Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Aug, 2023 09:11 AM
महाभारत के युद्ध में गांधारी के समस्त पुत्रों की मृत्यु हो गई। वह शोक विह्वल थी। भगवान श्री कृष्ण उसे सांत्वना देने आए तो गांधारी
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Mahabharata Story: महाभारत के युद्ध में गांधारी के समस्त पुत्रों की मृत्यु हो गई। वह शोक विह्वल थी। भगवान श्री कृष्ण उसे सांत्वना देने आए तो गांधारी का शोक उन पर टूट पड़ा।
वह श्री कृष्ण को श्राप देते हुए बोली, “मैंने जीवन भर पति की अपार सेवा की है, उस सेवा से मैंने जो तप प्राप्त किया है, उस दुर्लभ तपोबल से मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम्हारा सारा परिवार आपस में ही लड़कर नष्ट हो जाए और तुम भी किसी निंदित तरीके से मारे जाओगे।”
श्री कृष्ण शांत रहे और बोले, “तुम मुझे अपने पुत्रों की मृत्यु का दोषी मत समझो, क्या तुम नहीं जानतीं कि तुम्हारे पुत्रों ने पांडवों के साथ घोर अन्याय किया था ?
क्या तुम्हें भरी सभा में द्रोपदी को निर्वस्त्र किए जाने के अनर्थ का पता नहीं था और जब भी दुर्योधन युद्ध में जाने से पहले तुमसे विजयी होने का आशीर्वाद मांगता तो तुम ही तो उसे ‘यतो धर्मस्ततो जय’ अर्थात जिसके पक्ष में धर्म होगा, उसकी ही विजय हो, का आशीर्वाद देतीं। अब तुम पांडवों की विजय होने पर व्याकुल क्यों हो रही हो।
हे माता ! कर्म का फल तो पहले से ही निश्चित है। सृष्टि में ऐसा कोई नहीं है जो कर्म के फल का भोग न करे। देवता, गंधर्व, किन्नर, नाग जैसी देव योनियों वाली आत्माओं को भी कर्म का फल भोगना ही पड़ता है। आपके पुत्र अन्याय और अधर्म के मार्ग पर चल रहे थे। अत: उनके लिए तो यह परिणाम पूर्व निश्चित था।” गांधारी चुप रहीं।
श्री कृष्ण फिर बोले, “अंत में विजय धर्म और न्याय की ही होती है। इस विजय ने सिद्ध कर दिया है कि किसी के साथ अन्याय अथवा धर्म के विरुद्ध आचरण का परिणाम सम्पूर्ण विनाश के रूप में सामने आता है।” फिर भी श्री कृष्ण गांधारी के श्राप से बच नहीं पाए और वन में जरा (बहेलिया) के तीर से मृत्यु को प्राप्त हुए।