Edited By Niyati Bhandari,Updated: 13 Dec, 2022 07:45 AM
युधिष्ठिर ने ‘नरो वा कुंजरो वा’ का भ्रमपूर्ण वक्तव्य देकर द्रोणाचार्य को शोक संतप्त कर दिया और उस खिन्न अवस्था से लाभ उठाकर जब उनको मारा गया तो इस अनीतिपूर्ण कार्य से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध आया।
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Mahabharata: युधिष्ठिर ने ‘नरो वा कुंजरो वा’ का भ्रमपूर्ण वक्तव्य देकर द्रोणाचार्य को शोक संतप्त कर दिया और उस खिन्न अवस्था से लाभ उठाकर जब उनको मारा गया तो इस अनीतिपूर्ण कार्य से द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध आया। वह प्रतिशोध लेने के लिए कुछ भी करने के लिए उतारु हो गया। उसने द्रौपदी के सोते हुए पांचों पुत्रों की हत्या कर डाली और उत्तरा के गर्भ पर भी आक्रमण किया ताकि पांडवों का वंश नाश हो जाए। यह प्रतिहिंसा यहीं समाप्त नहीं हुई।
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पांडवों को अपने पुत्रों के मरने का दुख हुआ और उन्होंने भी अश्वत्थामा से बदला लेने की ठानी। युद्ध में जीत कर अर्जुन ने उसे बांध कर द्रौपदी के सामने उपस्थित किया ताकि उसकी इच्छानुसार दंड दिया जा सके। महारानी द्रौपदी ने दूरदर्शिता और उदारता से काम लिया।
हिंसा और प्रतिहिंसा का कुचक्र तोड़े बिना काम नहीं चलता। इससे तो आगे भी सर्वनाश ही होता चलता है। द्रौपदी ने अर्जुन से कहा, छोड़ दो, इसे छोड़ दो। यह ब्राह्मण हमसे श्रेष्ठ है। जिन गुरु द्रोणाचार्य ने तुम्हें धनुर्विद्या सिखाई, यह उन्हीं का पुत्र है। उनके उपकारों को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करो और इसे छोड़ दो।
ब्राह्मण पूजा के योग्य हैं वध के योग्य नहीं। मैं अपने पुत्रों की मृत्यु से दुखी होकर जिस प्रकार से जी रही हूं उसी प्रकार इसकी माता गौतमी को भी मेरे समान ही न रोना पड़े इसलिए इसे छोड़ देना ही उचित है।