राधारानी की नगरी वृन्दावन में बंगाल की विधवाओं ने खेली अनूठी होली

Edited By Jyoti,Updated: 16 Mar, 2022 12:41 PM

holi celebrations at brasana

मथुरा: उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक नगरी वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मंगलवार को सदियों पुरानी रूढि़वादी परंपरा से अलग हटकर बड़ी संख्या में बंगाल की विधवाओं ने अनूठे अंदाज में रंगो के त्योहार

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मथुरा: उत्तर प्रदेश में ऐतिहासिक नगरी वृंदावन के गोपीनाथ मंदिर में मंगलवार को सदियों पुरानी रूढि़वादी परंपरा से अलग हटकर बड़ी संख्या में बंगाल की विधवाओं ने अनूठे अंदाज में रंगो के त्योहार होली को मनाया।कोरोना संकट के कारण कुछ वर्षों के विराम के बाद, विधवाएं इस बार वृंदावन के प्रसिद्ध मंदिर में आज सुबह पूरे उल्लास के साथ होली मनाने के लिए एकत्रित हुईं। विधवाओं द्वारा होली न खेलने की सदियों पुरानी परंपरा की बंदिशों को तोड़ने के लिए सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. बिंदेश्वर पाठक ने 2013 से वृंदावन की विधवाओं को होली मनाने के लिए प्रेरित किया था। हाल के वर्षों में वृंदावन का होली समारोह उन हजारों विधवाओं के लिए यादगार अवसर बन गया है जो असामान्य जीवन जीने को मजबूर थीं।  इन विधवाओं के जीवन में बदलाव तब आया जब सुप्रीम कोटर् ने हस्तक्षेप किया और सुलभ इंटरनेशनल से विधवाओं की देखभाल करने का आग्रह किया।     
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मंगलवार को सुबह से ही विभिन्न आश्रय गृहों में रहने वाली विधवाएं बड़ी संख्या में गोपीनाथ मंदिर में एकत्रित होने लगीं और विभिन्न फूलों की पंखुड़ियां तैयार कीं। गायन, वादन और नृत्य की त्रिवेणी के बीच जब विधवाओं की होली शुरू हुई तो उनके मायूस चेहरों पर सदियों से ठिठकी मुस्कान और जोश वापस लौटे। केवल सफेद साड़ी पहनकर नीरस जीवन बिताने वाली विधवाएं कुछ क्षण के लिए अपने बीते जीवन को भूल गईं और ब्रज का मशहूर रसिया गायन की स्वर लहरियों पर थिरकते हुए एक दूसरे को गुलाल लगाने लगी और फूलों की पंखुड़ियों से भी होली खेलने लगी। वास्तव में फूलों की पंखुड़ियों से पहले श्यामाश्याम की होली मन्दिर के गर्भगृह में हुई तथा बाद में प्रसादस्वरूप फूलों की पंखुड़ियों से विधवाओं ने होली खेली तथा आपस में मिठाई भी बांटी।
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इस अवसर पर मौजूद डा पाठक ने एक बयान में कहा, ‘‘होली में विधवाओं की भागीदारी, रूढि़वादी परंपरा पर विराम का प्रतीक है जो एक विधवा को रंगीन साड़ी पहनने से भी मना कर रही थी।'' इस अवसर पर विधवाओं का जोश देखते ही बनता था। इस मौके पर 85 वर्षीय मानु घोष का कहना था कि उसने सपने में भी नही सोचा था कि वह राधारानी की सहचरी बनकर मंदिर में श्यामसुन्दर से होली खेलेगी। वहीं 68 वर्षीय गौरवाणी दासी ने खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि उसे आज अपने जीवन के पुराने दिन याद आ गए हैं। इससे इतर 66 साल की छबी मांख, 65 वर्षीय विमला दासी, 67 वर्षीय रतनिया दासी एवं 66 वर्षीय छाया रंगारंग होली के इस आयोजन में शरीक होकर इतनी भावुक हो गईं कि उनका गला खुशी में रूंध गया और उन्होंने इशारों में ही अपनी खुशी का इजहार किया। 

 

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