इस स्तंभ में साक्षात प्रकट हुए थे भगवान नरसिंह, कहां है ये जानिए

Edited By Jyoti,Updated: 22 Apr, 2022 02:48 PM

manikya sthumb in dharhara village

"प्रह्लाद" जिसे विष्णु भगवान के परम भक्त का दर्जा प्राप्त है परंतु प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप उसके बिल्कुल विपरीत था, वो न किसी देवी-देवता को मानता था, न ही अपने पुत्र प्रह्लाद

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"प्रह्लाद" जिसे विष्णु भगवान के परम भक्त का दर्जा प्राप्त है परंतु प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप उसके बिल्कुल विपरीत था, वो न किसी देवी-देवता को मानता था, न ही अपने पुत्र प्रह्लाद को भगवान विष्णु की आराधाना करने देता था। बल्कि वह अपने आप को ईश्वर मानता था, और पूरे राज्य के साथ-साथ अपने पुत्र प्रह्लाद को भी उसकी पूजा करने के लिए मजबूर करता था। चूंकि प्रह्लाद श्री हरि विष्णु की अत्यंत भक्ति करता था और उनका परम भक्त था इसलिए हिरण्यकश्यप उसे पंसद नहीं करता था। वह उसे बार बार अपनी पूजा करने के लिए कहता था परंतु उसका अडिग स्वभाव देखकर प्रह्लाद के पिता होने के बावजूद उसने अपने पुत्र को यातनाएं देनी शुरु कर दी थी। धार्मिक कथाओं के अनुसार लेकिन वो कभी इनमें सफल नहीं हुआ। ग्रंथों में किए वर्णन के अनुसार हिरण्यकश्यप से पुत्र प्रह्लाद के साथ-साथ पूरा राज्य को उससे छुटकारा दिलाना के लिए स्वयं श्री विष्णु स्तंभ से नरसिंह के रूप में प्रकट हुए थे। आज हम आपको इसी स्तंभ से जुड़ी जानकारी देने जा रहे है। जी हां, बहुत कम लोग जानते हैं कि देश में वह गांव आज भी स्थित है जहां ये स्तंभ मौजूद जिसमें से नरसिंह भगवान प्रकट हुए थे। 
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बता दें प्रचलित मान्यताओं के अनुसार बिहार के पूर्णिया जिले के सिकलीगढ़ धरहरा नामक गांव हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि यही वह स्थान है जहां हिरण्यकश्यप की बहन होलिका अपने ही भतीजे प्रह्लाद को आग में को लेकर बैठी थी, जिसमें प्रह्लाद को तो कुछ नहीं हुआ, परंतु होलिका भस्म हो गई थी। कहा जाता है बिहार का ये वही स्थान है जहां पर भगवान विष्णु ने नरसिंह का अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया था।

आइए जानते हैं इस स्तंभ के बारे में- 
बताया जाता है धरहरा में एक खंभा स्थापित है, जिसे माणिक्य स्तंभ के नाम से जाना जाता है। कथाओं के अनुसार जब होलिका दहन के बाद भी भक्त प्रहलाद का कुछ नहीं हुआ तब दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने स्वयं अपने पुत्र को मारने की ठानी। ऐसे में दैत्यराज ने अपने पुत्र से कहा कि तू कहता है कि तेरा विष्णु हर जगह है तो फिर तो वो इस खंभे में भी होगा। ये कहते ही हिरण्यकश्यप ने जोर से खंभे में लात मारी। कथाओं के अनुसार जैसे ही खंभा टूटा वैसे ही भगवान विष्णु नरसिंह के अवतार में उसी खंभे से प्रकट हुए और दैत्यराज को अपनी जांध पर लिटाकर उसके पेट फाड़ कर उसका वध कर दिया था। लोक मान्यता है कि माणिक्य स्तंभ वहीं खंभा है, जिससे नरसिंह भगवान प्रकट हुए थे।
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कहा जाता है कि इस खंभ को कई बार तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन हमेशा असफलता हाथ लगी है। बता दें यह खंभा 65 डिग्री झुका हुआ है, जो जमीन से 10 फीट ऊंचा एवं 12 फीट मोटा बेलनाकार है। हालांकि कहा जाता है कि इसका अंदरूनी हिस्सा खोखला है। तो वहीं इसके ऊपरी हिस्से में एक छेद था जिसमें पहले पत्थर या कोई अन्य चीज का टुकड़ा डालने पर पानी में कुछ गिरने जैसी आवाज आती है। इससे अनुमान लगाया जाता है कि स्तंभ के निचले हिस्से में जल का स्त्रोत है। यहां के स्थानीय लोगों के अनुसार जब होलिका मर गई थी और प्रहलाद जीवित रह गए थे तो उसकी खुशी पर सभी से उसी राख और मिट्टी को एक-दूसरे के ऊपर लगाया था। ऐसा कहा जाता इसके बाद से ही होली पर्व  की शुरुआत हुई थी। 
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