Happy Lohri 2020: यहां जानें लोहड़ी मनाने का धार्मिक कारण

Edited By Jyoti,Updated: 12 Jan, 2020 02:10 PM

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माघ माह के कृष्ण पक्ष के तृतीया तिथि यानि 13 जनवरी, 2020 को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाएगा। बता दें मुख्य रूप से ये त्यौहार उत्तर भारत में मनाया जाता है। पंजाब से लेकर हरियाणा में इस पर्व अधिकतर रौनक देखने को मिलती है। ज्योतिषियों में इसकी डेट को...

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Happy Lohri: माघ माह के कृष्ण पक्ष के तृतीया तिथि यानि 13 जनवरी, 2020 को लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाएगा। बता दें मुख्य रूप से ये त्यौहार उत्तर भारत में मनाया जाता है। पंजाब से लेकर हरियाणा में इस पर्व अधिकतर रौनक देखने को मिलती है। ज्योतिषियों में इसकी डेट को लेकर थोड़ा भेदभाव भी देखने को मिल रहा है। परंतु बता दें इस बार भी लोहड़ी 13 जनवरी को ही है और इससे ठीक अगले दिन मकर संक्रांति का पर्व मनाया जाएगा यानि 14 जनवरी 2020 को। क्योंकि आज कल देखा-देखी का प्रचलन बहुत बढ़ चुका है इसलिए देश के अन्य कई हिस्सों में भी ये त्यौहार मनाना जाने लगा है। मगर हम जानते हैं उनमें से बहुत से ऐसे लोग होंगे जिन्हें ये नहीं पता होगा कि लोहड़ी का पर्व मनाने के पीछे धार्मिक परंपरा क्या है। तो बता दें इन्हीं लोगों के लिए हम लाएं लोहड़ी के त्यौहार से जुड़ी खास बातें जैसे कि इसे कैसे मनाया जाता है तथा इसे मनाने की परंपरा कैसे शुरू हुई।
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तो चलिए शुरू करते हैं इससे जानकारी जानने का ये सिलसिला-
इसलिए मनाया जाता है यह पर्व-
मान्यताओं के अनुसार ये त्यौहार खासतौर पर नव विवाहित जोड़ों के लिए खास माना होता है। ऐसा कहा जाता इस दिन जो भी मैरिड कपल अग्नि में आहुति देकर अपने सुखी वैवाहिक जीवन की कामना करते हैं उनके जीवन में आने वाली परेशानियां भी उसी आहुति में मिल जाती है।

क्यों जलाते हैं आग?
इस दिन से जुड़ी पौराणिक कथाओं के अनुसार, लोहड़ी के दिन आग जलाने को लेकर मान्यता है कि यह आग्नि राजा दक्ष की पुत्री सती की याद में जलाई जाती है। हिंदू धर्म में प्रचलित कथाओं के अनुसार राजा दक्ष ने अपने घर में यज्ञ करवाया जिसमें अपने दामाद शिव और पुत्री सती को आमंत्रित नहीं किया। इस बात से निराश होकर सती अपने पिता के पास आकर पूछा कि उन्हें और उनके पति को इस यज्ञ में निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया। तो अहंकारी राजा दक्ष ने सती और भगवान शिव की बहुत निंदा की। इससे सती बहुत आहत हुईं और अपने पति का अपमान नहीं पाई और उसी यज्ञ में कूदकर खुद को भस्म कर लिया। जिसके बाद भगवान शिव ने अपने अंश अवतार वीरभद्र को उत्पन्न कर यज्ञ का विध्वंस करा दिया। ऐसा कहा जाता है तब से ही माता सती की याद में लोहड़ी पर आग जलाने की परंपरा है।

दूसरो और पारंपरिक तौर पर देखें तो लोहड़ी का त्यौहार फसल की बुआई और कटाई से जुड़ा हुआ है। इस खास अवसर पर पंजाब में नई फसल की पूजा की जाती है। शाम को लोग अपने घरों के बाहर लोहड़ी जलाते हैं तथा साथ मिलकर इस पर्व का जश्न मनाते हैं। लड़के भांगड़ा और लड़कियां गिद्दा करती हैं। इस तरह लोग नाच गाकर एक दूसरे को लोहड़ी की शुभकामनाएं देते हैं। बता दें लोहड़ी के दिन अग्नि प्रज्वलित करके उसमें तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं।

लोहड़ी से जुड़ी पौराणिक कथाएं-
इस दिन से जुड़ी एक कथा के अनुसार ये त्यौहार दुल्ला भट्टी से संबंधित है। इसके मुताबिक ये कथा अकबर के शासनकाल की है जब दुल्ला भट्टी पंजाब प्रांत के सरदार हुआ करते थे। कहा जाता है उन दिनों में लड़कियों की बाज़ारी की जाती थी। लड़कियों की इस बाज़ारी का विरोध पूरे प्रांत में सिवाए दुल्ला भट्टी के अलावा कोई नही करता था। कथाओं के अनुसार उन्होंने न केवल इसका विरोध किया था बल्कि सभी लड़कियों को बचाकर उनकी शादी करवाई थी। तभी से लोहड़ी के दिन दुल्ला भट्टी की कहानी सुनने और सुनाने की परंपरा प्रचलन में आ गई।
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इसके अलावा एक अन्य कथा के अनुसार प्रहलाद की बुआ यानि हिरण्यकश्यप की बहन होलिका की एक बहन थी जिसका नाम लोहड़ी और होलिका दोनों बहने थीं। मगर लोहड़ी होलिका से अलग थी यानि वो व्यवहार की अच्छी थी। इसलिए होलिका अग्नि में जल गई और लोहड़ी बच गई। ऐसा कहा जाता है इसके बाद से ही पंजाब में उसकी पूजा होने लगी और उसी के नाम से लोहड़ी का पर्व मनाया जाने लगा।
 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार देवी सती के आत्मदाह के बाद भगवान शिव ने दक्ष प्रजापति को कठोर दंड दिया था। जब दक्ष को अपनी भूल का अहसास हुआ तो उन्होंने महादेव से क्षमा मांगी और जब देवी सती ने पार्वती रूप में अगला जन्म लिया तो उन्होंने देवी पार्वती को उनके ससुराल में लोहड़ी के अवसर पर उपहार भेजकर अपनी भूल सुधारने का प्रयास किया। कहा जाता तभी से लोहड़ी पर नवविवाहित कन्याओं के लिए मायके से वस्त्र और उपहार भेजे जाने की पंरपरा प्रचलित हुई।
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