Edited By Prachi Sharma,Updated: 27 Jan, 2024 07:44 AM
एक युवक कमरे में बैठकर रूखी-सूखी रोटियां खा रहा था। ऐसा लगता था मानो लाहौर का वह छोटा सा कमरा उसके तेज से दमक रहा हो लेकिन खाने
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Chandra Shekhar Aazad Story: एक युवक कमरे में बैठकर रूखी-सूखी रोटियां खा रहा था। ऐसा लगता था मानो लाहौर का वह छोटा सा कमरा उसके तेज से दमक रहा हो लेकिन खाने वाले का बलिष्ठ शरीर देखने से ही साफ पता लगता था कि ये सूखी रोटियां उसके लिए पर्याप्त नहीं हैं।
नजदीक ही बैठे एक साथी से रहा न गया और वह बोल पड़ा, ‘‘पंडित जी, इतना जिद्दी होना ठीक नहीं है।’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘रणजीत, जिसे तुम जिद समझ रहे हो, वह दरअसल मितव्ययिता है।’’
दोस्त हंसते हुए बोला, “आपका इस तरह रूखी-सूखी रोटियां चबाना मेरी समझ से तो बाहर है। आप ही समझा दीजिए कि यह कंजूसी कैसे है ?’’
युवक बोला, “हमारे संगठन की रुपए-पैसे को लेकर जो स्थिति है, उसके हिसाब से हर क्रांतिकारी को खाने के लिए 2 आने मिलते हैं-एक आना रोटी के लिए और एक गुड़ के लिए लेकिन मेरे लिए एक आने की रोटी काफी नहीं है। ऐसे में गुड़ के लिए जो एक आना था, उसकी भी मैंने रोटी खरीद ली है, अब समझे ?’’
असहमत होते हुए दोस्त पुन: बोला, ‘‘हमारे पास और भी तो धन है। आप उनसे अच्छा भोजन कर सकते हैं। आखिर आप हमारे प्रमुख हैं।’’
युवक ने उत्तर दिया, ‘‘प्रमुख होेने के नाते मेरा दायित्व और भी बढ़ जाता है। संगठन का धन देश को आजादी दिलाने की मुहिम में खर्च होना चाहिए, क्रांति के कार्यों में जाना चाहिए। मितव्ययिता और नि:स्वार्थ सेवा के बिना क्या स्वतंत्रता का सपना साकार होगा ?’
मितव्ययिता की जीती-जागती मिसाल वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद थे।