Vivah Panchami: नेपाल में स्थित है जनकपुर धाम, पढ़ें ऐतिहासिक कथा

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 16 Dec, 2023 04:36 PM

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त्रेतायुग में अवतरित जानकी जी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। लक्ष्मी स्वरूपा मां जानकी क्षमा एवं करूणा की साक्षात प्रतिमा हैं। जानकी जी एक आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी, आदर्श बहू एवं आदर्श माता के


Vivah Panchami 2023: त्रेतायुग में अवतरित जानकी जी को माता लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। लक्ष्मी स्वरूपा मां जानकी क्षमा एवं करूणा की साक्षात प्रतिमा हैं। जानकी जी एक आदर्श पुत्री, आदर्श पत्नी, आदर्श बहू एवं आदर्श माता के रूप में पूजित हैं। जानकी जैसा त्याग, समर्पण तथा वात्सल्य भाव कहीं और दिखलाई नहीं देता। भारतीय देवियों में सती शिरोमणि भगवती श्री सीता जी का स्थान सर्वोत्तम है। जनक सुता होने के कारण इनका नाम जानकी भी प्रचलित है। स्त्री के शील और धैर्य की श्री जानकी जी के चरित्र में पराकाष्ठा है। यही कारण है कि भारतीय साहित्य के अधिकांश पृष्ठ श्री सीता जी के धवल चरित्र के आज भी साक्षी बने हुए हैं। इतिहास, पुराण से लेकर ग्राम्य गीतों तक में श्री सीता जी की समान रूप से प्रतिष्ठा हुई है।
 
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What is the significance of Janakpur: जगत माता जानकी जी का प्राकट्य मिथिला की राजधानी जनकपुर धाम में हुआ। वर्तमान में जनकपुर धाम नेपाल में स्थित है। रामायण के अनुसार एक समय राजा जनक के राज्य में भीषण अकाल पड़ा जिससे राज्य में त्राहि- त्राहि मच गई। राज्यवासी भूख व प्यास से व्याकुल हो उठे। राजा जनक धर्म परायण एवं विद्वान राजा थे। उन्होंने इस परिस्थिति के समाधान के लिए अपने गुरु से मंत्रणा की। गुरुदेव ने राजा जनक को सलाह दी कि वह सोने का हल लेकर धरती को जोतें तो वर्षा होगी तथा अकाल समाप्त हो जाएगा।
 
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Birthplace of Sita: प्रजा वत्सल राजा जनक इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए। कहते हैं राजा जनक ने धरती पर सोने का हल चलाया। हल धरती में किसी वस्तु में धंस गया। ब्राह्मणों के परामर्श पर जब उस स्थान को खोदा गया तो वहां से एक स्वर्ण कलश प्राप्त हुआ। कलश का ढक्कन हटाने पर उसमें एक अति तेजमय बालिका मिली जिसे जनक एवं महारानी सुनयना ने गोद में ले लिया। यही बालिका कालांतर में जानकी कहलाईं। राजा जनक ने उस कन्या को भगवान का दिया हुआ प्रसाद समझ अपनी पुत्री की भांति बड़े ही लाड़-प्यार से उसका पालन-पोषण किया।
 
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 Vivah Panchami Nepal Janakpurdham: धीरे-धीरे जानकी विवाह योग्य हो गईं। महाराजा जनक ने धनुष यज्ञ के माध्यम से उनके स्वयंवर का आयोजन करवाया। निमंत्रण पाकर देश-विदेश से राजा मिथिला पहुंचे। ऋषि विश्वामित्र भी श्री राम और लक्ष्मण के साथ यज्ञोत्सव देखने मिथिला पधारे। शिव जी के कठोर धनुष ने वहां उपस्थित सभी राजाओं के दर्प को चूर-चूर कर दिया। अंत में विश्वामित्र की आज्ञा से श्री राम शिव धनुष के पास पहुंचे। उन्होंने मन ही मन अपने गुरु को प्रणाम किया और बड़े ही आराम से उक्त धनुष को उठा लिया। इस अवसर पर एक बिजली सी कौंधी और धनुष दो टुकड़े होकर पृथ्वी पर आ गिरा। प्रसन्नता के आवेग और सखियों के मंगलगान के साथ सीता जी ने श्री राम के गले में जयमाला अर्पित कर दी।
 
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Why is Vivah Panchami celebrated in Janakpur: इसके बाद महाराजा जनक ने महाराज दशरथ को निमंत्रण दिया। इस दौरान श्री राम के साथ उनके तीनों भाइयों का भी जानकी जी की बहनों के साथ विवाह हो गया। बारात विदा हुई तथा पुत्रों एवं पुत्रवधुओं के साथ राजा दशरथ अयोध्या पहुंचे। राजा दशरथ द्वारा अपनी पत्नी कैकेयी को दिए वचन के कारण श्री राम को राज्याभिषेक के बदले अचानक चौदह वर्ष का वनवास हुआ।  श्री राम एवं अन्य बड़ों की सलाह न मान कर सीता जी ने अपने पति से कहा, ‘‘पिता के वचन अनुसार मुझे आपके साथ ही रहना होगा। मुझे आपके साथ वनगमन इस राजमहल के सभी सुखों से अधिक प्रिय है।‘‘

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Sita Ram Marriage Ceremony : इस प्रकार सीता जी हठ करके श्री राम एवं लक्ष्मण के साथ वन में चली गईं। वन में उन्हें तमाम कष्टों को सहन करना पड़ा। इसके बावजूद उन्होंने कभी भी पत्नी धर्म नहीं छोड़ा। सीता जीवन में भी हर क्षण श्री राम जी को स्नेह एवं शक्ति प्रदान करती रहीं। लंका प्रवास भगवती सीता के धैर्य की पराकाष्ठा है।

Ram Sita Vivah Panchami in Janakpurdham: भगवान सीता के कारण ही जनकपुर वासियों को श्री राम का दर्शन और लंका वासियों को मोक्ष प्राप्त हुआ।
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