Edited By Niyati Bhandari,Updated: 24 Jan, 2022 10:06 AM
एक आश्रम में महिष मुद्गल के सान्निध्य में दो शिष्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उनकी शिक्षा पूर्ण हुई तो दोनों अपने-अपने विषय में
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Religious Katha- एक आश्रम में महिष मुद्गल के सान्निध्य में दो शिष्य शिक्षा ग्रहण कर रहे थे। उनकी शिक्षा पूर्ण हुई तो दोनों अपने-अपने विषय में पारंगत हो गए। विद्या से जहां विनम्रता और अनुशासन आता है, वहीं वह दोनों अपनी विद्वता के चलते अहंकारी हो गए थे।
एक दिन मुद्गल गंगा स्नान के पश्चात आश्रम में लौटे तो देखा कि अभी तक आश्रम की साफ-सफाई नहीं हुई है। शिष्य भी सो कर नहीं उठे हैं।
महिष ने दोनों को उठाते हुए आश्रम की सफाई के बारे में पूछा तो दोनों ही एक-दूसरे को सफाई के लिए कहने लगे। एक बोला, ‘‘अब मैं पूर्ण विद्वान हूं और सफाई मेरा काम नहीं है।’’ दूसरे ने जवाब दिया, ‘‘मैं भी तुम्हारे समकक्ष हूं, मुझे भी झाड़ू उठाना शोभा नहीं देता।’’
महिष बोले, ‘‘तुम दोनों ही ठीक कह रहे हो। तुम दोनों ही विद्वान हो और श्रेष्ठ भी हो।’’ यह कहकर महिष स्वयं झाड़ू उठाकर साफ-सफाई में जुट गए। दोनों शिष्य शर्म से पानी-पानी होकर महिष के चरणों में गिर पड़े। गुरु की विनम्रता के आगे उनका अहंकार टूट गया।