3-4 जून को शुभ मुहूर्त में करें स्नान, दोष नाश के साथ जानें घर को सुरक्षित करने का तरीका

Edited By Updated: 02 Jun, 2017 09:03 AM

ganga dusshera learn the way of the bath with the auspicious muhurta

गंगा दशहरा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। जो ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस रोज मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था इसलिए

गंगा दशहरा हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व है। जो ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस रोज मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था इसलिए इस दिन को गंगा दशहरा कहा जाता है। इस वर्ष गंगा दशहरा 4 जून 2017 को है।  उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पंडित दयानन्द शास्त्री के अनुसार इस दिन सर्वार्थ सिद्धि व अमृत सिद्धि योग रहेगा। तीन जून को सुबह 6.52 बजे से दशमी लग जाएगी, जो 4 जून को सुबह 8.02 मिनट तक रहेगी। गंगा दशहरा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय के समय गंगा स्नान विशेष फलदायी रहेगा। अगर किसी वजह से गंगा में स्नान संभव नहीं हो तो आसपास की नदी व सरोवर में गंगाजल युक्त जल से स्नान करें। 


इस दिन गंगा या किसी भी पवित्र नदी में स्नान कर मां गंगा स्त्रोत का पाठ करने से दस तरह के दोषों का नाश होता है। इस स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पढ़ना-सुनना, मन वाणी और शरीर द्वारा होने वाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त कर देता है। यह स्तोत्र जिसके घर लिखकर रखा हुआ होता है, उसे कभी अग्नि, चोर, सर्प आदि का भय नहीं रहता।

गंगा दशहरा स्तोत्र

॥ गंगा दशहरा स्तोत्रम् ॥


ॐ नमः शिवायै गङ्गायै शिवदायै नमो नमः।
नमस्ते विष्णुरुपिण्यै, ब्रह्ममूर्त्यै नमोऽस्तु ते॥
नमस्ते रुद्ररुपिण्यै शाङ्कर्यै ते नमो नमः।
सर्वदेवस्वरुपिण्यै नमो भेषजमूर्त्तये॥
सर्वस्य सर्वव्याधीनां, भिषक्श्रेष्ठ्यै नमोऽस्तु ते।
स्थास्नु जङ्गम सम्भूत विषहन्त्र्यै नमोऽस्तु ते॥
संसारविषनाशिन्यै,जीवनायै नमोऽस्तु ते।
तापत्रितयसंहन्त्र्यै,प्राणेश्यै ते नमो नमः॥
शांतिसन्तानकारिण्यै नमस्ते शुद्धमूर्त्तये।
सर्वसंशुद्धिकारिण्यै नमः पापारिमूर्त्तये॥
भुक्तिमुक्तिप्रदायिन्यै भद्रदायै नमो नमः।
भोगोपभोगदायिन्यै भोगवत्यै नमोऽस्तु ते॥
मन्दाकिन्यै नमस्तेऽस्तु स्वर्गदायै नमो नमः।
नमस्त्रैलोक्यभूषायै त्रिपथायै नमो नमः॥
नमस्त्रिशुक्लसंस्थायै क्षमावत्यै नमो नमः।
त्रिहुताशनसंस्थायै तेजोवत्यै नमो नमः॥
नन्दायै लिंगधारिण्यै सुधाधारात्मने नमः।
नमस्ते विश्वमुख्यायै रेवत्यै ते नमो नमः॥
बृहत्यै ते नमस्तेऽस्तु लोकधात्र्यै नमोऽस्तु ते।
नमस्ते विश्वमित्रायै नन्दिन्यै ते नमो नमः॥
पृथ्व्यै शिवामृतायै च सुवृषायै नमो नमः।
परापरशताढ्यायै तारायै ते नमो नमः॥
पाशजालनिकृन्तिन्यै अभिन्नायै नमोऽस्तुते।
शान्तायै च वरिष्ठायै वरदायै नमो नमः॥
उग्रायै सुखजग्ध्यै च सञ्जीवन्यै नमोऽस्तु ते।
ब्रह्मिष्ठायै ब्रह्मदायै, दुरितघ्न्यै नमो नमः॥
प्रणतार्तिप्रभञ्जिन्यै जग्मात्रे नमोऽस्तु ते।
सर्वापत्प्रतिपक्षायै मङ्गलायै नमो नमः॥
शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्ति हरे देवि! नारायणि ! नमोऽस्तु ते॥
निर्लेपायै दुर्गहन्त्र्यै दक्षायै ते नमो नमः।
परापरपरायै च गङ्गे निर्वाणदायिनि॥
गङ्गे ममाऽग्रतो भूया गङ्गे मे तिष्ठ पृष्ठतः।
गङ्गे मे पार्श्वयोरेधि गंङ्गे त्वय्यस्तु मे स्थितिः॥
आदौ त्वमन्ते मध्ये च सर्वं त्वं गाङ्गते शिवे!
त्वमेव मूलप्रकृतिस्त्वं पुमान् पर एव हि।
गङ्गे त्वं परमात्मा च शिवस्तुभ्यं नमः शिवे ||

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