Edited By Niyati Bhandari,Updated: 25 Nov, 2023 12:21 PM
भारतीय परम्पराओं में अभिवादन का विशेष महत्व है। भारतीय जनजीवन में इस परम्परा की शुरूआत सदियों पूर्व ऋषि आश्रमों द्वारा प्रारंभ हुई। ऋषियों, संतों और साधुओं ने अपने आश्रमों में शिष्य परम्परा के अंतर्गत अभिवादन की संस्कार वृत्ति को महत्ता प्रदान की।
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
Importance of Abhivaadan: भारतीय परम्पराओं में अभिवादन का विशेष महत्व है। भारतीय जनजीवन में इस परम्परा की शुरूआत सदियों पूर्व ऋषि आश्रमों द्वारा प्रारंभ हुई। ऋषियों, संतों और साधुओं ने अपने आश्रमों में शिष्य परम्परा के अंतर्गत अभिवादन की संस्कार वृत्ति को महत्ता प्रदान की। गुरु चरणों में बैठकर शिष्य विद्या ग्रहण करता था। अभिवादन की संस्कृति हमारी देश की अनुपम धरोहर है। एक-दूसरे के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने की परम्परा के रूप में अभिवादन का प्रयोग होता है।
Different ways in which people greet each other: वर्तमान में अभिवादन की जितनी भी रीतियां प्रचलित हैं, उनमें सर्वाधिक वैज्ञानिक एवं मनोविज्ञान पर आधारित भारतीय पद्धतियों को मान्य किया गया है। साष्टांग प्रणाम, चरण स्पर्श, नमस्कार, हाथ जोड़ना, गले मिलना अभिवादन के प्रमुख स्वरूप हैं। अभिवादन की शारीरिक प्रतिक्रियाओं के साथ ही अपने इष्ट देव का स्मरण करते हुए संबोधन करना विशेष रूप से आत्मीयता का परिचायक है। अभिवादन से एक-दूसरे के मनोभावों से सौहार्द्र, स्नेह तथा आत्मीयता के भावों का उद्गम होता है तो सामाजिक जीवन को भी समरस बनाने में प्रभावपूर्ण होता है। हमारे पौराणिक ग्रंथों तथा वेदों में भी अभिवादन परम्परा का विशेष उल्लेख मिलता है। जिसके अनुसार परस्पर आत्मीयता के साथ कल्याणकारी मनोभाव पैदा होते हैं। हार्दिक स्नेह तथा निकटता के भाव मन में आते हैं।
Abhivadan kaise kare: अभिवादन के संबंध में मनुस्मृति में लिखा गया है कि अभिवादन करने का जिसका स्वभाव है और विद्या तथा अवस्था में बड़े लोगों का जो नित्य अभिवादन करते है उनकी आयु, विद्या, यश और बल की वृद्धि होती है जो मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुकूल है। अभिवादन प्रक्रिया में चरण स्पर्श को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना गया है। हमारी वैदिक परम्पराओं के अनुसार इस अवस्था को विशेष मान्यता प्रदान की गई है। मनुस्मृति में उल्लेख है कि वेद के स्वाध्याय के प्रारंभ और अंत में सदैव गुरु के दोनों चरणों का स्पर्श करना चाहिए। बाएं हाथ से बायां पैर और दाएं हाथ से दायां पैर स्पर्श करना चमत्कारिक होता है।
चरण स्पर्श का मनोविज्ञान विशेष कोटी का है। जब सामने वाला व्यक्ति स्वयं से श्रेष्ठ व्यक्ति का चरण स्पर्श करता है तो दूसरा व्यक्ति चरण स्पर्श करने वाले के सिर पर आशीर्वाद स्वरूप हाथ रखता है, तो दोनों की समान ऊर्जाएं परस्पर टकराती हैं। जब दोनों की ऊर्जाओं का मिलन होता है तब श्रेष्ठ ऊर्जा वाले की ऊर्जा अपने कम श्रेष्ठ वाले व्यक्ति में प्रवाहित होने लगती है। इस दृष्टि से चरण स्पर्श की परम्परा सर्वाधिक प्रभावशाली मानी गई है।
अभिवादन की प्रस्तुति से एक अपरिचित व्यक्ति भी आत्मीय भाव के साथ ओत-प्रोत होकर उसका अभिन्न हिस्सा बन जाता है।अभिवादन प्रक्रिया में विनीत भाव प्रमुख है। एक-दूसरे के प्रति विनम्रता का भाव अनिवार्य होता है। महाकवि कालीदास ने विनय को राजा से लेकर रंक तक का सबसे बड़ा आभूषण बताया है, जो नमस्कार ही से सुलभ होता है। नमस्कार का मुख्य उद्देश्य है जिन्हें हम नमन करते हैं उनसे हमें आध्यात्मिक एवं व्यावहारिक लाभ उपलब्ध हो। अभिवादन द्वारा विनम्रता में वृद्धि होती है तथा अहंकार समाप्त होता है। कृतज्ञ भाव के साथ सात्विकता प्राप्त होती है। मंदिर में चढ़ते समय सीढ़ियों को भी नमन करते हैं। मन व बुद्धि सहित ईश्वर की शरण जाना साष्टांग नमस्कार होता है। बड़ों को नमन करने से उनमें विद्यमान देवत्व की शरण में प्रमाणकर्ता प्रस्तुत होता है। पश्चिमी सभ्यता का अभिवादन समय सूचक है परंतु हमारे देश का अभिवादन शिष्टाचार के सौंदर्य को परस्पर बांटने का अनुपम साधन है।
Panchang Pranam: नारद पुराण में उल्लेख है कि अपने आराध्य या देवताओं की पूजा में अष्टांग या पंचांग प्रणाम करना चाहिए। आज भी हमारे जन-जीवन में साष्टांग प्रणाम पूर्ण रूप से रचा-बसा है। भारत भूमि पर संत परम्पराओं से लेकर वर्तमान भौतिकवादी युग तक अभिवादन प्रक्रिया निरंतर अस्तित्व में है। यद्यपि जाति, धर्म, सम्प्रदाय वर्ग विशेष की अभिवादन शैली में न्यूनाधिक भिन्नता हो सकती है किन्तु यह निर्विवाद सत्य है कि त्याग, स्नेह, श्रद्धा, सम्मान और निराभिमान को प्रगाढ़ता देने में अभिवादन प्रक्रिया सक्षम है जो भारत की अतिविशिष्ट परम्परा है।