Edited By Prachi Sharma,Updated: 08 Jun, 2025 07:01 AM

Chanakya Niti: अपरीक्ष्यकारिणं श्री: परित्यजति। जो राजा बिना विचार किए कार्य प्रारंभ कर देता है, उसे अंत में असफलता ही हाथ लगती है और इस प्रकार उसकी धन-सम्पत्ति का विनाश हो जाता है।
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Chanakya Niti: अपरीक्ष्यकारिणं श्री: परित्यजति।
जो राजा बिना विचार किए कार्य प्रारंभ कर देता है, उसे अंत में असफलता ही हाथ लगती है और इस प्रकार उसकी धन-सम्पत्ति का विनाश हो जाता है। परीक्षा किए बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है
न परीक्ष्यकारिणां कार्यविपत्ति:।
कहावत है कि ‘बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछताए’ अर्थात जो व्यक्ति पहले से ही कार्य की परीक्षा नहीं कर लेता, उसका कार्य कभी सफल नहीं हो पाता।
कठोर दंड से सभी लोग घृणा करते हैं
तीक्ष्णदंड: सर्वैरुद्वेजनीयो भवति।
अपराधी को दंड देना राजा का अधिकार है, परंतु कठोर दंड देने से प्रजा त्राहि-त्राहि कर उठती है। ऐसे कठोर राजा से प्रजा घृणा करने लगती है और विद्रोही हो जाती है।

राजा योग्य अर्थात उचित दंड देने वाला हो
यथार्ह दंडकारी स्यात्।
जो राजा उचित दंड देने की व्यवस्था करता है, प्रजा उससे स्नेह करती है। जैसा अपराध हो वैसा ही दंड हो, परंतु उसमें बदले की भावना न होकर सुधार की भावना होनी चाहिए। अपराधी को भी पश्चाताप का अवसर मिलना चाहिए।
‘सच्चे व्यक्ति’ के लिए कुछ भी असम्भव नहीं
नास्त्यप्राप्यं सत्यवताम्।
जो व्यक्ति सदैव सच्चाई के मार्ग पर चलता है, उसके लिए संसार में कोई भी वस्तु दुर्लभ या अप्राप्य नहीं होती। सत्य के रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति का समाज में सभी सम्मान करते हैं।

सफलता के लिए ‘साहस’ के साथ ‘बुद्धि’ भी जरूरी- साहसेन न कार्यसिद्धिर्भवति।
कार्यसिद्धि के लिए व्यक्ति में साहस के साथ-साथ बुद्धि कौशल का होना भी जरूरी है, तभी सफलता हाथ लग सकती है। साहस शारीरिक बल तो दे सकता है, पर बुद्धि-चातुर्य नहीं दे सकता। किसी कार्य की सफलता के लिए सोच-समझ की बात जरूरत होती है।
