ये है शिव जी का इकलौता ऐसा शिव मंदिर, जहां नंदी नहीं देते उनका साथ

Edited By Jyoti,Updated: 18 Jul, 2022 01:42 PM

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18 जुलाई, 2022 यानि आज इस वर्ष के श्रावण मास  का पहला सोमवार है। बात करें इस बार के श्रावण मास की तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार का श्रावण मास बेहद खास संयोग के साथ आया जिस कारण इसका अधिक महत्व माना जा रहा है। प्रत्येक वर्ष सावन मास के प्रांरभ...

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18 जुलाई, 2022 यानि आज इस वर्ष के श्रावण मास  का पहला सोमवार है। बात करें इस बार के श्रावण मास की तो ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस बार का श्रावण मास बेहद खास संयोग के साथ आया जिस कारण इसका अधिक महत्व माना जा रहा है। प्रत्येक वर्ष सावन मास के प्रांरभ होते ही देश के विभिन्न हिस्सों में भोलेनाथ के जयकारे गूंजने लगते हैं। तो वहीं लोग श्रावण मास में शिव जी की कृपा पाने के लिए इन्हें समर्पित ज्योर्तिलिंगों के साथ-साथ इनके अन्य मंदिर के दर्शन करने जाते हैं। तो आज हम आपको शिव जी के एक ऐसे ही मंदिर के बार मे जानकारी देने जा रहे हैं, जहां श्रावण मास में जाने वाले शिव भक्तों पर शिव जी की अपार कृपा बरसती है। लेकिन आपको बता दें इस मंदिर से जुड़ी एक ऐसी बात है, जो इस मंदिर को शिव जी के अन्य शिव मंदिरों से भिन्न बनाती है।
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तो आइए जानते हैं कौन सा है ये मंदिर व क्या है इसकी खासियत-
आप में से लगभग लोग इस बारे मे जानते होंगे कि जिस तरह शिव शंकर को अपने शरीर पर सुशोभित प्रत्येक वस्तु के साथ-साथ अपने वाहन व गण नंदी भी अधिक प्रिय है। यही कारण है कि प्रत्येक शिव मंदिर में शिव जी के साथ नंदी की प्रतिमा जरूर विराजित होती है। बल्कि प्रचलित लोक मान्यता के अनुसार इनके कान में मनोकामना बताने से शीघ्र पूरी होती है। परंतु क्या आप जानते हैं कि शिव जी का एक ऐसा भी मंदिर है जहां शिव जी अकेले विराजमान हैं, यानि वहां उनके साथ विराजित नहीं है।

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जहां एक तरफ प्रत्येक शिवालयों को शिव जी के गण नंदी के बिना शिवालय को अधूरा माना जाता है तो वहीं महाराष्ट्र के नासिक के गोदावरी तट के पास कपालेश्वर महादेव मंदिर स्थित है, जहां भगवान शिव की प्रतिमा तो है लेकिन उनके वाहन नंदी स्थापित नहीं है। धार्मिक पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में भगवान भोलेनाथ ने इस मंदिर में निवास किया था। तो इससे जुड़ी पौराणिक कथाओं पर दृष्टि डालें तो इस मंदिर का रहस्य कहीं न कहीं ब्रह्मा जी से भी जुड़ा हुआ है।
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आइए जानते हैं क्या है पौराणिक कथा-
कथाओं में किए वर्णन के मुताबिक ब्रह्मदेव के 5 मुख थे, चार मुख वेदोच्चारण करते थे और पांचवां मुख हमेशा लोगों की बुराई करता था। एक बार की बात ही इंद्रसभा की सभा में ब्रह्मदेव का पांचवा मुख भगवान शिव की निंदा करने लगा जिससे क्रोधित भगवान शिव ने उनका मुख धड़ से अलग कर दिया। परंतु ये कर्म करने से उन्हें ब्रह्मा हत्या का पाप लग गया। जिसके बाद सोमेश्वर में एक बछड़े ने शिव जी को इसकी मुक्ति का उपाय बताया। कथाओं के अनुसार इस बछड़े पर भी अपने ब्रह्मण मालिक की हत्या का पाप था।
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उसने शिव जी को ठीक वही उपाय बताया जो उसने स्वयं किया था। उसने शिव शंकर को नासिक के पास स्थित रामकुंड में स्नान करने को कहा। जिसके उपरांत भोलेनाथ ने बछड़ा यानी कि नंदी को अपना गुरु मान लिया। कहा जाता है कि चूंकि यहां नंदी महादेव के गुरू बन गए थे इसीलिए उन्होंने इस यहां नंदी को अपने सामने बैठने से मना कर दिया, ऐसा बताया जाता है कि तभी से यहां नंदी की प्रतिमा स्थापित नहीं है।

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