Gaya ji Dham: विष्णुपद मंदिर से प्रेतशिला तक, जानिए गया के 48 पवित्र पिंडदान स्थलों की रहस्यमयी यात्रा

Edited By Updated: 07 Sep, 2025 09:50 AM

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Gaya Ji: हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान अहम कर्मकांड है। पिंडदान व श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ‘मोक्ष धाम’ गया को भगवान विष्णु की नगरी कहा जाता है। यही...

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Gaya Ji: हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पितरों की आत्मा की शांति एवं मुक्ति के लिए पिंडदान अहम कर्मकांड है। पिंडदान व श्राद्ध के लिए बिहार में स्थित गया तीर्थ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। ‘मोक्ष धाम’ गया को भगवान विष्णु की नगरी कहा जाता है। यही वजह है कि यहां पिंडदान के लिए देश-विदेश से तीर्थ यात्री आते हैं।

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को पितृपक्ष या महालय पक्ष कहा जाता है, इस दौरान यहां पिंडदान व श्राद्ध के लिए लोगों की भीड़ उमड़ती है। ऐसी मान्यता है कि जिसका भी पिंडदान व श्राद्ध यहां किया जाता है, उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। इसीलिए गया को मोक्षधाम कहा जाता है। गया बिहार की सीमा से लगा फल्गु नदी के तट पर स्थित है। मान्यता है कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान करने से मृतात्मा को बैकुंठ की प्राप्ति होती है। इस तीर्थ का वर्णन रामायण में भी मिलता है। मान्यता है कि पिंडदान करने से मृत आत्मा को मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।

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ऐसे तो पिंडदान के लिए कई धार्मिक स्थान हैं, परंतु सबसे उपयुक्त स्थल बिहार के गया को माना जाता है। गया में पहले विविध नामों की 360 वेदियां थीं लेकिन उनमें से अब केवल 48 ही शेष बची हैं। आमतौर पर इन्हीं वेदियों पर विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी समझा जाता है। इसके अतिरिक्त नौकुट, ब्रह्योनी, वैतरणी, मंगलागौरी, सीताकुंड, रामकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, प्रेतशिला व कागबलि आदि भी पिंडदान के प्रमुख स्थल हैं।

गया से जुड़ी धार्मिक कथा
गया तीर्थ को तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान के लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों माना जाता है? इसके पीछे एक धार्मिक कथा है। जिस गया तीर्थ पर लोग मोक्ष की कामना के साथ जाते हैं, असल में इसे राक्षस गयासुर का शरीर माना जाता है। मान्यता है कि इस राक्षस का शरीर पांच कोस में फैला हुआ है। प्राचीन काल में गयासुर नामक एक शक्तिशाली असुर भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी तपस्या से देवताओं को चिंतित कर रखा था।

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उसकी प्रार्थना पर विष्णु व अन्य समस्त देवता गयासुर की तपस्या भंग करने उसके पास पहुंचे और वरदान मांगने के लिए कहा। गयासुर ने स्वयं को देवी-देवताओं से भी अधिक पवित्र होने का वरदान मांगा। वरदान मिलते ही स्थिति यह हो गई कि उसे देख या छू लेने मात्र से ही घोर पापी भी स्वर्ग में जाने लगे। यह देखकर धर्मराज भी चिंतित हो गए।

इस समस्या से निपटने के लिए देवताओं ने छलपूर्वक एक यज्ञ के नाम पर गयासुर का संपूर्ण शरीर मांग लिया। गयासुर अपना शरीर देने के लिए उत्तर की तरफ पांव और दक्षिण की ओर मुख करके लेट गया। मान्यता है कि उसका शरीर पांच कोस में फैला हुआ था, इसलिए उस पांच कोस के भूखंड का नाम गया पड़ गया। गयासुर के पुण्य प्रभाव से ही वह स्थान तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया।

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गया में अपने पितरों को मोक्ष दिलाने के उद्देश्य से पितृपक्ष में लाखों लोग आते हैं। तीर्थयात्रियों को धार्मिक कर्मकांड में दिनभर का समय लग जाता है। इस दौरान यहां का मेला क्षेत्र बोधगया सहित अन्य स्थानों तक फैल जाता है। इस मेले में कर्मकांड का विधि-विधान कुछ अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, 15 दिन और 17 दिन तक का कर्मकांड करते हैं। कर्मकांड करने आने वाले श्रद्धालु यहां रहने के लिए तीन-चार महीने पूर्व से ही इसकी व्यवस्था कर चुके होते हैं।         

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