Edited By Prachi Sharma,Updated: 19 Nov, 2025 11:50 AM

Inspirational Story: एक राजा अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। वह अक्सर विद्वानों और दरबारियों से अनेक मामलों पर चर्चा करते रहते। एक बार उनके राज्य के सबसे बड़े विद्वान उनके दरबार में आए। वे दोनों भोजन करने के लिए बैठे, तभी राजा के मन में एक...
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Inspirational Story: एक राजा अपनी न्यायप्रियता के लिए प्रसिद्ध थे। वह अक्सर विद्वानों और दरबारियों से अनेक मामलों पर चर्चा करते रहते। एक बार उनके राज्य के सबसे बड़े विद्वान उनके दरबार में आए। वे दोनों भोजन करने के लिए बैठे, तभी राजा के मन में एक सवाल उठा।
उन्होंने विद्वान से पूछा, “कृपया बताएं कि हक की रोटी कैसी होती है।”

विद्वान ने कहा, “इसका जवाब मैं आपको दूं इससे अच्छा है कि आप इसे अपने नगर में ही रहने वाली एक वृद्धा से पूछें। आप उनसे हक की रोटी मांग भी सकते हैं। आपके प्रश्न का सटीक जवाब आपको मिल जाएगा।”
राजा उस वृद्धा के पास पहुंचे और बोले, “माता मुझे हक की रोटी चाहिए।” वृद्धा ने कहा, “राजन मेरे पास बस एक रोटी है, पर उसमें आधी हक की है और आधी बेहक की।”
राजा ने पूछा, “भला ऐसा कैसे?” वृद्धा ने कहा, “एक दिन मैं शाम के समय चरखा कात रही थी। अंधेरा हो चला था। इतने में रास्ते से गाने वालों की मंडली निकली। उन लोगों ने मशालें भी जला रखी थीं। उन मशालों की रोशनी में मैं चरखा कातती रही।

मैंने उस रोशनी में आधी ‘पूनी’ काती जबकि आधी पहले की थी। उस पूनी को बेचकर मैंने आटा खरीदा, फिर रोटी बनाई। इसलिए आधी रोटी हक की है और आधी बेहक की। इस आधी रोटी पर तो उस मंडली का हक है।”
राजा समझ गए कि कई बार हम जिसे अपना मानते हैं उस पर दूसरों का भी हक होता है।