दरवाजे पर लेने आए। नारे लगे और मेरा नाम लेकर जब नारे लगे तो मुझे ऐसा प्रतीत हुआ कि लाला जी ने मेरी उदासी को दूर करने के लिए यह सब कुछ किया है।
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नेतागण निराश थे। उनका यह विचार था कि कोई नेता आ रहा है क्योंकि लाला जी ने मेरे लिए अपने पास की कोठरी खाली करवाई थी। कोठरियों में केवल नेता रहते थे। जब नेताओं ने एक दुबले-पतले 21 वर्षीय विद्यार्थी को देखा तो उनको परेशानी हुई कि लाला जी ने मेरा इतना स्वागत क्यों किया। आदरणीय लाला जी ने मुझे अपने पुत्र के समान जेल में रखा और जब मैं उनके  सम्पर्क में अढ़ाई वर्ष जेल में रहा तो मेरे हृदय में एक विचार उत्पन्न हुआ कि क्या मुझे आदरणीय लाला जी की स्मृति में कोई विशेष कार्य करने का अवसर मिलेगा? उस समय जेल में लाला जी के साथ पंजाब के बड़े-बड़े नेता थे और उनके साथ दैनिक ‘वंदेमातरम्’ के 6-7 संपादक थे, जिनको बारी-बारी अंग्रेज सरकार बंदी बनाकर लाई थी। उनमें बाबू राम प्रसाद, रायजादा शांति नारायण और श्री कर्म चंद शुक्ला के नाम उल्लेखनीय हैं। इनके साथ ही मौलाना जफर अली, उनके सुपुत्र और अन्य संपादक ‘जमींदार’ अखबार के थे। सैयद हबीब भी जेल में हमारे साथ थे। उस जेल में सारा वायुमंडल पत्रकारों का था। उस वायुमंडल में मुझे अढ़ाई वर्ष रहने का अवसर मिला और मैंने उसी समय यह निश्चय किया था कि रिहा होकर मैं समाचार पत्र में ही कार्य करूंगा।

जब मैं रिहा हुआ तो लाला जी मुझे सर्वेंट्स ऑफ पीपुल्स सोसायटी का सदस्य बनाना चाहते थे। उनका बहुत आग्रह था परन्तु मैं स्वतंत्र रह कर कार्य करना चाहता था। श्रद्धेय भाई परमानंद जी उन दिनों सर्वेंट्स ऑफ पीपुल्स सोसायटी के प्रधान थे। उन्होंने मुझे अपने हिंदी साप्ताहिक पत्र ‘आकाशवाणी’ का संपादक बना दिया और विरजानंद प्रैस से मासिक वेतन देने का भी प्रबंध कर दिया। कई कारणों से मुझे ‘आकाशवाणी’ को छोडऩा पड़ा, परन्तु थोड़े समय के बाद भाई जी ने ‘आकाशवाणी’ और विरजानंद ने प्रैस को मेरे पास बेच दिया। मैंने ‘आकाशवाणी’ को चलाने का प्रयत्न किया परन्तु सफल न हो सका। कुछ समय के लिए आकाशवाणी को दैनिक भी किया परन्तु पर्याप्त घाटा रहने पर उसको बंद कर दिया।
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इसके पश्चात स्व. बाबू पुरुषोत्तम दास टंडन जी ने ‘पंजाब केसरी’ लाला लाजपत राय जी की पुण्य स्मृति में एक साप्ताहिक हिंदी पत्र के रूप में निकाला। मैं भी उसके साथ संबंधित था। स्व.पं. भीमसेन जी उसके पहले संपादक थे। उनके पश्चात पं. अमरनाथ विद्यालंकार उसके सम्पादक बने। ब्रिटिश सरकार ने हम दोनों पर मुकद्दमा बना दिया। हम जेल में चले गए और पत्र बंद हो गया। रिहा होने के बाद पुन: ‘पंजाब केसरी’ को चलाने का प्रयत्न किया गया परन्तु सफल न हो सके। 1942 में जब अंग्रेजों ने महात्मा गांधी के सत्याग्रह आंदोलन में समस्त नेताओं को गिरफ्तार कर लिया तो मुझे भी स्यालकोट जेल में पंजाब के समस्त नेताओं और कार्यकर्ताओं के साथ रहने का अवसर मिला। उस समय मैंने दैनिक हिंदी और उर्दू निकालने की बातचीत समस्त नेताओं के साथ की परन्तु उत्साह न मिल सका। मेरे अपने मन में यह संकल्प अवश्य था कि किसी न किसी समय दैनिक पत्र अवश्य निकालना है। यह संकल्प विभाजन के पश्चात पूरा हुआ जब जालन्धर में विभाजन के बाद ‘दैनिक जयहिंद’ को आरंभ किया। श्री वीरेन्द्र जी लाहौर में इस पत्र को निकालते थे। मैंने उनकी अनुपस्थिति में उसको निकाला और उन्होंने उसको मेरे साथ मिलकर चालू रखने का निश्चय किया। हम चल न सके तो फिर दैनिक ‘हिंद समाचार’ उर्दू में निकाला। काफी कठिनाइयों के पश्चात आज ‘हिंद समाचार’ अपने पांवों पर खड़ा हो गया है। प्रभु ने ही इस पत्र को पंजाब के दैनिक पत्रों में चोटी पर पहुंचाया है।

आज महान नेता लाला लाजपत राय जी की पुण्य स्मृति में हिंदी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत किया जा रहा है। हमें यह पूर्णत: विदित है कि पंजाब में हिंदी पत्र को चलाना बहुत कठिन है। हजारों रुपए मासिक का घाटा कई वर्ष तक सहन करना पड़ेगा परन्तु जो संकल्प 1923 और 1924 में पूज्य लाला जी के चरणों में जेल में बैठकर किया था वह आज पूर्ण हुआ है। मैं आदरणीय लाला लाजपत राय जी की चरण रज का सहस्रांश भी नहीं परन्तु इतना अवश्य कहना चाहता हूं कि मैंने जो स्वयं में थोड़ी-बहुत निर्भीकता ग्रहण की है वह लाला जी के चरणों में बैठ करके ही सीखी थी।

प्रभु के दरबार में मेरी यह प्रार्थना है कि आज जब हिंदी दैनिक ‘पंजाब केसरी’ आदरणीय लाला लाजपत राय जी की स्मृति में आरंभ कर रहे हैं तो हमारे परिवार को प्रभु यह बल दें कि हम लाला जी के पवित्र नाम को इस पत्र में उज्ज्वल करें तथा उनके बताए हुए मार्ग पर चल कर पंजाब और भारतवर्ष की सेवा पूर्ण निर्भीकता से करें ताकि हमारा प्रांत और देश पूरी तरह पनप सके। परमात्मा हमें बल दें कि हम इस पत्र के माध्यम से जनता की सेवा व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर करें और सत्य के मार्ग से विचलित न हों। मुझे यह पूर्ण आशा है कि पाठकवृंद भी इस साहसिक क्रिया में पूर्ण सहायता करेंगे और ‘हिंद समाचार’ की भांति ‘पंजाब केसरी’ से प्रेम करके इस पत्र को शीघ्र ही पंजाब के हिंदी क्षेत्र में सफलता के शिखर पर पहुंचा देंगे ताकि ‘हिंद समाचार’ परिवार जनता के दरबार में सुर्खरू हो सके कि भारतवर्ष की राष्ट्रभाषा में पत्र जारी करके उन्होंने अपने कर्तव्य को निभाने का प्रयत्न किया है  —जगत नारायण

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