Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Jul, 2023 08:19 AM
स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के नामों की सूची में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद एक ऐसा नाम हैं, जिनके स्मरण मात्र से शरीर की रगें फड़कने लगती हैं। एक युवा क्रांतिकारी, जिसने अपने देश के लिए
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Chandrashekhar Azad Birth Anniversary: स्वतंत्रता संग्राम के नायकों के नामों की सूची में अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद एक ऐसा नाम हैं, जिनके स्मरण मात्र से शरीर की रगें फड़कने लगती हैं। एक युवा क्रांतिकारी, जिसने अपने देश के लिए हंसते-हंसते प्राण न्यौछावर कर दिए। दुनिया में जिस सरकार का सूर्य अस्त नहीं होता था, वह शक्तिशाली सरकार भी उसे कभी बेड़ियों में जकड़ नहीं पाई। चंद्रशेखर अपनी आखिरी सांस तक हमेशा आजाद ही रहे।
इस वीर का जन्म 23 जुलाई, 1906 को मध्य प्रदेश की अलीराजपुरा रियासत के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित मामरा (अब चद्रशेखर आजाद नगर) ग्राम में मां जगरानी की कोख से गरीब तिवारी परिवार में पांचवी संतान के रूप में हुआ। पिता सीता राम तिवारी बहुत ही मेहनती और धार्मिक विचारों के थे।
1919 में अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढ़ रहे थे। 14 वर्ष की आयु में इन्हें संस्कृत पढ़ने के लिए काशी भेजा गया। वहीं वह आजादी के लिए प्रयासरत क्रांतिकारी वीरों के संपर्क में आए और उनके प्रभाव से छोटी आयु में ही देश को आजाद करवाने के कांटों भरे रास्ते पर चल पड़े।
महाविद्यालय में हुए असहयोग आंदोलन में पहला धरना दिया, जिसके कारण पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर न्यायाधीश के सामने पेश किया। न्यायाधीश ने जब उनसे नाम, पिता का नाम तथा पता पूछा तो निर्भीक चंद्रशेखर ने अपना नाम आजाद, पिता का नाम स्वतंत्र और निवास बंदीगृह बताया जिससे इनका नाम हमेशा के लिए चंद्रशेखर आजाद मशहूर हो गया। उनके उत्तर से न्यायाधीश गुस्से से लाल हो गया और इन्हें 15 बेंतों की सजा सुनाई, जिसे उन्होंने प्रत्येक बेंत के शरीर पर पड़ने पर ‘भारत माता की जय’ और ‘वंदे मातरम्’ का जयघोष कर स्वीकार किया।
इस घटना से अन्य क्रांतिकारियों भगत सिंह, राम प्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव से इनका संपर्क हुआ और आजाद पूरी तरह से क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल हो गए। साइमन कमीशन के विरोध में बरसी लाठियों से लाला लाजपत राय की शहादत के बदले में दोषी पुलिस अफसरों को सजा देने के लिए आजाद, भगत सिंह और राजगुरु ने ब्रिटिश पुलिस अफसर सांडर्स का वध कर दिया। उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के साथ मिल कर काकोरी स्टेशन के पास ट्रेन से अंग्रेजों का खजाना भी लूटा।
इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार पूरी तरह से बौखला गई और अनेक क्रांतिकारियों को पकड़ लिया गया परन्तु आजाद पुलिस की पकड़ में नहीं आए।
27 फरवरी, 1931 के दिन इलाहाबाद के अलफ्रेड पार्क में वह बैठे थे कि एक देशद्रोही मुखबिर ने पुलिस को खबर कर दी। पुलिस ने इन्हें घेर लिया। 24 वर्षीय इस शेर ने पुलिस का डट कर मुकाबला किया और अपने बेहतरीन निशाने से कइयों को मौत से मिला दिया। वह भी घायल हो गए। जब उनके पास अंतिम गोली रह गई तो उन्होंने पिस्तौल कनपटी पर लगाकर अपनी जीवन लीला समाप्त कर आजादी के महायज्ञ में अपने जीवन की आहुति डाल दी। चंद्रशेखर, आजाद थे और अंतिम समय तक आजाद ही रहे।