वास्तु के साथ-साथ धार्मिक महत्व भी रखता है हाथी, आप भी जानें!

Edited By Jyoti,Updated: 17 Nov, 2020 12:54 PM

along with vastu elephant also has religious significance

वास्तु शास्त्र में कई ऐसी चीज़ों व उपकरणों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में रखने से वास्तु दोष तो दूर होते ही हैं साथ ही साथ घर-परिवार में आने वाली तमाम समस्याएं दूर होती हैं।

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वास्तु शास्त्र में कई ऐसी चीज़ों व उपकरणों के बारे में बताया गया है, जिन्हें घर में रखने से वास्तु दोष तो दूर होते ही हैं साथ ही साथ घर-परिवार में आने वाली तमाम समस्याएं दूर होती हैं। मगर क्या आप जानते हैं इन चीज़ों का जितना महत्व है उतना ही नहीं इनको सनातन धर्म में भी खास माना जाता है। आज हम आपको ऐसी ही एक उपकरण के बारे में बताने वाले हैं जिसे वास्तु के लिहाज़ से तो खास माना ही जाता है साथ ही साथ हिंदू धर्म में पूज्य पशु भी माना जाता है। तो चलिए विस्तारपूर्वक जानते हैं इस बारे में-
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दरअसल हम बात कर रहे हैं हाथी की, जिसे वास्तु की दृष्टि से बेहद से अच्छा माना जाता है। वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार चांदी का बना हाथी ज्योतिष की दृष्टि से भी बेहद शुभ होता है। क्योंकि चांदी और हाथी दोनों ही नकारात्मकता को खत्म कर सकारात्मकता को बढ़ाने में मदद करते हैं। बताया जाता है इसे रखने के लिए उत्तर दिशा सबसे अच्छी मानी जाती है। तो वहीं  तिजोरी या गल्ले के ऊपर भी चांदी का हाथी रखना शुभ होता है।

ये तो हुई हाथी की वास्तु में महत्व की, अब आपको बताते हैं इससे जुड़े धार्मिक कथा- 
कहा जाता है जिस तरह हिंदू धर्म में गाय को महत्व प्रदान है, ठीक उसी तरह हाथी को भी काफी महत्व दिया जाता है। इसके बारे में कहा जाता है दक्षिण भारत में प्राचीनकाल में हाथियों की तादाद ज्यादा होती थी। प्राचीनकाल से ही राजा लोग अपनी सेना में हाथियों को शामिल करते थे, इतना ही नहीं इनके पास हाथियों की बड़ी-बड़ी सेनाएं रहती थीं, जो शत्रु के दल में घुसकर भयंकर संहार करती थीं। जिस कारण हाथी के पूज्नीय माना जाता है। 

आप में से शायद बहुत से लोगों ने देखा भी हो कि भारत में स्थित अधिकतर मंदिरों के बाहर हाथी की प्रतिमा लगी हुई पाई जाती है। इसका कारण कहीं न कहीं वास्तु को माना जाता है। वास्तु और ज्योतिष के अनुसारचांदी, पीतल और लकड़ी का हाथी रखने से सकारात्मकता का संचार होता है। जो लोग इसे अपने घर में रखते हैं उनके जीवन में कभी सुख, शांति और समृद्धि की कमी नहीं होती। हाथी घर, मंदिर और महल के वास्तुदोष को दूर करके उक्त स्थान की शोभा बढ़ाने में अपना योगदान देता है। 

पौराणिक कथाओं की मानें तो हाथियों का जन्म चार दांतों वाले ऐरावत नाम के सफ़ेद हाथी से हुआ माना जाता है। अर्थात जिस तरह मनुष्‍यों का पूर्वज बाबा आदम या स्वयंभुव मनु है, ठीक उसी तरह हाथियों का पूर्वज ऐरावत है। 
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बता दें ऐरावत की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। जिसे इंद्र ने अपने पास रख लिया था। ऐरावत सफ़ेद हाथियों का राजा था। शास्त्रों में बताया गया है 'इरा' का अर्थ जल है, अत: 'इरावत' (समुद्र) से उत्पन्न हाथी को 'ऐरावत' नाम दिया गया है। जिस कारण इसे 'इंद्रहस्ति' अथवा 'इंद्रकुंजर' भी कहा जाता है। तो अगर गीता की मानें तो इसमें श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन मैं ही हाथियों में ऐरावत हूं।

देवों के देव महादेव के पुत्र गणेश जी का मुख हाथी का होने के कारण उन्हें गजतुंड, गजानन आदि के नाम से भी जाना जाता है। इसलिए भी हाथी हिन्दू धर्म में सबसे पूज्जनीय पशु माना जाता है। 

हिन्दू धर्म में अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन गजपूजाविधि व्रत भी रखा जाता है। इस दिन सुख-समृद्धि की इच्छा से हाथी की पूजा की जाती है। प्रचलित मान्यता के अनुसार हाथी की पूजा अर्थात गणेश जी को पूजा। इसके अलावा हाथी शुभ शकुन वाला और लक्ष्मी दाता माना गया है।

श्रीमद्भागवत पुराण के मुताबिक हाथी द्वारा विष्णु स्तुति का वर्णन मिलता है। इससे जुड़ी अन्य मान्यता के अनुसार क्षीरसागर में त्रिकुट पर्वत के घने जंगल में बहुत से हाथियों के साथ ही हाथियों का मुखिया गजेंद्र नामक हाथी भी रहता था। जिसका कारण गजेन्द्र मोक्ष कथा में मिलता है। 
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कथा के अनुसार गजेन्द्र नामक हाथी को एक नदी के किनारे एक मगरमच्छ ने उसका पैर अपने जबड़ों में पकड़ लिया था जो, हाथी ने उसे छूटने के लिए विष्णु जी की स्तुति की। जिसके परिणाम स्वरूप श्री हरि विष्णु ने गजेन्द्र को मगर के ग्राह से छुड़ाया था। ऐसा कहा जाता है कि यह गजेंद्र अपने पूर्व जन्म में इंद्रद्युम्न नाम का राजा था जो द्रविड़ देश का पांड्यवंशी राजा था।

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