योग वही है, युग बदलते गए, जानिए सतयुग से कलियुग तक योग का रूपांतरण

Edited By Updated: 29 May, 2025 02:00 PM

real meaning of yoga

Real Meaning Of Yoga: आज योग हजारों करोड़ का उद्योग बन गया है, जो की विभिन्न पाठ्यक्रमों और योग स्टूडियो के माध्यम से तेजी से दुनिया के हर एक हिस्से में फैल रहा है l नई-नई तकनीकों को पावर योग, हॉट योग, डॉग योग आदि नाम देकर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है।...

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Real Meaning Of Yoga: आज योग हजारों करोड़ का उद्योग बन गया है, जो की विभिन्न पाठ्यक्रमों और योग स्टूडियो के माध्यम से तेजी से दुनिया के हर एक हिस्से में फैल रहा है l नई-नई तकनीकों को पावर योग, हॉट योग, डॉग योग आदि नाम देकर धड़ल्ले से बेचा जा रहा है। आप जो मन चाहे करिये और वही योग नए रूप में बिकने को तैयार है। इन सभी नित नई तकनीकों के बावजूद भी, शायद ही कोई है जो योग सूत्रों में विधित शक्ति और विज्ञान के अनुभव कराए। 

तो चलिए, इन नवीन तकनीकों  को पीछे छोड़, योग के उस विज्ञान पर दृष्टि डालें जिसकी परिकल्पना हजारों वर्ष पूर्व वैदिक महापुरुषों ने की थी क्योंकि यही ज्ञान है जिसने समय-समय पर योगियों को अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण किया है। 

ऋषि पतंजलि कह गए हैं, योगः चित्तवृत्तिनिरोधः (१.२) अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। 

मनुष्य शरीर में एक मस्तिष्क है जो कि चित्त के द्वारा नियंत्रित है। चित्त को ईश्वर से जुड़ने कि एक कड़ी भी मन जा सकता है। चित्त की शुद्धता का स्तर हमें हमारी इच्छाएं और जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। जितना निर्मल चित्त, उतनी ही निस्वार्थ इच्छाएं होती है। 

वृत्तियां विभिन्न प्रकार से चित्त को विचलित करती हैं। आत्मा की शुद्धता और उसके कर्मो की आधार पर वृत्तियां दुर्बल या प्रबल होती है। 

योग अभ्यास द्वारा चित्त की वृत्तियों का निरोध होता है तथा ईश्वर के साथ सम्बन्ध निर्मल होता है। अविद्या दूर होती है तथा वास्तविकता के दर्शन होते हैं। 

गुरु सानिध्य  में चित्त  की पांच वृत्तियां, जो हमें अवास्तविकता और भौतिकता में बांधती है, उन्हें दूर करना ही  योग है। योग वही है जो सतयुग, द्वापर और त्रेता में था। उसमें कोई बदलाव नहीं है। सतयुग में योग ज्ञान था, त्रेतायुग में वह ध्यान हुआ जिसके द्वारा ज्ञान अर्जित किया जा सकता है। द्वापरयुग में फिर कर्म हुआ जिसके द्वारा ध्यान लगाया जा सके और फिर ज्ञान कि  प्राप्ति हो। वर्तमान युग में योग सेवा हैं, जो हमारे कर्मों को सुधारती है और फिर ध्यान द्वारा  ज्ञान कि प्राप्ति  के लिए प्रेरित करती है। ज्ञान बिना आत्म-बोध और परम-आनंद संभव ही नहीं है। योग एक ही है, केवल युगों में क्षय हुआ है। इस परम विज्ञान को नवीन रूप देकर, इसका व्यापारीकरण नहीं किया जा सकता। 

कलियुग का योग सेवा है। जब आप गुरु निर्देशित सेवा के मार्ग पर चलते हैं तब आपका चित्त निर्मल होता है, आपकी इच्छाएं स्वार्थहीन होने लगती हैं। आपके स्वाथ्य में वर्धन होता है, आप जो सोचते हैं वह होने लगता है तथा परमात्मा के साथ आपका सम्बन्ध दृढ़ता होता है। 

अश्विनी गुरुजी ध्यान आश्रम 

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