क्यों किया भगवान शिव ने नाग को अपने गले में धारण ?

Edited By Lata,Updated: 22 Apr, 2019 05:05 PM

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हिंदू धर्म में 33 कोटि के देवी-देवता यानि 33 प्रकार के देवी-देवता को पूजा जाता है। आप सबने ये देखा होगा कि सभी देवों ने अपने शरीर पर कुछ न कुछ धारण किया होता है।

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हिंदू धर्म में 33 कोटि के देवी-देवता यानि 33 प्रकार के देवी-देवता को पूजा जाता है। आप सबने ये देखा होगा कि सभी देवों ने अपने शरीर पर कुछ न कुछ धारण किया होता है। ऐसे में देवों के देव महादेव ने अपने गले में सांपों को धारण किया है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि ये सांप उनके गले में विराजमान क्यों हैं?  
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ऐसा कहा जाता है कि भारत में नागों के रहस्य को सुलझाना बहुत कठिन काम है। ऐसा भी कहा जाता है कि सर्प जातियों के नामों के आधार पर ही मानव जाति का आधार हुआ ? लेकिन ये बात तो तय है कि सभी नाग प्रजातियां भोलेनाथ के भक्त थे। तो चलिए आज जानतें हैं कि वासुकी नाग भगवान के गले में कैसे आया। 
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माना जाता है कि वासुकी नाग भोलेनाथ के परम भक्त थे और ये भी कहा जाता है कि नाग प्रजातियों ने ही शिवलिंग की पूजा का प्रचलन शुरु किया था और भगवान ने प्रसन्न होकर उन्होंने अपने गणों में शामिल किया था। 
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शास्त्रों में नागराज वासुकी को नागलोक के राजा के रूप में जाना जाता है। कहते हैं कि समुद्र मंथन के दौरान वासुकी नाग को ही रस्सी के रूप में मेरु पर्वत के चारों ओर लपेटकर मंथन किया गया था और इसके साथ ही जब भगवान श्रीकृष्ण को कंस की जेल से चुपचाप वसुदेव उन्हें गोकुल ले जा रहे थे तब रास्ते में जोरदार बारिश हो रही थी। इसी बारिश और यमुना नदी के उफान से वासुकी नाग ने ही श्रीकृष्ण की रक्षा की थी। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वासुकी ने भगवान शिव की सेवा में नियुक्त होना स्वीकार किया। कहते हैं कि तभी से भगवान शिव ने नागों के राजा वासुकी को अपने गले का हार बनाया। 

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