Ramayana: मां सीता में रावण को जला कर भस्म करने की शक्ति थी लेकिन...

Edited By Niyati Bhandari,Updated: 23 Apr, 2022 09:58 AM

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भगवती श्री सीता जी की महिमा अपार है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास तथा धर्मशास्त्रों में इनकी अनंत महिमा का वर्णन है। ये भगवान श्री राम की

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Ramayana: भगवती श्री सीता जी की महिमा अपार है। वेद, शास्त्र, पुराण, इतिहास तथा धर्मशास्त्रों में इनकी अनंत महिमा का वर्णन है। ये भगवान श्री राम की प्राणप्रिया आद्याशक्ति हैं। ये सर्वमंङ्गलदायिनी, त्रिभुवन की जननी तथा भक्ति और मुक्ति का दान करने वाली हैं। महाराज सीरध्वज जनक की यज्ञ भूमि से कन्या रूप में प्रकट हुई भगवती सीता ही संसार का उद्भव, स्थिति और संहार करने वाली पराशक्ति हैं। ये पतिव्रताओं में शिरोमणि तथा भारतीय आदर्शों की अनुपम शिक्षिका हैं।

अपनी ससुराल अयोध्या में आने के बाद अनेक सेविकाओं के होने पर भी भगवती सीता अपने हाथों से सारा गृह कार्य स्वयं करती थीं और पति के संकेत मात्र से उनकी आज्ञा का तत्काल पालन करती थीं। अपने पतिदेव भगवान श्री राम को वनगमन के लिए प्रस्तुत देखकर इन्होंने तत्काल अपने कर्तव्य कर्म का निर्णय कर लिया और श्री राम से कहा, ‘‘हे आर्यपुत्र ! माता-पिता, भाई, पुत्र तथा पुत्रवधू- ये  सब अपने-अपने कर्म के अनुसार सुख-दुख का भोग करते हैं। एकमात्र पत्नी ही पति के कर्म फलों की भागिनी होती है। आपके लिए जो वनवास की आज्ञा हुई है, वह मेरे लिए भी हुई है। अत: वनवास में आपके साथ में मैं भी चलूंगी।’’  

‘‘आप में ही मेरा हृदय अनन्य भाव से अनुरक्त है। आपके वियोग में मेरी मृत्यु निश्चित है। अत: आप मुझे अपने साथ वन में अवश्य ले चलिए। इससे आप पर कोई बोझ नहीं होगा। मैं वन में ब्रह्मचारिणी रह कर आपकी सेवा करूंगी।’’

अपने पति श्री राम से वन में ले चलने का निवेदन करती हुई सीता प्रेम विह्वल हो गईं। उनकी आंखों में आंसू बहने लगे। वह संज्ञाहीन सी होने लगीं। अंत में श्री राम को उन्हें साथ चलने की आज्ञा देनी पड़ी। वह अपने सतीत्व के तेज से लंकेश को भी भस्म कर सकती थीं। 
पापात्मा रावण के कुत्सित मनोवृत्ती की धज्जियां उड़ाती हुई पतिव्रता सीता जी कहती हैं, ‘‘हे रावण ! तुम्हें जला कर भस्म कर देने की शक्ति रखती हुई भी मैं श्रीराम चंद्र जी का आदेश न होने के कारण एवं तपोभंग होने के कारण तुम्हें जला कर भस्म नहीं कर रही हूं।’’

महासती सीता ने हनुमान जी की पूंछ में आग लगने के समय अग्नि देव से प्रार्थना की, ‘‘हे अग्निदेव! यदि मैंने अपने पति की सच्चे मन से सेवा की है। यदि मैंने श्रीराम के अतिरिक्त किसी का चिंतन न किया हो तो आप हनुमान के लिए शीतल हो जाएं।’’

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