Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Feb, 2023 07:50 AM
जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति का स्वर्गवास हो गया। लगभग सभी धर्म स्वर्ग, नर्क, जन्नत, दोजख की बात करते हैं। इनमें से कोई भी धर्म जीवित मनुष्य को
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जब किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है तो हम कहते हैं कि अमुक व्यक्ति का स्वर्गवास हो गया। लगभग सभी धर्म स्वर्ग, नर्क, जन्नत, दोजख की बात करते हैं। इनमें से कोई भी धर्म जीवित मनुष्य को स्वर्ग प्राप्ति की बात नहीं करता। जब किसी व्यक्ति को जीवन मृत्यु के आवागमन के चक्र से मुक्ति मिल जाती है तो हम उसकी मोक्ष प्राप्ति की बात करते हैं। स्वर्ग एक ऐसी स्थिति है जहां आदमी सुख, शांति, चैन, संतोष प्राप्ति के साथ रहता है। उसे कोई चिंता, फिक्र, बीमारी, शोक, संताप, खुशी, गम, भूख, प्यास का भय नहीं सताता। माना जाता है कि ऐसी स्थिति केवल मृत्यु के बाद ही प्राप्त होती है।
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ऐसे में अगर हम जीवित व्यक्ति के स्वर्ग प्राप्ति की बात करें तो आश्चर्य तो होगा न। हां, साहब यह सच है कि धरती पर ही स्वर्ग है, इसी धरती पर ही नर्क है। फर्क है तो केवल महसूस करने का। अच्छे तथा पुण्य कर्म करके मनुष्य को संतोष तथा शांति मिल सकती है। जिस आदमी ने काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार पर काबू पा लिया उसकी सारी इच्छाएं मर जाती हैं, मन से अपने तथा पराए की भावना समाप्त हो जाती है, आदमी, राग, द्वेष से ऊपर उठ जाता है। आदमी दुनियादारी के मायाजाल में नहीं फंसता।
उसे हर चीज में परमात्मा का रूप दिखाई देता रहता है, उसे परम सुख की प्राप्ति महसूस होती है। स्वर्ग तथा नर्क सिर्फ अनुभूति या अहसास की भावना का नाम है। कृष्ण जी को विदुर के साग तथा सुदामा की रूखी सूखी रोटी में जो आनंद आया वह हमें धरती पर स्वर्ग की ही याद कराता है। क्या अपनी ही नाव में श्री रामचंद्रजी, सीता तथा लक्ष्मण को गंगा पार कराने वाले केवट को स्वर्ग सा परम सुख प्राप्त नहीं हुआ था, क्या श्रीराम को जूठे बेर खिलाने वाली शबरी को तब किसी स्वर्ग की जरूरत थी?
स्वर्ग यहां, नर्क यहां, इसी जीवन में ही सब कुछ है। जो लोग ऊपर आकाश की तरफ इशारा करके स्वर्ग होने की बात कहते हैं, वे आधारहीन भ्रम के जाल में फंसे हुए हैं। हम सभी को अपने-अपने कार्यों का फल भोग कर ही जाना पड़ता है। जैसी करनी वैसी भरनी। बोओगे पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाओगे। अच्छे कर्म किए हैं तो फल भी अच्छा मिलेगा।
अगर हम रात दिन काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार के चक्रव्यूह में फंसे रहेंगे, निंदा, चुगली, बेईमानी, ईर्ष्या, बलात्कार, गैंगरेप, हत्या, हिंसा ही हमारे दिल-दिमाग में छाए रहेंगे, याद रखो इस सारे का फल घोर नर्क के तौर पर हमें यहीं भुगतान होगा।
औलाद बिगड़ जाएगी घर में कलह-कलेश, मारधाड़, अशांति, अविश्वास, असहयोग, बीमारी देखने को मिलेगी। अगर हम बेईमानी, चोरी, भ्रष्टाचार, अनाचार-दुराचार का पैसा कमा के अपने परिवारजनों को खिलाएंगे, समझ लीजिए हमने नर्क के लिए अभी से ही अपनी सीट पक्की करा ली है। आजकल जो हमारे देश की स्थिति है, राजनीतिक हालात हैं, मित्र, रिश्तेदार, पड़ोसी एक-दूसरे के साथ जो विश्वासघात करते हैं, तरह-तरह की असाध्य बीमारियों के कारण ढेर सारा पैसा खर्च करके भी आदमी ठीक नहीं होता मर जाता है यह सब नर्क नहीं तो क्या है?
बेशक कई बार कुछ शैतान मानसिकता वाले लोग दूसरों के लिए कांटे बोते हैं, गड्ढे खोदते हैं या फिर नुकसान करके जीवन दु:खदाई बनाते हैं जिसका वे बाद में स्वयं फल भोगते हैं, लेकिन यह कटु सत्य है कि हमारे सुख-दु:ख के लिए 90 प्रतिशत तक हमारे अपने कर्म ही जिम्मेदार हैं। अगर किसी व्यक्ति को बुरे कर्म करके भी कोई तकलीफ नहीं होती तो समझना चाहिए कि वह अभी तक अपने पहले के अच्छे कर्मों की वजह से बचा हुआ है। जैसे उसके शुभकर्मों का प्रताप खत्म हो जाएगा, उसके बुरे कर्म उसे घेरना शुरू कर देंगे।
ऊपर वाला सब कुछ देखता है और हमारे सभी कर्मों का रिकॉर्ड रख रहा है। हम मानें या न मानें हमें अपने कर्मों का फल यहीं भोगना पड़ता है। अगर परमात्मा का भजन किया है, मां-बाप, बुजुर्गों, दीन-दुखियों की सेवा की है, परहित में अपने को लगाया है, झूठ, निंदा, ईर्ष्या, काम, क्रोध, लोभ, मोह तथा अहंकार से अपने आपको परे रखा है तो हमें अच्छे फल की आशा करनी चाहिए। सुख, शांति, सुकून, प्रशंसा, अच्छा स्वास्थ्य मिलेगा। हमें स्वर्ग की प्राप्ति होगी। अच्छे कर्म करने के फलस्वरूप ही कोई व्यक्ति बिना किसी भेदभाव के स्वर्ग जा सकता है। फिर हम स्वर्ग क्यों न चलें? अच्छे कर्म के बदले में मिला आशीर्वाद स्वर्ग जाने की सीढ़ी है।