क्यों होता है कार्तिक पूर्णिमा का पर्व इतना खास ?

Edited By Lata,Updated: 09 Nov, 2019 03:18 PM

kartik purnima

हिंदू धर्म में हर माह में कई तरह के पर्व मनाए जाते हैं और हर महीना अपने आप में खास होता है। लेकिन कार्तिक का महीना सबसे श्रेष्ठ माना

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हिंदू धर्म में हर माह में कई तरह के पर्व मनाए जाते हैं और हर महीना अपने आप में खास होता है। लेकिन कार्तिक का महीना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। बारह मासों में कार्तिक मास आध्यात्मिक एवं शारीरिक ऊर्जा संचय के लिए सर्वश्रेष्ठ माना गया है। स्वयं नारायण ने भी कहा है कि माहों में, मैं कार्तिक माह हूं। इसी तरह वैसे तो हर महीने में आने वाली पूर्णिमा महत्वपूर्ण होती है, किंतु कार्तिक पूर्णिमा कुछ अलग ही होती है। कार्तिक पूर्णिमा हमें देवों की उस दीपावली में शामिल होने का अवसर देती है, जिसके प्रकाश से प्राणी के भीतर छिपी तामसिक वृतियों का नाश होता है। 
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कार्तिक महीने कि अगर महिमा के बारे में बात करें तो इस मास में किया गया दान व स्नान बहुत ही महत्व रखता है। कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा, त्रिपुरी पूर्णिमा या गंगा स्नान के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना गया है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे वर्ष गंगा स्नान करने का फल मिलता है। इस तिथि के लेकर शास्त्रों में एक कथा प्रचलित है कि त्रिपुरासुर नाम के दैत्य ने तप करके ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि उसे देवता, स्त्री, पुरुष, जीव ,जंतु, पक्षी, निशाचर न मार पाएं। इसी वरदान से त्रिपुरासुर अमर हो गया और देवताओं पर अत्याचार करने लगा। देवताओं के आग्रह करने पर तब महादेव ने त्रिपुरासुर के वध का फैसला किया।
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महादेव ने तीनों लोकों में दैत्य को ढूंढ़ा। कार्तिक पूर्णिमा के दिन महादेव ने प्रदोष काल में अर्धनारीश्वर के रूप में त्रिपुरासुर का वध किया। उसी दिन देवताओं ने शिवलोक यानि काशी में आकर दीपावली मनाई। तभी से ये परंपरा काशी में चली आ रही है। माना जाता है कि कार्तिक मास के इस दिन काशी में दीप दान करने से पूर्वजों को मुक्ति मिलती है। 

इसके अतिरिक्त आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को पुनःजागते हैं। भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती करके दीप प्रज्वलित किए। 
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पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद श्री सत्यनारायण की कथा का श्रवण, गीता पाठ, विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ और 'ॐ नमो भगवते वासुदेवाय' का जप करने से प्राणी पापमुक्त-कर्जमुक्त होकर विष्णु की कृपा पाता है। भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए इस दिन आसमान के नीचे सांयकाल घरों, मंदिरों, पीपल के वृक्षों तथा तुलसी के पौधों के पास दीप प्रज्वलित करने चाहिए, गंगा आदि पवित्र नदियों में दीप दान करना चाहिए।

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