Edited By Niyati Bhandari,Updated: 22 Jun, 2021 10:31 PM
भारत में किसी भी दोषी को फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले लम्बी प्रक्रिया होती है। फांसी होने से पहले फांसी की रस्सी को चैक किया जाता है । फिर उस रस्सी के साथ एक डमी फांसी दी जाती है जिसमें
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Gangaram is killed before every execution: भारत में किसी भी दोषी को फांसी पर चढ़ाए जाने से पहले लम्बी प्रक्रिया होती है। फांसी होने से पहले फांसी की रस्सी को चैक किया जाता है । फिर उस रस्सी के साथ एक डमी फांसी दी जाती है जिसमें फांसी पाए दोषी के शरीर के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा वजन का डमी पुतला तैयार किया जाता है। उसे फांसी के फंदे पर लटकाया जाता है। डमी सफल होने के बाद उस रस्सी और उस ड्रिल के हिसाब से असल फांसी दी जाती है। भारतीय जेलों में आमतौर पर इस पुतले का नाम गंगाराम रखा जाता है।
फांसी की प्रक्रिया को अपनी आंखों से देखने वाले पत्रकार ने अपनी किताब ‘आंखों देखी फांसी’ में लिखा है कि जेल प्रशासन में यह परंपरा लम्बे समय से चली आ रही है। किताब में लिखा है, ‘‘बैजू की फांसी के लिए तैयार किए गए लकड़ी के इस पुतले का नाम था गंगाराम, जो खुद चलकर कहीं आ-जा नहीं सकता था क्योंकि उसके पांव नहीं थे।
अधीक्षक से पूछा कि लकड़ी के इस पुतले का नाम गंगाराम ही क्यों रखा गया तो उन्होंने कहा कि पहले के जेल अधिकारियों से यही सुना है कि भारतवर्ष में एक मृतक के लिए भगवान राम और गंगाजल का विशिष्ट स्थान है। संभवत: गंगा जल के लिए गंगा शब्द और मुक्ति के लिए राम शब्द को मिलाकर गंगाराम बना होगा।
इसीलिए जेलों में लंबे समय से लकड़ी के पुतले का नामकरण गंगाराम ही प्रचलन में आ गया।