Shivling Mystery: पढ़ें, अद्भुत शिवलिंग वाले गोकर्ण महादेव का इतिहास

Edited By Updated: 28 Aug, 2023 09:46 AM

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कर्नाटक में मैंगलोर के पास एक गांव स्थित है, जिसका नाम है गोकर्ण। समुद्र तट पर स्थित गोकर्ण की ख्याति तीनों लोकों में है। वहां ब्रह्मा, देवगण, तपोधन मुनिगण, भूत, यक्ष, पिशाच, किन्नर, नाग

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Shivling Mystery: कर्नाटक में मैंगलोर के पास एक गांव स्थित है, जिसका नाम है गोकर्ण। समुद्र तट पर स्थित गोकर्ण की ख्याति तीनों लोकों में है। वहां ब्रह्मा, देवगण, तपोधन मुनिगण, भूत, यक्ष, पिशाच, किन्नर, नाग, सिद्ध, चारण, गंधर्व, मनुष्य, सागर, सरिताएं, पर्वत आदि भवानीनाथ शंकर की उपासना करते हैं। कहा जाता है कि पाताल में तपस्या करते हुए रुद्र भगवान गोरूप धारिणी पृथ्वी के कर्णरंध्र से वहां प्रकट हुए थे।

इसी से इनका नाम गोकर्ण पड़ा। यहां भगवान शंकर का आत्मतत्व शिवलिंग है। ताम्राचल नामक पहाड़ी से निकली ताम्रवर्णी नदी के किनारे रुद्र भूमि श्मशान स्थल पर भगवान रुद्र पाताल से निकल कर यहां खड़े हुए थे। गोकर्ण मंदिर में पीठ स्थान पर भक्तों को केवल अरघा दिखता है। अरघे के भीतर आत्मतत्व शिवलिंग के मस्तक का अग्रभाग ही दिखता है। उसी की पूजा होती है। इस आत्मतत्व शिवलिंग को महाबलेश्वर या गोकर्ण महाबलेश्वर के नाम से जानते हैं।

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पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार भगवान शंकर मृग रूप धारण कर कैलाश से अंतर्ध्यान हो गए। ढूंढते हुए देवता उस मृग के पास पहुंचे। विष्णु, ब्रह्मा तथा इंद्र तीनों देवताओं ने मृग के सींग पकड़े। मृग तो अदृश्य हो गया लेकिन देवताओं के हाथ में सींग के तीन टुकड़े रह गए। विष्णु तथा ब्रह्मा के हाथ के टुकड़े सींग के मूलभाग तथा मध्यभाग गोला गोकर्ण नाथ तथा शृंगेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुए। इंद्र के हाथ में सींग का अंतिम अग्रभाग था, जिसे उन्होंने स्वर्ग में स्थापित किया।

रावण पुत्र मेघनाद ने जब स्वर्ग विजय किया, तब रावण वह शिवलिंग मूर्ति लेकर लंका की ओर चला। रावण के पास आत्मबल शिवलिंग होने से देवता चिंतित हो गए। रावण जब गोकर्ण क्षेत्र में पहुंचा तो संध्या होने को आ गई। देवताओं की माया से रावण को शौचादि की तीव्र आवश्यकता हुई। उसी समय देवताओं की प्रार्थना पर भगवान गणेश ब्रह्मचारी रूप में वहां उपस्थित हुए। रावण उन ब्रह्मचारी के हाथ में शिवलिंग विग्रह देकर नित्यकर्म करने लगा।

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मूर्ति भारी होने पर ब्रह्मचारी बने गणेश ने तीन बार नाम लेकर रावण को पुकारा। जब वह नहीं आया तो उन्होंने उस मूर्ति को पृथ्वी पर रख दिया। रावण अपनी आवश्यकता पूर्ति कर शुद्ध होकर आया और उस मूर्ति को उठाकर ले जाने का प्रयास किया। जब मूर्ति नहीं उठी तो उसने खीजकर गणेश जी के मस्तक पर प्रहार किया और निराश होकर लंका लौट गया। रावण के प्रहार से व्यथित गणेश जी चालीस कदम दूर जाकर खड़े हो गए। भगवान शंकर ने वहां प्रकट होकर गणेश जी को वरदान दिया कि तुम्हारा दर्शन किए बिना जो मेरा दर्शन पूजन करेगा, उसे पुण्य फल प्राप्त नहीं होगा। यहां भगवान नारायण चक्रपाणी के रूप में भक्तों के रक्षार्थ स्थित हैं। गोकर्ण की रक्षिका देवी भद्रकाली हैं।

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