Edited By Prachi Sharma,Updated: 29 Dec, 2025 03:56 PM

Mahabharat Rahasya : महाभारत की कथा में माता कुंती का जीवन अद्भुत संयम, त्याग और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। वे केवल पांडवों की जननी ही नहीं थीं, बल्कि धर्म, विवेक और सहनशीलता का जीवंत उदाहरण भी थीं।
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Mahabharat Rahasya : महाभारत की कथा में माता कुंती का जीवन अद्भुत संयम, त्याग और संघर्ष का प्रतीक माना जाता है। वे केवल पांडवों की जननी ही नहीं थीं, बल्कि धर्म, विवेक और सहनशीलता का जीवंत उदाहरण भी थीं। बहुत कम लोग जानते हैं कि कुंती का जन्म सामान्य नहीं था, बल्कि उनके व्यक्तित्व में दैवीय शक्ति का विशेष अंश समाया हुआ था। उनका संपूर्ण जीवन कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य बनाए रखने और कर्तव्य निभाने की प्रेरणा देता है। जन्म से लेकर जीवन की अंतिम यात्रा तक कुंती का आचरण यह सिखाता है कि सांसारिक मोह से ऊपर उठकर कैसे मोक्ष के मार्ग पर चला जा सकता है।
माता कुंती किसका अवतार थीं?पुराणों और महाभारत से जुड़े कई संदर्भों में माता कुंती को ‘सिद्धि’ देवी का अंश माना गया है। सिद्धि को सफलता और पूर्णता की देवी कहा जाता है। कुछ ग्रंथ यह भी बताते हैं कि कुंती मति अर्थात बुद्धि की देवी का रूप थीं। इसी दैवीय गुण के कारण उनमें विशेष आध्यात्मिक सामर्थ्य था। अपने पूर्व जन्म और दिव्य अंश के प्रभाव से ही वे महर्षि दुर्वासा द्वारा दिए गए मंत्रों को सिद्ध कर सकीं। इसी मंत्र विद्या के माध्यम से उन्होंने विभिन्न देवताओं का आवाहन किया और पांडव जैसे महान और पराक्रमी पुत्रों की प्राप्ति की।

महाभारत युद्ध के बाद कुंती का जीवन
कुरुक्षेत्र युद्ध समाप्त होने के बाद जब युधिष्ठिर ने राजसिंहासन संभाला, तब कुंती कुछ समय तक राजमहल में रहीं। इस दौरान उन्होंने धृतराष्ट्र और गांधारी की सेवा की और अपने पुत्रों व बहुओं के साथ समय बिताया।
लेकिन धीरे-धीरे उनके मन में वैराग्य की भावना प्रबल होने लगी। वे समझ चुकी थीं कि जीवन का वास्तविक उद्देश्य भोग-विलास नहीं, बल्कि आत्मिक शांति और ईश्वर की प्राप्ति है। जब धृतराष्ट्र और गांधारी ने वानप्रस्थ आश्रम अपनाने का निश्चय किया, तब कुंती ने भी उनके साथ वनगमन का मार्ग चुना।
माता कुंती की मृत्यु
वन में रहते हुए धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती गहन तपस्या में लीन थे। इसी दौरान एक दिन जंगल में अचानक भयंकर अग्निकांड हो गया। तप में मग्न होने के कारण वे उस आग से बाहर नहीं निकल सके और वहीं देह त्याग दी। हालांकि सामान्यतः ऐसी मृत्यु को दुखद माना जाता है, लेकिन तपस्या की अवस्था में अग्नि में शरीर त्यागने के कारण तीनों को मोक्ष की प्राप्ति हुई। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने माता कुंती को अपने धाम में स्थान प्रदान किया। उनका जीवन और अंत दोनों ही त्याग, तप और आध्यात्मिक उत्कर्ष की महान मिसाल हैं।
