त्र्यंबकेश्वर मंदिर में कालसर्प दोष पूजा का है अधिक महत्व!

Edited By Updated: 26 Sep, 2021 05:26 PM

kaal sarp dosh in trimbakeshwar temple

ज्योतिष शास्त्री बताते हैं कि ग्रहों की अशुभ स्थिति आदि के कारण कई तरह के ग्रह दोष पैदा हो जाते हैं, जिन्हें दूर करने के लिए कई तरह के उपाय या धार्मिक अनुष्ठान आदि किए जाते हैं।

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ज्योतिष शास्त्री बताते हैं कि ग्रहों की अशुभ स्थिति आदि के कारण कई तरह के ग्रह दोष पैदा हो जाते हैं, जिन्हें दूर करने के लिए कई तरह के उपाय या धार्मिक अनुष्ठान आदि किए जाते हैं। इन्हीं में से एक दोष है कालसर्प दोष, जिसे काफी अशुभ माना जाता है। अर्थात जिसकी कुंडली में ये दोष पैदा हो जाए उसे कई तरह के अशुभ प्रभाव प्राप्त होेते हैं। बताया जाता है इस दोष से राहत पाने के लिए न केवल उपाय किए जाते हैं बल्कि देश के कुछ प्रमुख धार्मिक स्थलों पर इसके लिए खास पूजा की जाती है। बता दें कालसर्प दोष की पूजा खासतौर पर उज्जैज (मध्यप्रदेश), ब्रह्मकपाली (उत्तराखंड), त्रिजुगी नारायण मंदिर (उत्तराखंड), प्रयाग (उत्तरप्रदेश), त्रीनागेश्वरम वासुकी नाग मंदिर (तमिलनाडु) आदि जगहों पर संपन्न होती है, परंतु इन तमाम जगहों में से त्र्यंबकेश्वर (महाराष्ट्र) को सबसे माना जाता है।

नाशिक के पास गोदावरी तट पर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक से त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, जहां पर नागपंचमी और अन्य विशेष दिनों में कालसर्प दोष की पूजा होती है। कहा जाता है कि इस पूजा के लिए यह स्थान सबसे प्रमुख है। कहा जाता है कि ये एकमात्र स्थान है जहां प्रतिवर्ष लाखों लोग कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। कहते हैं कि यहां के शिवलिंग के दर्शन करने से ही कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है। बता दें कालसर्प के अलावा यहां त्रिपिंडी विधि और नारायण नागबलि की पूजा संपन्न होती है।

मान्यता है कि इस मंदिर में 3 शिवलिंगों की पूजा की जाती है जिनको ब्रह्मा, विष्णु और शिव के नाम से जाना जाता है। मंदिर के पास 3 पर्वत स्थित हैं, इन्हें ब्रह्मगिरी, नीलगिरी और गंगा द्वार के नाम से जाना जाता है। लोक मत है कि यहां ब्रह्मगिरी पर्वत भगवान शिव का स्वरूप है, नीलगिरी पर्वत पर नीलाम्बिका देवी और दत्तात्रेय भगवान का मंदिर है और गंगा द्वार पर्वत पर देवी गोदावरी मंदिर स्थित है।

यहां कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए विधिवत रूप से संपूर्ण पूजा की जाती है, जिसमें कम से कम 3 घंटे लगते हैं। कहा जाता है अन्य स्थानों की अपेक्षा में ये स्थान सबसे खास है क्योंकि यहां पर शिव जी का महा मृत्युंजय रूप विद्यमान है।

चूंकि यहां तीन नेत्रों वाले शिवशंभु के विराजमान हैं,  इसलिए ही इस जगह को त्र्यंबक (तीन नेत्रों वाले) कहा जाने लगा। उज्जैन और ओंकारेश्वर की तरह ही त्र्यंबकेश्वर महाराज को यहां का राजा माना जाता है।

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