Edited By Prachi Sharma,Updated: 01 Jun, 2025 02:36 PM
Inspirational Story: ‘शिक्षा’ और ‘संस्कार’ सबसे कीमती उपहार शिक्षा तथा संस्कार मनुष्य जीवन के सबसे कीमती उपहार हैं। शिक्षा व्यक्ति के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल देती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की शिक्ष धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है
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Inspirational Story: ‘शिक्षा’ और ‘संस्कार’ सबसे कीमती उपहार शिक्षा तथा संस्कार मनुष्य जीवन के सबसे कीमती उपहार हैं। शिक्षा व्यक्ति के जीवन की दशा और दिशा दोनों बदल देती है। शिक्षा शब्द संस्कृत भाषा की शिक्ष धातु में ‘अ’ प्रत्यय लगाने से बना है, जिसका अर्थ है सीखना और सिखाना। शब्द का अर्थ है शुद्धिकरण अथवा सुधार। शिक्षा और संस्कार दोनों जीव के मूल मंत्र हैं परंतु संस्कार जीवन का सार हैं।
अच्छे संस्कारों द्वारा ही मनुष्य के व्यक्तित्व का निर्माण होता है और जब मनुष्य में शिक्षा और संस्कार दोनों का विकास होगा, तभी वह परिवार समाज और देश का विकास कर सकेगा। शिक्षा कभी झुकने नहीं देती और संस्कार कभी नजरों से गिरने नहीं देते। यदि अच्छी शिक्षा और संस्कार एवं अच्छी संगति मिल जाए तो जीवन निखर जाता है।

ठीक इसके विपरीत यदि एक की भी कमी रह जाए तो जीवन बिखर जाता है। यदि बच्चे को उपहार न दिया जाए तो वह केवल थोड़ी देर रोता है लेकिन यदि संस्कार न दिए जाएं तो वह जीवन भर रोएगा। आज शिक्षा केंद्र सुलभ हो गए हैं, परंतु संस्कार दुर्लभ हैं। शिक्षा सस्ती हो गई है। आप कहीं से भी, घर बैठे भी ग्रहण कर सकते हैं, परंतु संस्कार यदि घर और विद्यालय से नहीं मिले तो कहीं भी न मिल पाएंगे।
मां-बाप की आज्ञा का पालन न करना, अभद्र व्यवहार तथा अहंकार विश्व परिस्थिति बन गए हैं। यदि हम सोचते हैं कि बड़े-बड़े महंगे स्कूलों में डाल कर हम अपने बच्चों को संस्कारी और शिक्षित बना रहे हैं तो हम गलत हैं। शिक्षा और संस्कार दोनों ही आवश्यक हैं।
माता-पिता भले ही अनपढ़ क्यों न हों, लेकिन अपने बच्चों को शिक्षा और संस्कार देने की जो क्षमता उनमें है, वह दुनिया के किसी भी स्कूल में नहीं है।
शिक्षा हमें धन-दौलत और प्रसिद्धि दिलाती है, परंतु उस धन-दौलत और प्रसिद्धि को चार चांद लगा देते हैं-संस्कार। किसी ने कहा भी है कि जिस स्थान पर पेड़ पौधे और पानी होता है, वहां हरियाली अपने आप आ जाती है। उसी तरह जहां अच्छी शिक्षा और संस्कार होते हैं वहां सफलता आपके कदम चूमती है।
आज माता-पिता और शिक्षकों के लिए यह महत्ती आवश्यक है कि वे बच्चों में सच्चाई, ईमानदारी और सेवा और सहायता जैसे गुणों को विकसित करें। एक सफल डॉक्टर, इंजीनियर या शिक्षक से कई गुणा अच्छा एक अनपढ़ व्यक्ति है, जो किसी बुजुर्ग को अपनी सीट दे देता है, किसी असहाय की सहायता करता है।

मनुष्य अपने जीवन में जो डिग्री हासिल करता है, वह कागज का टुकड़ा मात्र होता है जबकि उसकी असली डिग्री उसके संस्कार होते हैं, जो व्यवहार में झलकते हैं। आज का विद्यार्थी भौतिकवादी प्रवृत्ति का बन चुका है। वह पढ़ाई केवल इसलिए करता है, ताकि आने वाले समय में अपने जीवन में कुछ पैसे कमा सके। संस्कार उसको बाजारी शिक्षा से नहीं बल्कि घर से मिलेंगे।
बच्चों को संस्कारी बनाने के लिए पहले मां-बाप को संस्कारवान बनना आवश्यक है। यदि मां-बाप झूठ बोलते हैं, झगड़ा करते हैं, गाली-गलौच करते हैं तो बहुत संभावना है कि बच्चे भी ऐसा करेंगे इसलिए हमें भी अपने बच्चों के सामने आदर्श बनना होगा।
वर्तमान में माता-पिता अपने बच्चे को उसी कोचिंग सैंटर में दाखिला दिलवाते हैं जिसकी फीस सबसे अधिक होती है। उनके अनुसार विद्या के सबसे अच्छे मंदिर वही हैं। उन्हें मालूम नहीं है कि कोचिंग सैंटर से निकला बच्चा मोटी तनख्वाह तो हासिल कर लेगा, लेकिन वह संस्कार कहां से पाएगा जो घर में बुजुर्गों, दादा-दादी चाचा-चाची तथा आस-पड़ोस से मिलने थे।
किसी शायर के शब्दों में- जिस देश में बारिश न हो उसकी फसलें खराब हो जाती हैं और जिस देश में संस्कार न हों वहां की नस्लें खराब हो जाती हैं।
