National Science Day: प्रकाश के रहस्य सुलझाने वाले महान वैज्ञानिक सी.वी. रमन

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 27 Feb, 2023 09:29 AM

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आज हम आपको महान भारतीय भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकटरमन (सी.वी. रमन) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका भौतिकी यानी फिजिक्स के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने 28 फरवरी, 1928 को ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, जिसके परिणामस्वरूप

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National Science Day 2023: आज हम आपको महान भारतीय भौतिक विज्ञानी सर चंद्रशेखर वेंकटरमन (सी.वी. रमन) के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनका भौतिकी यानी फिजिक्स के क्षेत्र में बहुत बड़ा योगदान है। उन्होंने 28 फरवरी, 1928 को ‘रमन प्रभाव’ की खोज की थी, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें 1930 में भौतिकी के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इनकी इस अहम खोज की याद में ही हर साल 28 फरवरी को ‘राष्ट्रीय विज्ञान दिवस’ मनाया जाता है।

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मेधावी छात्र

सर सी.वी. रमन का जन्म 7 नवंबर, 1888 को तिरुचिल्लापल्ली (तमिलनाडु) में हुआ था। इनके पिता आर.चंद्र शेखर अय्यर विशाखापत्तनम में गणित और भौतिकी के लैक्चरार थे, उनकी माता का नाम प्रवती अंमल था। बचपन से ही वह पढ़ाई में मेधावी थे और इनकी विज्ञान में काफी रुचि थी। खेल-खेल में वह अपने भाई-बहनों के साथ मिलकर विज्ञान के छोटे-छोटे प्रयोग करते रहते थे। 11 साल की उम्र में ही उन्होंने 10वीं कक्षा पास कर ली और 13 साल की उम्र में स्कॉलरशिप लेकर 12वीं कक्षा पास की। कॉलेज से स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में पास करने वाले वह पहले छात्र थे।

पिता के कहने पर पास की सिविल सेवा लेकिन नहीं छोड़ा विज्ञान का साथ
अपने पिता की रुचि के अनुसार उन्होंने सिविल सेवा का पेपर दिया और उसमें टॉप भी किया। 1907 में वह कोलकाता चले गए और वहां सहायक महालेखाकार की ड्यूटी की, लेकिन अपने खाली समय में भी वह प्रयोगशाला में जाकर विज्ञान से संबंधित विभिन्न प्रकार के प्रयोग करते थे। उनकी ड्यूटी कठिन और व्यस्त थी लेकिन विज्ञान में रुचि के कारण वह रात में भी शोध कार्य करते थे। उन दिनों प्रयोगशाला में उपकरणों और सुविधाओं की कमी थी, फिर भी उन्होंने अपना शोध जारी रखा और विभिन्न समाचार पत्रों और पत्रिकाओं में उन्हें प्रकाशित किया। उस समय उनके शोध का फोकस तरंगों का क्षेत्र था।

1917 ई. में उन्हें कोलकाता विश्वविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक के रूप में कार्य करने का अवसर मिला। 15 वर्षों तक यह सेवा देने के बाद, वह 1933-1948 तक भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलूर में भौतिकी के प्रोफैसर के रूप में सेवा करने के लिए चले गए। यहां उन्होंने अपना ‘रमन इंस्टीच्यूट ऑफ रिसर्च, बेंगलूर’ स्थापित किया, जिसके वह निदेशक बने। इससे पहले 1928 में उन्होंने रमन प्रभाव की खोज की। रमन प्रभाव प्रकाश से जुड़ी एक अहम खोज है, जो प्रकाश की किरणों के फैलने पर आधारित है। ‘रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी’ (स्पैक्ट्रोस्कोपी पदार्थ द्वारा प्रकाश और अन्य विकिरण के अवशोषण और उत्सर्जन का अध्ययन है) का इस्तेमाल आज दुनियाभर की कैमिकल लैब्स में हो रहा है। इसी खोज की मदद से पदार्थ की पहचान की जाती है। फार्मास्यूटिकल्स सैक्टर में सैल्स और टिश्यू पर शोध से लेकर कैंसर का पता लगाने तक के लिए इनकी खोज आज तक काम आ रही है।

एक रिपोर्ट के अनुसार मिशन चंद्रयान के दौरान चांद पर पानी का पता लगाने में भी ‘रमन स्पैक्ट्रोस्कोपी’ का ही योगदान था। इसके अलावा उन्होंने भौतिकी के क्षेत्र में अन्य खोजें कीं, जो अल्ट्रासोनिक और हाइपरसोनिक तरंगों से जुड़ी हैं। वह न केवल प्रकाश के विशेषज्ञ थे बल्कि उन्होंने ध्वनिकी (एकोस्टिक्स) के साथ भी प्रयोग किया। वाद्य यंत्रों के कंपन के दौरान उत्पन्न होने वाली तरंगों पर उन्होंने एक लेख लिखा। तबला और मृदंगम जैसे भारतीय ढोल की ध्वनि की हार्मोनिक प्रकृति की जांच करने वाले सी.वी. रमन पहले व्यक्ति थे। भौतिकी के क्षेत्र में उनकी उच्च उपलब्धियों के लिए 1954 में भारत सरकार द्वारा देश के सर्वोच्च पुरस्कार, भारत रत्न से उन्हें सम्मानित किया गया था। प्रयोगशाला में काम करते समय उन्हें बड़ा दिल का दौरा पड़ा और 21 नवंबर, 1970 को ‘रमन शोध संस्थान’ में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।

इरादे मजबूत होने चाहिएं
वह एक महान वैज्ञानिक थे, जिन्होंने अपने अथक परिश्रम से पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया और साबित कर दिया कि अगर इंसान के इरादे मजबूत हों तो दुनिया की कोई ताकत उसका रास्ता नहीं रोक सकती। उनके जीवन से मार्गदर्शन लेना चाहिए और विशेष रूप से छात्रों को उनकी आत्मकथा पढ़नी चाहिए, जिससे उन्हें विज्ञान और अध्ययन में रुचि पैदा करने से लेकर जीवन के हर क्षेत्र में मेहनत करने की प्रेरणा मिलती है। 

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