Edited By Jyoti,Updated: 26 Jun, 2022 11:35 AM
एक कमरे में चार दीपक जल रहे थे और वहां के माहौल में एक शांति छाई हुई थी। शांति भी ऐसी थी कि मंद स्वर में की जाने वाली बात को भी आसानी से सुना जा सकता था। पहले दीपक
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एक कमरे में चार दीपक जल रहे थे और वहां के माहौल में एक शांति छाई हुई थी। शांति भी ऐसी थी कि मंद स्वर में की जाने वाली बात को भी आसानी से सुना जा सकता था। पहले दीपक ने दुखी स्वर में कहा मैं शांति हूं, मुझे कोई बनाए नहीं रखना चाहता है। मुझे बुझ जाना चाहिए और इतना कहने के पश्चात दीपक बुझ गया। दूसरे दीपक ने कहा मैं विश्वास हूं, अधिकांश लोग मुझे लम्बे समय तक कायम नहीं रख सकते हैं, फिर मेरे जलते रहने का क्या प्रयोजन है?
तने में हवा का एक झोंका आया और उसकी लौ को बुझा दिया।
तीसरे दीपक ने निराशा भरे स्वर में कहा मैं ज्ञान हूं, मुझमें अब जलने की ताकत ही नहीं बची है क्योंकि कुछ लोग मेरे महत्व को नहीं समझते, इसलिए मुझे बुझ जाना चाहिए। निराशा के इन क्षणों में बिना एक पल की प्रतीक्षा के वह भी बुझ गया।
तभी एक बालक ने उस कमरे में प्रवेश किया और उसने देखा कि तीन दीपक नहीं जल रहे हैं। उसने पूछा कि तुम तीनों क्यों नहीं जल रहे हो जबकि तुम्हें तो आखिरी क्षण तक जलकर प्रकाश देना चाहिए। इतना कह कर वह बालक रोने लगा। चौथा दीपक जो अभी तक जल रहा था उसने बालक का रोना देखकर कहा-मेरे जलते रहने पर तुम्हें रोने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि मैं आशा का दीपक हूं। बालक की आंखों में चमक लौट आई। उसने आशादीप से पुनः: शेष तीनों दीपों को जला दिया।