Edited By Jyoti,Updated: 23 Apr, 2022 11:08 AM
दो राजाओं में युद्ध हुआ। विजयी राजा ने हारे हुए राजा के किले को घेर लिया और उसके सभी विश्वासपात्र अधिकारियों को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया। उन कैदियों में पराजित राजा का युवा मंत्री और उसकी पत्नी भी थे।
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दो राजाओं में युद्ध हुआ। विजयी राजा ने हारे हुए राजा के किले को घेर लिया और उसके सभी विश्वासपात्र अधिकारियों को बंदी बनाकर कारागृह में डाल दिया। उन कैदियों में पराजित राजा का युवा मंत्री और उसकी पत्नी भी थे। दोनों को किले के एक विशेष हिस्से में कैद कर रखा गया था।
कैदखाने के दारोगा ने उन्हें आकर समझाया कि हमारे राजा की गुलामी स्वीकार कर लो नहीं तो कैद में ही भूखे-प्यासे तड़प-तड़प कर मर जाओगे। किन्तु स्वाभिमानी मंत्री को गुलामी स्वीकार नहीं थी इसलिए वह चुप रहा। दारोगा चला गया। इन दोनों को जिस भवन में रखा गया था उसमें सौ दरवाजे थे। सभी दरवाजों पर ताले लगे थे। मंत्री की पत्नी का स्वास्थ्य लगातार गिरता जा रहा था और वह बहुत घबरा गई थी, किन्तु मंत्री शांत था। उसने पत्नी को दिलासा देते हुए कहा, ‘‘निराश मत हो।’’
ऐसा कह कर वह एक-एक दरवाजे को धकेल कर देखने लगा। दरवाजा नहीं खुला। लगभग बीस-पच्चीस दरवाजे देखे, किन्तु कोई भी दरवाजा नहीं खुला। मंत्री की पत्नी की निराशा बढ़ती गई किन्तु वह उसी लगन से दरवाजों को धकेलता रहा। उसने निन्यानवे दरवाजे धकेले किन्तु एक भी नहीं खुला। पत्नी ने चिढ़कर उसे बैठा दिया। थोड़ी देर बाद मंत्री पुन: खड़ा हुआ और सौवें दरवाजे को धक्का दिया। धक्का देते ही उसकी चूलें चरमराईं। मंत्री को अनुमान हो गया कि यह दरवाजा खुल सकता है। उसने दोगुने उत्साह से दरवाजे को धक्का देना शुरू किया और थोड़ी देर में वह खुल गया। मंत्री ने शांत भाव से जवाब दिया, आशा का दामन नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि जिंदगी में कभी सारे दरवाजे बंद नहीं हुआ करते। उस दरवाजे से निकल कर मंत्री और उसकी पत्नी कैद से आजाद हो गए।