Edited By Jyoti,Updated: 29 Mar, 2022 11:05 AM
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक बार गांधी जी सूत कातने के बाद उसे लपेटने ही वाले थे कि उन्हें एक आवश्यक कार्य के लिए तुरन्त बुलाया गया। गांधी जी वहां से जाते समय आश्रम के साथी सुबैया से बोले, ‘‘मैं पता नहीं कब लौटूं
शास्त्रों की बात, जानें धर्म के साथ
एक बार गांधी जी सूत कातने के बाद उसे लपेटने ही वाले थे कि उन्हें एक आवश्यक कार्य के लिए तुरन्त बुलाया गया। गांधी जी वहां से जाते समय आश्रम के साथी सुबैया से बोले, ‘‘मैं पता नहीं कब लौटूं, तुम सूत लपेते पर उतार लेना, तार गिन लेना और प्रार्थना के समय से पहले मुझे बता देना।’’
सुबैया बोला, ‘‘जी बापू, मैं कर लूंगा।’’
इसके बाद गांधी जी चले गए। मध्य प्रार्थना के समय आश्रमवासियों की हाजिरी होती थी। उस समय किस व्यक्ति ने कितने सूत के तार काते हैं, यह पूछा जाता था। उस सूची में सबसे पहला नाम गांधी जी का था। जब उनसे उनके सूत के तारों की संख्या पूछी गई तो वह चुप हो गए। उन्होंने सुबैया की ओर देखा। सुबैया ने सिर झुका लिया। हाजिरी समाप्त हो गई।
प्रार्थना समाप्त होने के बाद गांधी जी कुछ देर के लिए आश्रमवासियों से बातें किया करते थे। उस दिन वह काफी गंभीर थे। उन्हें देखकर लग रहा था जैसे कि उनके भीतर कोई गहरी वेदना है। उन्होंने दुख भरे स्वर में कहना शुरू किया, ‘‘आज मैं मोह में फंस गया।
सोचा था, सुबैया मेरा काम कर लेंगे, लेकिन यह मेरी भूल थी। मुझे अपना काम स्वयं करना चाहिए था। भाई सुबैया का इनमें कोई दोष नहीं, दोष मेरा है। मैंने क्यों अपना काम उनके भरोसे छोड़ा?’’
इस भूल से मैंने एक बहुत बड़ा पाठ सीखा है। अब मैं फिर ऐसी भूल कभी नहीं करूंगा। उनकी बात सुनकर सुबैया को भी स्वयं पर अत्यंत ग्लानि हुई और उन्होंने निश्चय किया कि यदि आगे से वह कोई जिम्मेदारी लेंगे तो उसे अवश्य समय पर पूरी करेंगे।