Edited By Prachi Sharma,Updated: 25 Nov, 2025 01:07 PM

Inspirational Context: बंगाल के राजा कृष्णचंद्र के दरबार में गोपाल भांड नामक एक नवरत्न थे। वह अपनी समझदारी और चतुराई से किसी भी समस्या का हल ढूंढ लेते थे। एक बार राजा कृष्णचंद्र के दरबार में बाहर से कोई विद्वान आया।
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Inspirational Context: बंगाल के राजा कृष्णचंद्र के दरबार में गोपाल भांड नामक एक नवरत्न थे। वह अपनी समझदारी और चतुराई से किसी भी समस्या का हल ढूंढ लेते थे। एक बार राजा कृष्णचंद्र के दरबार में बाहर से कोई विद्वान आया। राजा ने परिचय पूछा तो उस विद्वान पुरुष ने अपना परिचय संस्कृत, अरबी और फारसी समेत कई प्राचीन भाषाओं में दिया। जब वह चुप हुए तो राजा कृष्णचंद्र ने अपने दरबारियों की ओर प्रश्न भरी नजरों से देखा कि बताओ इसकी मातृभाषा क्या है? लेकिन दरबारी यह अनुमान न लगा सके कि दरबार में पधारे विद्वान की मातृभाषा क्या है? सभी चुप, दरबार में सन्नाटा छा गया।
राजा कृष्णचंद्र ने गोपाल भांड से पूछा, “क्या आप कई भाषाओं के ज्ञाता अतिथि विद्वान की मातृभाषा परख सकते हो ?”
गोपाल भांड ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा, “महाराज, मैं तो भाषाओं का जानकार नहीं हूं, फिर भी यदि मुझे अपने हिसाब से पता करने की छूट दे दी जाए तो शायद मैं यह काम कर सकता हूं।”
राजा कृष्णचंद्र ने स्वीकृित दे दी। सभा समाप्त होने के बाद सभी दरबारी सीढ़ियों से उतर रहे थे, तभी गोपाल भांड अतिथि विद्वान के पीछे गए और उन्हें जोर का धक्का दे दिया। विद्वान गिर गए, उन्हें चोट भी लगी। चोट और अपमान से तिलमिलाते हुए उन्होंने गोपाल भांड को अपशब्द कहने शुरू किए। सभी जान गए थे कि उनकी मातृभाषा क्या है।
गोपाल भांड ने विनम्रता से कहा, “देखिए, आराम के समय सब भाषाएं चल जाती हैं, लेकिन जब विपदा आती है तब मातृभाषा ही काम आती है।” अतिथि पंडित अब गोपाल भांड की चतुराई पर चकित थे।
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